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मुखरता से हो रहा बदलाव..... और बदल रही तस्वीर...!
विश्व की अन्य महिलाओं की तरह भारत की महिलाओं को आजादी से जीने और अधिकारों का उपयोग कर सर्वांगीण विकास करने के लिए संघर्ष नही करना पड़ा।समय के साथ सकारात्मक बदलाव भी हुये।पुरूषवर्चस्व क्षेत्रों में अपना उपस्थिति दर्ज कराके अपनी आजादी की नई ईबारत लिखती हौसले बुलंद महिलाओं ने देश-विदेश में अपनी सफलता, उपलब्धियों का परचम फहराया। अपने संघर्ष, मेहनत,जज्बा,जुनून से हर सीमाओं को लांघकर कामयाबी हासिल कर नई ऊंचाईयां छूकर प्रेरणा…
Posted on March 8, 2021 at 12:30pm — 3 Comments
मेरे पिता
पिता शब्द स्वयं अपने आप में बजनदार होता हैं। हाथ की दसों उंगलियों की तरह हर पिता का व्यक्तित्व अलग होता हैं। पिता को परिभाषित किया जा सकता हैं, उपमानों से अलंकारित किया जा सकता हैं पर रेखांकित नही किया जा सकता।बस,उम्मीद की जा सकती हैं कि हमारे पिता बहुत अच्छे हैं, बस थोड़े-से ऐसे और होते। सभी बच्चों के पिता उनके हीरो होते हैं। ऐसे ही मेरे पिता मेरे किसी सुपरमेन से कम नहीं हैं, हरफनमौला हैं। बचपन से मैंने उनका सख्त चेहरा,कठोर अनुशासनबद्ध,जुझारूपन देखा हैं। मितभाषी हम सब के…
ContinuePosted on June 21, 2020 at 3:03pm — 1 Comment
फूल-सी सुकोमल,सुकुमारी
कौन-सा फूल तेरी बगिया की
न्यारी-प्यारी माँ-बाबा की दुलारी
मुस्कराती ,बाबा फूले ना समाते
फूल-से झङते माँ होले-से कहती
पर दादी झिङकती-फूल कोई-सा होवे
पर सिर पर ना ,चरणों में चढाये जावे
उस समय कोमल मन को समझ ना आई
जब किसी के घर गुलदान की शोभा बनी
तब बात समझ आई
नकारा,छटपटाई,महकना चाहती थी
टूटकर अस्तित्वहीन नहीं होना था
पर असफल रही,दल-दल छितर-बितर गया
सोचती,मैं फूल तो हूँ
चंपा,चमेली,चांदनी,पारिजात नहीं
गुलाब…
Posted on April 21, 2020 at 4:32pm
जीवन का कर्फ्यू
रोजमर्रा की तरह टहलते हुये रामलाल उद्यान में गोपाल से मिला तो उसके चेहरे की झाईयां से झलकती खुशी कुछ और ही बयां कर रही थी।इससे पहले मैं कुछ पूछता कि उसने कहा, 'यार,कल जैसा दिन गुजारे जमाना हो गया।'
'पर यार कल तो कर्फ्यू लगा था।न किसी से मिलना-जुलना हुआ।कितना बोरियत भरा दिन था?'
'तेरे लिए था।पर इसने मेरी जिन्दगी के कर्फ्यू को हटा दिया।'
'कुछ समझा नही?'प्रश्न भरी निगाह से रामलाल ने गोपाल की तरफ देखकर कहा।
गोपाल ने पास पङी बेंच पर उससे बैठने का इशारा…
Posted on March 22, 2020 at 11:33pm — 2 Comments
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