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dandpani nahak
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dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"जी बहुत-बहुत शुक्रिया परम आदरणीय "
Saturday
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"जिनकी आँखों में ख़्वाब पलते हैं रात भर करवाटें बदलते हैं मय न साक़ी न ख़ुम न पैमाना किसलिए फिर ये शाम ढलते हैं मैं करुँ भी तो करूँ क्या आख़िर वो जो हैं चाँद ही से बहलते हैं क्या करें ग़म का अपने क़म्बख़्त ये आँसू भी तो नहीं निकलते हैं और अब क्या कहें…"
Saturday
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"shukriya"
Saturday
dandpani nahak updated their profile
Saturday
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"जी मुआफ़ी चाहता हूँ reply box से ग़ज़ल पोस्ट नहीं हो पा रही है चार,पाँच बार कोशिश कर चुका हूँ "
Saturday
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"जिनकी आँखों में ख़्वाब पलते हैं रात भर करवटें बदलते हैं मय न साक़ी न ख़ुम न पैमाना किसलिए फिर ये शाम ढलते हैं मैं करुँ भी तो करुँ क्या आख़िर वो जो हैं चाँद से बहलते हैं क्या करें ग़म का अपने क़म्बख़्त ये आँसू भी तो नहीं निकलते हैं और अब क्या कहें कि…"
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dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"परम आदरणीय समर कबीर साहब प्रणाम "
Saturday
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"आदरणीय अमित जी चाहता तो था इस पर और बात करुँ लेकिन आपकी पहली ही लाइन ने रोक दिया //अहम...// हृदय से क्षमाप्रार्थी हूँ!"
Apr 28
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"आदरणीय अमित जी बहुत शुक्रिया आपका आपने इस गहराई तक सोचा अस्ल में "भूले हैं बह्र भूल गए वज़्न रब्त भी " मेरे हिसाब से सहीह हैं क्योंकि महबूब एकदम से नौसिखिया नहीं है वो क़ाफ़िया और रदीफ़ ठीक लगाता है!आखिर तभी हमें बेबह्र ही सही शाइरी का भान…"
Apr 28
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भाई लक्ष्मण जी "
Apr 28
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय जी "
Apr 28
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय ज़ैफ जी "
Apr 28
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"बहुत शुक्रिया आदरणीया अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' जी "
Apr 28
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका "
Apr 28
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"आदरणीया रिचा जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका "
Apr 28
dandpani nahak replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"बहुत शुक्रिया आदरणीय अमित जी!  //रंग ए सादगी और दुश्मन की पैरवी //से अभिप्राय था की ऐसी सादगी की आदमी दुश्मन की भी पैरवी करने लगे उसी सादगी को एक रंग मान लिया आख़िर दुश्मन की पैरवी तो अक्सर की नहीं जाती तो कुछतो अलग होगा जो दुश्मन की पैरवी की जा…"
Apr 28

Profile Information

Gender
Male
City State
arang
Native Place
arang
Profession
service

Dandpani nahak's Blog

ग़ज़ल 2122 1212 22

इश्क़ से ना हो राब्ता कोई
ज़िन्दगी है की हादसा कोई

वो पुराने ज़माने की बात है
अब नहीं करता है वफ़ा कोई

ज़िन्दगी के जद्दोजहद अपने
मौत का है न फ़लसफ़ा कोई

यहाँ सब बे अदब हैं मेरी जां
अब करे क्या मुलाहिज़ा कोई

दिल का है टूटने का ग़म 'नाहक'
था सलामत मुआहिदा कोई

मौलिक एवं अप्रकाशित

Posted on September 27, 2020 at 6:02pm — 13 Comments

ग़ज़ल 2122 1212 22

इश्क़ हो या कि हादसा कोई
सब का होता है कायदा कोई

वो पुराने ज़माने कि बात हैं
अब नहीं करता हैं वफ़ा कोई

ज़िन्दगी के जद्दोजहद अपने
मौत का हैं न फ़लसफ़ा कोई

सब यहाँ बे अदब हैं मेरी जां
अब करे क्या मुलाहिज़ा कोई

दिल का हैं टूटने का ग़म 'नाहक'
था सलामत मुआहिदा कोई


मौलिक एवं अप्रकाशित

Posted on April 9, 2020 at 2:17am

122 122 122 12 ग़ज़ल

कभी इस तरह से भी सोचा है क्या
भला ज़िन्दगी का भरोसा है क्या

यूँ रहता है जैसे यहाँ सदियों तक
रहेगा मगर ये तो धोका है क्या

नकाबों में दिल्ली है सरकारें दो
अजीबो गरीब ये तमाशा है क्या

अगर ना सियासत हो दिल्ली में तो
तभी कुछ किया जा भी सकता है क्या

दिवाली मनाई है दिल्ली ने भी
खुदा ने दिवाला निकाला है क्या

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Posted on November 3, 2019 at 11:41pm — 1 Comment

इस दीवाली

इस दीवाली सिर्फ दीये मत जलाना तुम

बनकर प्रकाश अँधेरे में उतर जाना तुम



देखना कहीं कोई मासूम

बुझी फुलझड़ियों में गुमसुम

चिंगारी ढूंढ रहा हो तो

उसके पास जाना तुम



रौशन कर दुनिया उसको गले लगाना तुम

इस दीवाली सिर्फ दीये मत जलाना तुम



और देखना घर की झुर्रियाँ सभी

दूर कर के दिलों की दूरियाँ सभी

साथ मिलके सब अपनों के

एक एक कर जलाना मजबूरियाँ सभी



एकता में बल है कितना ये बताना तुम

इस दीवाली सिर्फ दीये मत जलाना… Continue

Posted on October 27, 2019 at 4:24pm — 8 Comments

Comment Wall (5 comments)

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At 6:03pm on March 29, 2020, सालिक गणवीर said…
आदरणीय नाहक जी
बहुत आभार है आपका. मैं कोशिश करूंगा कि भविष्य में और भी बेहतर लिख संकू.
At 10:32am on August 7, 2019, Samar kabeer said…

नाहक़ जी,प्रयासरत रहें ।

At 11:31pm on January 26, 2019, Samar kabeer said…

प्रयासरत रहें ।

At 10:27am on January 25, 2019, Samar kabeer said…

जनाब नाहक़ साहिब आदाब,

कृपया ये ग़ज़ल मुझे वाट्सऐप कर दें, मेरा नम्बर है 09753845522

At 8:06pm on December 15, 2017, dandpani nahak said…
122 122 122 122
हजारों किस्म से नुमायाँ हुए हैं
जहाँ से चले थे वहीँ पे खड़े हैं

निगाहें चुराना उन्होंने सिखाया
हमें भी नज़ारे कहाँ देखनें हैं

जिन्होनें हमें लूटना नाहिं छोड़ा
उन्हें क्या बताएं उन्हीं के धड़े हैं

तुम्हारा हमारा यहाँ क्या बचा है
चलो की यहाँ से रस्ते नापने हैं

हमें जी हजूरी नहीं 'शौक' जाओ
तुम्हारे लिए ही नहीं हम बनें हैं

दण्डपाणि नाहक 'शौक'

मौलिक अप्रकाशित
 
 
 

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