ग़ज़ल :- डूब रहे से नाव की बातें
डूब रहे से नाव की बातें ,
थोथी है बदलाव की बातें |
राजनीति के दुर्दिन आये ,
सब करते अलगाव की बातें |
…
ContinueAdded by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:30pm — 3 Comments
Added by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:00pm — 2 Comments
एक अनजाना सा घर, एक अनजानी डगर ..
ठान के ,हूँ साथ तेरे,कितना भी हो कठिन ये सफ़र..
पार भव कर ही लेंगे साथ मेरे तुम हो अगर..
छोड़ना मत हाथ मेरा तुम कभी वो हमसफ़र..
प्यार से सजाएंगे हम अपना ये प्रेम नगर..
करना नज़रंदाज़ मेरी गलती हो कोई अगर..
कोशिश तो बस ये मेरी, नेह में न हो…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 7:30pm — 8 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 12:30am — 5 Comments
Added by Rana Pratap Singh on January 29, 2011 at 5:00pm — 8 Comments
ओस की बूँद सी आँखों में सिमट आयी है...
फिर भी क्यों लब पे हंसी छाई है..
सांझ का धुंधलका मेरे आसपास सिमटा है..
जैसे मेरे ज़ेहन की परछाई है..
क्यों मिले थे तुम ? क्यों पास हम आये थे?
क्यों अनजान बन के ख्वाब सजाये थे?
एक पत्थर से वो ख़्वाबों का घर बिखरा है..
जो हम अनजाने थे तो पहचाने से क्यों थे ?…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on January 28, 2011 at 11:00pm — 3 Comments
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सम्मानित सदस्यों
आप सभी को प्रणाम
जैसा की पहले ही अवगत कराया जा चुका है की "बह्र पहचानिए" कोई पहेली नहीं है, यह तो एक चर्चा है, इल्मे अरूज और आम आदमी की दुनिया में बरसों से चली आ रही खाई को पाटने की, इसी के तहत हमने पिछली बार आप सबको एक गीत सुनवाया था और…
Added by RP&VK on January 28, 2011 at 8:30pm — No Comments
Added by Veerendra Jain on January 28, 2011 at 11:45am — 12 Comments
पिताजी की डायरी से...
स्मृति में..
मेरे नगमे तुम्हारे लबो पर,
अचानक ही आते रहेंगें .
एक गुजरी हुई जिंदगी में ,
फिरसे वापस बुलाते रहेगें.
याद आयेगा तुमको सरोवर
और पीपल की सुन्दर ये छाया .
ये बिल्डिंग खड़ी याद होगी ,
जिसको यादों में हमने बसाया .
बरबस ये कहेंगे कहानी ,
और हम…
ContinueAdded by R N Tiwari on January 28, 2011 at 10:00am — 2 Comments
एक थैली बूंदी...
- शमशाद इलाही अंसारी "शम्स"
पता नहीं मुझे आज
एक थैली बूंदी की याद
इतनी क्यों आ रही है..?
आज के दिन..
जब स्कूल में
बंटा करती थी..
तमाम उबाऊ क्रिया कलापों
और न्यूनतम स्तर के
पाखण्डों के बाद
बस प्रतीक्षा रहती थी
कब मिलेंगी
वो, गर्म गर्म बूंदियों की
रस भरी थैलियां
जो, न जाने कब और कैसे
जुड़ गयी थी
गणतंत्र दिवस…
ContinueAdded by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on January 26, 2011 at 7:09pm — 9 Comments
Added by Abhinav Arun on January 26, 2011 at 7:00pm — 10 Comments
ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है| इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातः 08 बजे एक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा
आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि उसी बहर पर कोई दूसरा गीत/ग़ज़ल मिले तो वह भी बता सकते है। पाठक एक…
ContinueAdded by RP&VK on January 26, 2011 at 5:00pm — 18 Comments
पिताजी की डायरी से.....
नेता जी.
Added by R N Tiwari on January 26, 2011 at 12:13pm — 3 Comments
Added by Sujit Kumar Lucky on January 26, 2011 at 9:30am — 6 Comments
हर रुख से चली यूं तो हवा अपने वतन में
सावन कभी पतझड़ न बना अपने वतन में
साज़िश तो बहुत रचते रहे अम्न के दुश्मन...
रिश्तों पे रही महरे-खुदा अपने वतन में
हर हीर के दिल में है बसी झांसी की रानी
हर रांझे में बिस्मिल है छिपा अपने वतन में
…
ContinueAdded by shahid mirza shahid on January 26, 2011 at 4:30am — 7 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 25, 2011 at 11:30pm — 9 Comments
Added by R N Tiwari on January 25, 2011 at 9:25pm — 1 Comment
Added by Abhinav Arun on January 25, 2011 at 3:51pm — 10 Comments
Added by R N Tiwari on January 25, 2011 at 11:33am — 1 Comment
दरख़्त बदल रहा है
स्वयं खा फल रहा है ।१।
मैं लाया आइना क्यूँ
ये सबको खल रहा है ।२।
दिया सबने जलाया
महल अब गल रहा है ।३।
छुवन वो प्रेम की भी
अभी तक मल रहा है ।४।
डरा बच्चों को ही अब
बड़ों का बल रहा है ।५।
लिखा जिस पर खुदा था
वही घर जल रहा है ।६।
दहाड़े जा रहा वो
जो गीदड़ कल रहा है ।७।
उगा तो जल चढ़ाया
अगन दो ढल रहा है ।८।Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 24, 2011 at 9:30pm — 3 Comments
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