मुल्क़ है ख़ुशहाल बतलाती रही मुझको हँसी
नित नये किस्सों से भरमाती रही मुझको हँसी
गफ़लतों में झूमते थे छुप गया है सूर्य अब
बादलों की सोच पर आती रही मुझको हँसी
मौत आगे लोग पीछे, था सड़क पर क़ाफ़िला
क़ाफ़िले का अर्थ समझाती रही मुझको हँसी
देखकर मायूस बचपन और सहमी औरतें
चुप्पियाँ हर ओर शरमाती रही मुझको हँसी
गालियों के संग अब तो मिल रहीं हैं लाठियाँ
मौत सच या भूख उलझाती रही मुझको हँसी
अब करोना क़हर…
ContinueAdded by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 31, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
तोड़ने से पहले मुझको आजमा कर देख ले
अपने घर के एक कोने में सजा कर देख ले
आज भी ज़िंदा है दुनिया में वफ़ा की रोशनी
अपने आंगन में कोई पौधा लगाकर देख ले
कोई अक्षर तुझको मिल जाएगा मेरे नाम का
अपने हाथों की लकीरों को मिला कर देख ले
हौसला करने से मिल ही जाता है सब कुछ यहाँ
वक़्त की भट्टी में बस खुद को तपा कर देख ले
सबसे बढ़कर खूबसूरत कैसे हैं तेरी हया
आइने को आंखों में काजल सजाकर देख…
Added by मनोज अहसास on March 31, 2020 at 12:31am — 6 Comments
कैसा हाहाकार मचा है मालिक करुणा बरसाओ
सन्नाटा खुद चीख रहा है मालिक करुणा बरसाओ
भूख, गरीबी, लाचारी से पहले ही आतंकित थे
एक नया तूफान उठा है मालिक करुणा बरसाओ
वादा तुमने किया था सबसे भीड़ पड़ी तो आओगे
खतरे में फिर मानवता है मालिक करुणा बरसाओ
कौन सुनेगा टेर हमारी बिना तुम्हारे ओ पालक
बेबस मानव कांप गया है मालिक करुणा बरसाओ
तुमने साथ दिया न तो फिर किसके दर पर जाएंगे
सबके मन मे व्याकुलता है मालिक करुणा…
Added by मनोज अहसास on March 30, 2020 at 10:19pm — 1 Comment
आसमाँ .....
बहुत ढूँढा
आसमाँ तुझे
दर्द की लकीरों में
मोहब्बत के फ़कीरों में
ख़ामोश जज़ीरों में
मगर
तू छुपा रहा
धड़कन की तड़पन में
यादों के दर्पण में
कलाई के कंगन में
वक्त सरकता रहा
सागर छलकता रहा
अब्र बरसता रहा
मगर
तू न समझा
मैं किसे ढूँढता हूँ
पागल आसमाँ
मैं तो
इस दिल की ज़मी का
आँखों की नमी का
अपनी ज़बीं का
आसमाँ ढूँढता हूँ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 30, 2020 at 8:30pm — 3 Comments
हवा ख़ामोश है वीरान हैं सड़कें
बहुत अब हो चुका बेकार मत भटकें
नहीं देंगे झुलसने आग से गुलसन
हमीं हैं फूल इसके रोज़ हम महकें
हमेशा ही रही तूफ़ान से यारी
घड़ी नाज़ुक अभी हम आज कुछ बहकें
हमें मंज़ूर है, हम शंख फूकेंगे
कि अब तो चश्म अपनों के नहीं छलकें
क़सम ले लें लड़ेंगे हम करोना से
मगर ऐसे कि अब दंगे नहीं भडकें
पुराना डर मुझे बेचैन करता जब
कभी उठतीं कभी गिरतीं तेरी…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 30, 2020 at 4:30pm — 2 Comments
डरते हैं जो मुश्किल से घबराते हैं ख़तरों से ,
लरज़ीदः क़दम फिर वो मन्ज़िल को नहीं पाते ,,
गर अ़ज़्म जो पुख़्ता हो लें काम भी हिम्मत से,
तो लोग सितारों से आगे हैं निकल जाते ।
'मौलिक व अप्रकाशित'
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 29, 2020 at 12:19pm — 2 Comments
Added by Bhupender singh ranawat on March 29, 2020 at 10:15am — 1 Comment
स्नेह-धारा
कल्पना-मात्र नहीं है यह स्नेह का बंधन ...
उस स्वप्निल प्रथम मिलन में, प्रिय
कुछ इस तरह लिख दी थीं तुमने
मेरे वसन्त की रातें
मेरी समस्याओं ने
अव्यव्स्थाओं ने, अभिलाषाओं…
ContinueAdded by vijay nikore on March 29, 2020 at 8:00am — 3 Comments
(1222 1222 1222 1222 )
तड़प उनकी भी चाहत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
लगी आतिश मुहब्बत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
मिलन के बिन तड़पते हैं वो क्या वैसे कि जैसे हम
जो बेचैनी है सोहबत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
हुआ है अनमना सा दिल हुई कुछ शाम भी बोझिल
तम्मना आज ख़िलवत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
बग़ैर इक दूसरे के जी सकें और मर न पाएँगे
ज़रूरत ऐसी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 29, 2020 at 12:00am — 7 Comments
है मुश्किल आई बड़ी , सारी दुनिया त्रस्त
मिल कर साथ खड़े रहें , कहता है यह वक्त
परमपिता का न्याय तो सबके लिए समान
अरबों के मालिक भले हों कोई श्रीमान
ईश्वर पर विश्वास का व्यर्थ मुलम्मा ओढ़
कर ना भ्रष्टाचार तू , जीवन यह अनमोल
प्रकृति हमें समझा रही , पर हित लें संकल्प
अन्य बचें तब हम बचें , दूजा नहीं विकल्प
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on March 28, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
Added by Dr Vandana Misra on March 28, 2020 at 5:19pm — 1 Comment
(2122 1122 1122 22 /112 )
बोल उठी सच हैं लकीरें तेरी पेशानी की
इस जवानी ने बहुत जिस्म की मेहमानी की
**
क्या दिया कोई किसी अपने को धोका तूने
वज्ह आख़िर तो कोई होगी पशेमानी की
**
वक़्त का पहिया लगातार चले मर्ज़ी से
फ़िक्र उसको नहीं दुनिया की परेशानी की
**
आब जिस रूप में हो उसकी बशर है क़ीमत…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 27, 2020 at 11:00pm — 4 Comments
गांव मुहल्लों के लोग कोरोना के कहर के भय से मुक्त अब राहती राशन की आस में खुश हैं।मुखिया, सरपंच और गांव के अगहरिया लोगों के सभी लोग राशन कार्ड धारी हैं ही,लाल कार्ड वाले भी हो गए हैं।भले ही साधन संपन्न हों,तो क्या हुआ?एक बार कुछ ले देकर नाम शामिल हो गए,तो फिर चांदी ही चांदी है।मुफ्त का माल खाते रहिए।पूछता ही कौन है? वातावरण इसी मुआफिक बना हुआ है।कल्लू खेतिहर की बीवी बगल के घर आई है।
" कल अनाज लेने जाना होगा", कल्लू की बहुरिया इतराती हुई बोली।
" कहा से?"अनजान बनती हुई मास्टर भोला…
Added by Manan Kumar singh on March 27, 2020 at 7:06pm — 2 Comments
ऐ पागल पथिक ! ठहरो जरा ,
रुको जरा , सांस लो तनिक ,
सम्भलो जरा I
सब कुछ पाने की चाह में ,
कुछ टूट गया उस आशियाने में,
कुछ छूट गया उस हसीं फ़सानें में ,
ठहरों, रुको, उसे सवारों, उसे खोजो जरा I
रुको जरा ........
घर पर नन्हों की आस में ,
और बुजुर्गों की लम्बी प्यास में ,
छूटे किसी साज और रियाज़ में ,
वक्त की चीनी घोलो जरा, कोई सुर ताल छेड़ो जरा I
रुको जरा ........
लूडो की गोटियाँ खोजो ,
शतरंज की बिसात बिछाओ जरा ,
कैरम की धूल…
Added by Dr. Geeta Chaudhary on March 27, 2020 at 3:32pm — 2 Comments
कोई भी भाषा हो , लेकिन
हिन्दी सी भला मिठास कहाँ ?
जो दिल से भाव निकलते हैं
वह कोमल सा अहसास कहाँ ?
है नर्तन मधुर तरंगों सा
अपना ' प्रणाम ' अन्यान्य कहाँ ?
जिससे झंकृत हृद - तार मृदुल
वह सुन्दरता , उल्लास कहाँ
जब बच्चा ' अम्मा , कहकर के
जा , माँ के गले लिपटता है
इस नैसर्गिक उद्बोधन में
अद्भुत आनन्द , हुलास कहाँ ?
कोई भी भाषा हो , लेकिन
हिन्दी सी भला मिठास कहाँ…
ContinueAdded by Usha Awasthi on March 27, 2020 at 9:33am — 10 Comments
पंख कटे पंछी हुए ,सीमित हुयी उड़ान
सर पे अम्बर था जहाँ, छत है गगन समान
सारी दुनिया सिमट कर कमरे में है कैद
घर के बाहर है पुलिस, खड़ी हुई मुश्तैद
जिनकी शादी ना हुयी , उनकी मानो खैर
और हुयी जिनकी न लें, घर वाली से बैर
घर के कामो में लगें, हर विपदा लें टाल
साँप छुछूंदर गति न हो, करफ्यू या भूचाल
भागवान से लड़ नहीं, बात ये मेरी मान
भागवान के केस में, चुप रहते भगवान
प्रथम दिवस आखिर कटा, साँसों में थे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 26, 2020 at 7:54pm — 2 Comments
Added by Bhupender singh ranawat on March 26, 2020 at 7:48pm — 1 Comment
हज़ज मुसम्मन महज़ूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 / 1222 / 1222 / 122
अभी भी है तुम्हें उस बेवफ़ा से प्यार? जी हाँ
निभाने को ये ग़म ता-उम्र हो तय्यार? जी हाँ [1]
उसे देखे बिना इक पल नहीं था चैन दिल को
उसे फिर देखना चाहोगे तुम इक बार? जी हाँ [2]
सिवा ज़िल्लत मिला कुछ भी नहीं कूचे से उसके
अभी भी क्या तुम्हें जाना है कू-ए-यार? जी हाँ [3]
पता तो है तुम्हें सर माँगती है ये मुहब्बत
तो क्या जाओगे हँसते हँसते…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 26, 2020 at 3:38pm — 5 Comments
कोरोना का संक्रमण सारे देश , जहान
है दुस्साध्य परिस्थिति , मुश्किल में है जान
इस संकट की घड़ी में हमको रहना एक
दृढ़ संकल्पित हों खड़े , भुला सभी मतभेद
सर्व हिताय खड़े हुए डा0 नर्स तमाम
पुलिस महकमे के लिए है आराम हराम
नित सफाई कर्मी करें बिना शिकन के काम
इनके सेवा भाव को शत , शत मेरा प्रणाम
आई है , टल जाएगी , यह जो बड़ी विपत्ति
अनुशासित घर में रहें बिना किसी आपत्ति
सब निरोग , सब हों सुखी , करना यही…
ContinueAdded by Usha Awasthi on March 25, 2020 at 5:32pm — 2 Comments
(1222 1222 1222 1222 )
ज़रा सोचें अगर इंसान सब लोहा-बदन होते
यक़ीनन फिर क़ज़ा आने पे पत्थर के क़फ़न होते
**
निज़ामत ग़ौर करती गर ग़रीबों की तरक़्क़ी पर
वतन में अब तलक भी लोग क्या नंगे बदन होते ?
**
फ़िरंगी की अगर हम नक़्ल से परहेज़ कर लेते
नई पीढ़ी के फ़रसूदा भला क्या पैरहन होते ?
**
जूँ लुटती आज है लुटती इसी मानन्द गर क़ुदरत
तो क्या दरिया शजर बचते कहीं पर कोई बन होते ?
**
अगर इन्सां न मज़हब और फिरकों में बँटा…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 25, 2020 at 5:00pm — 3 Comments
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