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July 2018 Blog Posts (108)

ग़ज़ल

सब समझ पातेहों ऐसे इल्म क्यों होते नहीं

सबको रक्खें साथ ऐसे बज्म क्यों होते नहीं

सिर्फ़ खँजरही नहीं कुछ लब्जभी घायल करें

दर्दसे महरूम कोइ ज़ख़्म क्यों होते नहीं

हर अंधेरी रातका रोशन सवेरा तो सुना

बदनसीबीके ये दिन फिर ख़त्म क्यों होते नहीं

आमलोगों केलिये बनते हैं सब क़ानून क्यों

ख़ासलोगों केलिये कोई हुक्म क्यों होते नहीं

सब सवालोंके तुम्हारे पास हैं गर हल तो फिर

पूछनेके सिलसिले ये ख़त्म क्यों होते नहीं…

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Added by Kishorekant on July 31, 2018 at 7:20pm — 2 Comments

ग़ज़ल

सब समझ पातेहों ऐसे इल्म क्यों होते नहीं

सबको रक्खें साथ ऐसे बज्म क्यों होते नहीं

सिर्फ़ खँजरही नहीं कुछ लब्जभी घायल करें

दर्दसे महरूम कोइ ज़ख़्म क्यों होते नहीं

हर अंधेरी रातका रोशन सवेरा तो सुना

बदनसीबीके ये दिन फिर ख़त्म क्यों होते नहीं

आमलोगों केलिये बनते हैं सब क़ानून क्यों

ख़ासलोगों केलिये कोई हुक्म क्यों होते नहीं

सब सवालोंके तुम्हारे पास हैं गर हल तो फिर

पूछनेके सिलसिले ये ख़त्म क्यों होते…

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Added by Kishorekant on July 31, 2018 at 7:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

ज़ख्म मेरे जब कभी तुम पर बयाँ हो जाएंगे 

सामने के सब नज़ारे बेजुबाँ  हो जाएंगे 

हाथ में  पत्थर नहीं कुछ ख्वाब दो कुछ काम दो 

हाथ ये नापाक के  कठपुतलियाँ हो जाएंगे 

खेलने दो आज इनको फ़िक्र सारी छोड़कर 

ज़िन्दगी उलझा ही देगी जब जवाँ हो जायेंगे 

जब कभी अफवाह उठ्ठे तुम यकीं करना नहीं 

झूठ की इस आग में ही घर धुवां हो जायेंगे 

ये सफर तन्हा नहीं है साथ गम यादें तेरी 

गम…

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Added by gumnaam pithoragarhi on July 31, 2018 at 5:00pm — 7 Comments

एक गजल - जानता हूँ चुनाव होना है

रोज ही भाव-ताव होना है

जानता हूँ चुनाव होना है

 

पाँच वर्षों में’ भर गया वो तो

फिर नया एक घाव होना है

 

कूप सड़कों पे’ बन गये अनगिन

उनका अब रखरखाव होना है

 

कौन कितना…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on July 31, 2018 at 9:00am — 18 Comments

ग़ज़ल

१२२२,१२२२,१२२२,१२२२ 

अता.........करदी

हमारेही मुक़द्दर में जुदाई क्यों अता करदी०

ज़रा इतना तो बतलाओ,कि ऐसी क्या खता करदी ।०

मेरी खामोशियोंको, नाम रुसवाई दिया तुमने०

कहाँ कुछ हम थे बोले, बात ऐसी, क्या, बता करदी । ०

कहाँ माँगी कहो जन्नत , ज़माने भर की दौलत भी०

मेरी तक़दीरसे, ख़ुशियाँ सभी क्यों लापता करदीं ।०

पढी बस इक ग़ज़ल हमने,कभी यारोंकी महेफिल में ०

तुम्हारा ज़िक्र क्या आया,खुदा या दासताँ करदी…

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Added by Kishorekant on July 30, 2018 at 6:36pm — 15 Comments

आज के दोहे....

आज के दोहे :.....



चरणों में माँ बाप के, सदा नवाओ शीश।

इनमें चारों धाम हैं, इनमें बसते ईश।। १



पथ पथरीला सत्य का , झूठी मीठी छाँव।

माँ के आँचल में मिले ,सच्चे सुख की ठाँव।। २



पग-पग पर घायल करें, पुष्प वेश में शूल।

दर्पण पर विश्वास के, जमी छद्म की धूल।।३



समय सदा रहता नहीं, जीवन के अनुकूल।

एक कदम पर फूल तो , दूजे पर हैं शूल।।४



शादी करके सब कहें, शादी है इक भूल।

जीवन में न संग मिले, जीवन के अनुकूल।।५



सदा लगे…

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Added by Sushil Sarna on July 30, 2018 at 2:30pm — 17 Comments

ऊपरवालों से गठजोड़ - (लघुकथा)

"जो भी हो रहा है, हमारे पक्ष में अच्छा ही हो रहा है! बस, थिंक पॉज़िटिव! तीखे बयानों, वायरल अफ़वाहों और चुनौतियों से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है!" एक वरिष्ठ ज़िम्मेदार नेता ने गोपनीय सभा में अपने साथियों से कहा - "अपने पक्ष में लहर बरकरार रखने के लिए विरोधी दलों की सत्ता वाले इलाक़ों में बदलते हालात पर गिद्धों जैसी नज़र रखो! सदैव अलर्ट रहो और हर अवसर को पकड़ कर अपने दल के पक्ष में बस तुरंत ही कुछ पॉज़िटिव सा करते रहो साम-दाम-दंड-भेद और चाणक्य जैसी नीतियों के साथ! पुलिस से भी डरने की ज़रूरत नहीं है,…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 30, 2018 at 4:30am — 9 Comments

ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)

ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)

(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन)

क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई |

जो खफा मुझसे तेरी नज़र हो गई |

आँख में तेरी अश्के नदामत न थे

इस लिए हर दुआ बे असर हो गई |

ग़म तबाही का तुमको नहीं है अगर

आँख क्यूँ देख कर मुझको तर हो गई |

ख़त्म शिकवे गिले सारे हो जाएंगे

गुफ्तगू उनसे तन्हा अगर हो गई |

यह करामत हमारे अज़ीज़ों की है

यूँ न उनकी अलग रह गुज़र हो गई…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 29, 2018 at 3:21pm — 18 Comments

आ जाती है मौत यहाँ अनजाने में

22 22 22 22 22 2



भीड़ बहुत है अब तेरे मैख़ाने में ।।

लग जाते हैं दाग़ सँभल कर जाने में ।।1

महफ़िल में चर्चा है उसकी फ़ितरत पर ।

दर्द लिखा है क्यों उसने अफ़साने में ।।2

इस बस्ती में मुझको तन्हा मत छोडो ।

लुट जाते हैं लोग यहाँ वीराने में ।।3

वह भी अब रहता है खोया खोया सा ।

कुछ तो देखा है उसने दीवाने में ।।4

होश गवांकर लौटा हूँ मैख़ानों से।

जब उभरा है अक्स तेरा…

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Added by Naveen Mani Tripathi on July 28, 2018 at 10:50pm — 13 Comments

संताप - लघुकथा –

संताप - लघुकथा –

"माधव, मुझे शाँति चाहिये। मेरा मन बहुत व्याकुल है।इस युद्ध के लिये मेरी अंतरात्मा मुझे कचोट्ती है"?

"क्या हुआ अर्जुन, तुम इतने निर्बल कैसे हो गये"?

"मित्र, युद्ध की विनाश लीला मुझे धिक्कारती है? मेरी आँखों के सामने उस विनाश की समस्त वीभत्स घटनांयें एक सैलाब की तरह मेरे मस्तिष्क को घेरे रहती हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे मेरे समूचे अस्तित्व को बहा ले जायेंगी और मुझे नेस्तनाबूद कर देंगी”?

“स्वयं को संभालो अर्जुन। तुम कायरों जैसा व्यवहार कर रहे…

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Added by TEJ VEER SINGH on July 28, 2018 at 8:06pm — 10 Comments

एक गीत -सब कुछ पाना हमें यहाँ है

जीवन की राहें अनजानी,

मंजिल का भी पता कहाँ है.

चले जा रहे अपनी धुन में,

सब कुछ पाना हमें यहाँ है.

 

कहीं बबूलों के जंगल हैं,

कहीं महकती है अमराई.

फूल शूल के साथ…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on July 28, 2018 at 11:50am — 10 Comments

*" गुरु पूर्णिमा "* - कविता/अर्पणा शर्मा, भोपाल

गुरू-महात्म्य है अपरंपार,

गुरूवर नमन आपको बारंबार,

सर्वप्रथम गुरू हैं मात-पिता,

जग से जोड़ा अपना नाता,

पालन-पोषण-शिक्षा सँभाल,

दायित्वपूर्ण इनका सब संसार,

गुरूवर नमन आपको बारंबार,

ज्ञान दीप प्रज्वलित किये,

अज्ञान-तम सब हर लिये,

अहसान हैं हम पर अपार,

कैसे चुके इस ऋण का भार,

गुरूवर नमन आपको बारंबार,

हमें थे अविदित ईश्वर भी,

उनकी भी प्रतीति गुरू से ही,

गुरू से जाने…

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Added by Arpana Sharma on July 27, 2018 at 7:54pm — 6 Comments

मैं और मेरे गुरु [कविता]

क्षण-प्रतिक्षण,जिंदगी सीखने का नाम  

सबक जरूरी नहीं,गुरु ही सिखाए

जिससे शिक्षा मिले वही गुरु कहलाये 

जीवंत पर्यन्त गुरुओं से रहता सरोकार 

हमेशा करना चाहिए जिनका आदर-सत्कार 

प्रथम पाठशाला की गुरु माँ बनी …

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Added by babitagupta on July 27, 2018 at 1:00pm — 2 Comments

एक ज़िद (कविता)

बहुत देख ली आडंबरी दुनिया के झरोखों से 

बहुत उकेर लिए मुझे कहानी क़िस्सागो में 

लद गए वो दिन, कैद थी परम्पराओं के पिंजरे में 

भटकती थी अपने आपको तलाशने में  

उलझती थी,  अपने सवालों के जबाव ढूँढने में 

तमन्ना थी बंद मुट्ठी के सपनों को पूरा करने की 

उतावली,आतुर हकीकत की दुनिया जीने की 

दासता की जंजीरों को तोड़

,लालायित हूँ मुक्त आकाश में उड़ने को 

 लेकिन अब उठ गए इन्क्लाबी कदम 

बेखौफ हूँ,कोइ…

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Added by babitagupta on July 26, 2018 at 6:00pm — 4 Comments

मैं अभी भी मुस्कुराता हूँ “



        

राज की बात एक बताता हूँ।

मैं अभी भी मुस्कुराता हूँ

 

मुश्किलें घेरने से डरती हैं।

हँसते-हँसते उन्हें डराता हूँ।।

 

जब भी तन्हाइयों में होता हूँ।

इक नया गीत गुनगुनाता हूँ।।

 

मेरा हौसला ही मेरा संबल है।

रोज़ थोड़ा सा इसे बढ़ता हूँ।।

 

जीवन है खेल सारा शब्दों…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 26, 2018 at 4:30pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मेघदूत गीत (राज )

मेघदूत गीत 



नयनों के गमले सूख रहे 

ऐ! मेघदूत कब आओगे 



तकते तकते अम्बर घट को 

चातक का मन टूट गया 

ज्वाला जैसी तपती काया 

बैरी सावन रूठ गया 

अब किस विध इतनी पीर सहे 

कब मेघा जल बरसाओगे 



व्याकुल कजरा व्याकुल गजरा 

व्याकुल कंगन ये बिंदिया 

काँटों के बिस्तर पर तन है 

चैन नहीं पावै निंदिया 

साँसों साँसों में पीर दहे

कब सुख घट तुम छ्लकाओगे 



साजन को तू जाकर देना 

ये कुछ भीगे मोती हैं 

मन की…

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Added by rajesh kumari on July 25, 2018 at 7:18pm — 10 Comments

मुजरिम : लघुकथा

आठवीं कक्षा तीसरा पीरीयड नैतिक शिक्षा का चल रहा था। जिंदगी अच्छे से कैसे गुजारी जाए के बारे सवाल मैडम से बच्चे पूछ रहे थे। मैडम सोचती है कि ऐसे सवाल तो हम ने भी पूछे थे,मगर हमारी जिंदगी का हिस्सा क्यूँ नहीं बने, वह सोचने लगी।

अब यही सवाल बच्चे उन से पूछ रहे हैं। क्या ऐसे करने से तबदीली आ सकती व्यहार से मैडम ने अपने आप से सवाल पुछाा।

"मगर जब वह जवाब की कौशिश करती है तो वह सोचती है क्यूँ न हम कहने की जगह करने को कहें,मगर ये तो तभी होगा जब हम खुद करेंगे,उस ने अपने सवाल का खुद को…

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Added by मोहन बेगोवाल on July 25, 2018 at 2:00pm — 4 Comments

गजल- जहाँ ईमान का पौधा नहीं है

मापनी 1222 1222122

जहाँ ईमान का पौधा नहीं है

यक़ीनन बाग वह मेरा नहीं है

 

इबादतगाह में है शोर केवल

खुदा का जिक्र अब होता नहीं है

 

भले फूलों सा’ कोमल हो न सच, पर

किसी की राह का काँटा नहीं है…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on July 25, 2018 at 8:30am — 16 Comments

"दर्द वो इस तरह छुपाता है"

2122 1212 22

हर समय खूब मुस्कुराता है।

दर्द वो इस तरह छुपाता है।।

वक़्त अच्छा बुरा जो आता है।

कुछ न कुछ तो सबक सिखाता है।।

दोस्त सच्चा उसे कहा जाता।

साथ जो हर कदम निभाता है।।

वो सकूँ से कभी नहीं रहता।

दिल किसी का भी जो दुखाता है।।

एक दिन ख़ुद मज़ाक बनता वो।

जो किसी का मज़ाक उड़ाता…

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Added by surender insan on July 24, 2018 at 9:00pm — 8 Comments

लघुकथा- " छद्म- संवेदना"/ अर्पणा शर्मा, भोपाल



"मैं कैसे अपने गहन दुःख का इज़हार करूँ । मेरे पिताजी की तबियत अत्यंत खराब है। करीब दस दिनों से आई.सी.यू.में भर्ती हैं । आप सभी की प्रार्थनाओं और दुआओं की बहुत जरूरत है। आपके संबल से ही हम इस मुश्किल समय से उबर पाएँगे  "



अत्यंत मार्मिक शब्दों से भरा फेसबुक पर अपना स्टेटस अपड़ेट करने के बाद कुणाल उस पर मिल रहे लाईक्स पर अपना धन्यवाद और प्रार्थनाओं, दुआओं से भरे संदेशों का उत्तर देने में व्यस्त होगया। ना जाने कितनी देर वह ऑनलाइन बैठा ख़ैरियत पूछने वालों को अपने पिताजी…

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Added by Arpana Sharma on July 24, 2018 at 3:07pm — 9 Comments

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