भारत माँ को नमन अपनी जमीन सबसे प्यारी है ; अपना गगन सबसे प्यारा है ;
बहती सुगन्धित मोहक पवन ;
इसके नज़ारे चुराते हैं मन ;
सबसे है प्यारा अपना वतन ;
करते हैं भारत माँ को नमन
वन्देमातरम !वन्देमातरम !
करते हैं भारत माँ ! को नमन .
उत्तर में इसके हिमालय खड़ा ;
दक्षिण में सागर सा पहरी अड़ा ;
पूरब में इसके खाड़ी बड़ी ;
पश्चिम का अर्णव करे चौकसी ;
कैसे सफल हो कोई दुश्मन !
करते हैं भारत माँ को नमन !
वन्देमातरम !वन्देमातरम !
करते…
Added by shikha kaushik on August 16, 2011 at 7:52pm — No Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 16, 2011 at 11:00am — 3 Comments
राष्ट्र के कर्णधार उठो , मानवता के पहरेदार उठो .
तुमको वतन पुकार रहा , तेरे पौरुष को ललकार रहा.
भारत माँ का उद्धार करो.
भ्रष्टाचार - संहार करो .
नृप ! बैठ तख़्त क्या सोच रहा ? अवमूल्यन में क्या खोज रहा ?
सत्ता की कुछ मर्यादा है , जनतंत्र से कुछ तेरा वादा है.
दृग मूंद लिए सब सपना है.
आँखे खोलो सब अपना है.
यह जग माया का है बाज़ार , जहाँ रिश्तों के कितने प्रकार .
कोई मातु - पिता कोई भाई है , कोई बेटी और जमाई है.
कोई…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 16, 2011 at 12:18am — 2 Comments
Added by Shashi Mehra on August 15, 2011 at 12:10pm — 4 Comments
अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.
रोते-बिलखते लोगों को फिर एक बार हंसाये हम.
जो अब तक सही आजादी पाने से महरूम है.
जो अपने घर में आज भी बेबस लाचार मजलूम है.
स्वतंत्र देश में जकड़े है जो गुलामी की जंजीरों से.
खेलते है देश के नेता जिनके मासूम तकदीरों से.
जो तन्हा भूखे-नंगे सोते है आसमान के नीचे.
उनके बंजर चेहरों को आओ मिलकर सींचे.
उनके रहने खातिर एक आशिया बनाये हम.
अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.
उखाड़ फेके…
ContinueAdded by Noorain Ansari on August 15, 2011 at 9:30am — 5 Comments
प्यार-एकता की खुश्बू से महके चमन हमारा I
सारी दुनिया में सबसे आगे हो वतन हमारा I
कुर्बानी देकर पायी है आजादी की दौलत I
जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो-छोड़ो बैर और नफ़रत I
देश के टुकड़े करने को, दुश्मन ने जाल पसारा है I
नींद से जागो, आज हिमालय ने हमको ललकारा है…
Added by satish mapatpuri on August 15, 2011 at 2:00am — 6 Comments
Added by इमरान खान on August 14, 2011 at 10:14pm — 1 Comment
Added by Abhinav Arun on August 14, 2011 at 3:33pm — 11 Comments
Added by Abhinav Arun on August 14, 2011 at 3:30pm — 14 Comments
Added by Abhinav Arun on August 14, 2011 at 1:39pm — 16 Comments
Added by satish mapatpuri on August 14, 2011 at 12:00am — 6 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on August 13, 2011 at 8:30am — 3 Comments
मिशन इज ओवर (कहानी )
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक 1 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
अंक 2 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
अंक ३ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
अंक - चार
एक दिन रहमत…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 12, 2011 at 10:30pm — 6 Comments
Added by Abhinav Arun on August 12, 2011 at 7:37pm — 8 Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 12, 2011 at 9:00am — 1 Comment
फिर आ रहा है १५ अगस्त. फिर से उस दिन सुबह उठते ही हम देश प्रेम के गीत को सुनेगे | सारे समाचार,टीवी चैनल सब जगह देश प्रेम की बाते की जायेगी, स्कुलो में भी गली के सबसे भ्रष्ठ नेता जी को देश प्रेम का भाषण देने के लिए बुलाया जाएगा | टीवी चैनल्स पर देश प्रेम की फ़िल्म लगाई जायेगी,दया करुणा प्रेम भाईचारे के साथ रहने की कसम खाई जायेगी. पूरा देश,देशभक्ति के रंग में डूब जाएगा..और…
ContinueAdded by Tapan Dubey on August 12, 2011 at 2:00am — 3 Comments
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक 1 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
अंक 2 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
अंक - तीन
विकास के पूछने पर अली ने कहा- 'एड्स के मामले में भला मैं क्या बोल सकता हूँ?...........सच पूछो तो गाँव में इसका रहना उचित भी नहीं है…
Added by satish mapatpuri on August 11, 2011 at 11:30pm — 2 Comments
दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक...
संजीव 'सलिल'
*
गले मिले दोहा यमक, झपक लपक बन मीत.
गले भेद के हिम शिखर, दमके श्लेष सुप्रीत..
गले=कंठ, पिघले.
पीने दे रम जान अब, ख़त्म हुआ रमजान.
कल पाऊँ, कल का पता, किसे? सभी अनजान..
रम=शराब, जान=संबोधन, रमजान=एक महीना, कल=शांति, भविष्य.
अ-मन नहीं उन्मन मनुज, गँवा अमन बेचैन.
वमन न चिंता का किया, दमन सहे क्यों चैन??
अ-मन=मन…
Added by sanjiv verma 'salil' on August 11, 2011 at 10:00am — 7 Comments
मिशन इज ओवर (कहानी )
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -१ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
इंसान अगर जीने का मकसद खोज ले तो निराशा स्वत: दम तोड़ देगी. विकास को निराशा के गहरे अँधेरे कुंए में आशा की एक टिमटिमाती रोशनी नज़र आई,उसने मन ही मन सोचा -" क्यों न एड्स के साथ जी रहे लोगों के पुनर्वास और उनके प्रति लोगों के दृष्टिकोण में…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 11, 2011 at 1:00am — 5 Comments
Added by rajkumar sahu on August 10, 2011 at 10:25pm — No Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |