For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

August 2017 Blog Posts (144)

एक ग़ज़ल- दिल को लगते बहुत भले हो

मापनी २२ २२ २२ २२

 

सुबह के’ मंजर से उजले हो,

दिल को लगते बहुत भले हो.

 

एक नजर देखा है जब से,

सपने जैसा दिल में’ पले हो.

 

सारी दुनिया जान गयी है,

तुम तो नहले पर दहले हो…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on August 31, 2017 at 7:08pm — 17 Comments

भोर होने से पहले ...

भोर होने से पहले ...

वाह

कितनी अज़ीब

बात है

सौदा हो गया

महक का

गुल खिलने से

पहले

सज गयी सेजें

सौदागरों की आँखों में

शब् घिरने से

पहले

बट गया

जिस्म

टुकड़ों में

हैवानियत की

चौख़ट पर

भर गए ख़ार

गुलशन के दामन में

बहार आने से

पहले

वाह

इंसानियत के लिबास में

हैवानियत

कहकहे लगाती है

ज़िंदगी

दलालों की मंडी में

रोज मरती है

जीने…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 31, 2017 at 4:30pm — 12 Comments

इस प्यार को सदा ही निभाते रहेंगे हम

२२१ – २१२२ -१२२१ -२१२

इस प्यार को सदा ही निभाते रहेंगे हम

दुश्वार रास्ता हो भले पर चलेंगे हम

सच बोलने के साथ में हिम्मत अगर रही

फिर फूल की तरह ही सदा वस खिलेंगे हम

जब सांस थी तो कर्म न अच्छा कभी किया

इक आग जुर्म की है जिसे अब सहेंगे हम

तरकीब जिन्दगी में अगर काम आ गई

मुंह आईने में देख के परदे सिलेंगे हम

है चैन जिन्दगी में कहाँ ढूँढ़ते फिरें

दिन रात के हिसाब में उलझे मिलेंगे हम

मैली करो न सोच खुदा से जरा डरो

टेढ़ी नजर हुई तो…

Continue

Added by munish tanha on August 31, 2017 at 3:30pm — 6 Comments

प्रेम पचीसी(दोहे)

प्रीत-पगे दोहे (प्रेम-पचीसी)

मुझको मुझसे छीनकर, बनते हो अनजान ।

निर्मोही तुमको कहूँ, या समझूँ नादान ।। ... 1



झरना साजन तुम भए, मैं जन्मों की प्यास ।

पीकर भी प्यासी मरुँ, रहता कंठ उदास ।। ... 2



प्रीत छुपाऊँ किस तरह, कैसे ढाँकूँ लाज ।

फूलों से छुपता नहीं, काँटों का यह ताज ।। ... 3



तुम सावन के मेघ हो, मैं मरुधर की रेत ।

जा बरसे हो बाग़ में, कैसे पनपे हेत ।। ... 4



संग तुम्हारे जो कटा, वो पल है अनमोल ।

तुम बिन सूना जो रहा, वो… Continue

Added by khursheed khairadi on August 31, 2017 at 11:45am — 5 Comments

जब से तूने ..

जब से तूने ..



जब से तूने

मुझे

अपनी दुआओं में

शामिल कर लिया

मैं किसी

खुदा के घर नहीं गया



जब् से तूने

अपने लबों पे

मेरा नाम

रख लिया

मैं

तिश्नगी भूल गया



जब से तूने

मेरी आँखों को

अपने अक्स से

सँवारा हे'

मेरे लबों ने

हर लम्हा

तुझे पुकारा है



जब से तूने

निगाह फेरी है

लम्स-ए-मर्ग का

अहसास होता है

वो शख़्स

जो तुझमें कहीं

सोता था

आज

दहलीज़े…

Added by Sushil Sarna on August 30, 2017 at 3:30pm — 8 Comments

सिहरन ..../ज़न्नत ...

सिहरन ....

ये किसके आरिज़ों ने चिलमन में आग लगाई है।

ये किसकी पलकों ने फिर ली आज अंगड़ाई है।

होने लगी सिहरन सी अचानक से इस ज़िस्म में -

ये किसकी हया को छूकर नसीमे सहर आई है।

............................................................

ज़न्नत ...

वो उनके शहर की हवाओं के मौसम l

कर देते हैं यादों से आँखों को पुरनम l

तमाम शब रहती है ख़्वाबों में ज़न्नत -

पर्दों से हया के छलकती .है शबनम l



सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 30, 2017 at 2:52pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तरही ग़ज़ल - ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ " ( गिरिराज भंडारी )

221    2121     1221     212

नफरत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ

मैं जानता हूँ होगी बग़ावत कहाँ कहाँ

 

गर है यक़ीं तो बात मेरी सुन के मान लें

लिखता रहूँगा मैं ये इबारत कहाँ कहाँ

 

धो लीजिये न शक़्ल मुआफ़ी के आब से  

मुँह को छिपाये घूमेंगे हज़रत कहाँ कहाँ

 

कल रेगज़ार आशियाँ, अब दश्त में क़याम

ले जायेगी मुझे मेरी फित्रत कहाँ कहाँ 

 

कर दफ़्न आ गया हूँ शराफत मैं आज ही

सहता मैं शराफत की नदामत कहाँ…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 30, 2017 at 9:00am — 29 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५१

बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़: फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन 

२१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

---------------------------

देख लो यारो नज़र भर अब नया मंज़र मेरा

आ गया हूँ मैं सड़क पर रास्ता है घर मेरा

 

लड़खड़ाने से लगे हैं अब तो बूढ़े पैर भी

है ख़ुदी का पीठ पर भारी बहुत पत्थर मेरा

 

जानता हूँ दिल है काहिल नफ़्स की तासीर में 

बात मेरी मानता है कब मगर नौकर मेरा

 

आसमाँ से आएगा कोई हबीब-ए-शाम-ए-ग़म

यूँ नज़र भर देखता है…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 29, 2017 at 4:30pm — 6 Comments

बदल रहा है इतिहास (लघुकथा)

" यार ,वहां जो चर्चा चल रही है , उसके बारे में कोई जानता है क्या ?" कैंटीन में बैठे हुए करण ने अपने साथियों से पूछा |"

" , क्या वही चर्चा जिसमें इतिहास की बातें चल रही हैं ? सुना है वहां भारत में पहले कौन आया इस विषय पर चर्चा हो रही है |" साथी मित्र ने उत्तर दिया |

दूसरा बोला , ", मुझे तो बचपन से लगता रहा है कि, उफ्फ् कितनी सारी तारीखें , कितने देश और उनके साथ जुड़ा उनका इतिहास | "

" जो भी हो पर यह है तो बड़ा दिलचस्प , समय बदला तारीखें बदली , राजा महाराजा बदले , राज करने…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 29, 2017 at 3:00pm — 7 Comments

इक तेरे जाने के बाद...........

कोई भी लगता नहीं अपना , तेरे जाने के बाद

हो गया ऐसा भी क्या , इक तेरे जाने के बाद १

ढूँढता रहता हूँ , हर इक सूरत में

खो गया मेरा भला क्या , इक तेरे जाने के बाद २

न महफिलें कल थी , ना है दोस्त आज भी कोई

अब मगर तन्हा बहुत हूँ , इक तेरे जाने के बाद ३

बिन बुलाए ख़ामोशी , तन्हाई , बे -परवाहपन

टिक गये हैं घर में मेरे , इक तेरे जाने के बाद ४

पूँछते हैं सब दरोदिवार मेरे , पहचान मेरी

अब तलक लौटा नहीं घर , इक तेरे जाने के बाद ५

तोड़ कर सब रख दिए मैंने ,…

Continue

Added by ajay sharma on August 28, 2017 at 11:46pm — 3 Comments

समानिका छंद

यह एक समवार्णिक छंद है ,जिसमें प्रत्येक चरण में 7 वर्ण होते हैं ,जिनका क्रम 1 रगण + 1 जगण + 1 गुरू होता है।



21 21 21 2 ,21 21 21 2





चाँद खो गया कहीं रात है बता रही।

नींद में सुहासिनी स्वप्न है सजा रही।



प्रीत खो गयी कहीं बावरी पुकारती । पैर के निशान को आस से निहारती ।



तेज है हवा हुई रात भी सियाह है ।

सूझती न राह भी ,वेदना अथाह है ।



ख्वाहिशें मरी नहीं हौसला बुलंद है ।

पाप पुण्य में छिड़ा अंतहीन द्वंद्व है… Continue

Added by sunanda jha on August 28, 2017 at 7:41pm — 10 Comments

आल्हा (वीर छंद) पर प्रथम प्रयास

लाख करूँ मैं कोशिश फिर भी, कभी न लिख पाऊँ श्रृंगार|

कलम उठाऊँ लिखने को जब, शब्दो में बरसे अंगार||

गीत तराने जब जब सोचू, दिख जाते बेबस लाचार|

छन्द ग़ज़ल तब मुझे चिढ़ाते, हिय में उठता हाहाकार||



बोल चाल के शब्द चुनूँ मैं, उन शब्दो से करू धमाल|

नही जमीर बिकाऊँ मेरा सत्ता का मै नही दलाल||

निडर भाव से सत्य लिखू मैं, करूँ झूठ को सदा हलाल|

अगर किसी ने आँख दिखाई, पल में लू मैं आँख निकाल||



भावों में तब ज्वाला भड़के, जब देखूँ बेहाल किसान||

अन्न… Continue

Added by नाथ सोनांचली on August 28, 2017 at 5:29pm — 8 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५०

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़:

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन 

 

क्या फ़सादात-ए-शिकस्ता प्यार से आगे लिखूँ

मुद्दआ है क्या दिल-ए-ग़मख़्वार से आगे लिखूँ

आरज़ूएं, दिल बिरिश्ता, ज़ख्म या हैरानियाँ

क्या लिखूं गर मैं विसाल-ए-यार से आगे लिखूं 

 

दर्द टूटे फूल का तो बाग़वाँ ही जानता

सोज़िश-ए-गुल रौनक-ए-गुलज़ार से आगे लिखूँ

 

हक़ बयानी ऐ ज़माँ दे हौसला बातिल न हो

जो लिखूँ मैं ख़ारिजी इज़हार…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 28, 2017 at 1:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल....दुआयें साथ हैं माँ की वगरना मर गये होते-बृजेश कुमार 'ब्रज'

1222 1222 1222 1222

रगों को छेदते दुर्भाग्य के नश्तर गये होते

दुआयें साथ हैं माँ की नहीं तो मर गये होते



वजह बेदारियों की पूछ मत ये मीत हमसे तू

हमें भी नींद आ जाती अगर हम घर गये होते



नज़र के सामने जो है वही सच हो नहीं मुमकिन

हो ख्वाहिशमंद सच के तो पसे मंज़र गये होते



अगर होती फ़ज़ाओं में कहीं आमद ख़िज़ाओं की

हवायें गर्म होतीं और पत्ते झर गये होते



शिकायत भी नहीं रहती गमे फ़ुर्क़त भी होता कम

न होती आँख 'ब्रज' शबनम अगर कह कर गये…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 28, 2017 at 11:00am — 18 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

वो तेरा छत पर बुलाकर रूठ जाना फिर कहाँ ।

वस्ल के एहसास पर नज़रें चुराना फिर कहाँ ।।



कुछ ग़ज़ल में थी कशिश कुछ आपकी आवाज थी ।

पूछता ही रह गया अगला तराना फिर कहाँ ।।



आरजू के दरमियाँ घायल न हो जाये हया ।

अब हया के वास्ते पर्दा गिराना फिर कहाँ ।।



कातिलाना वार करती वो अदा भूली नहीं ।

शह्र में चर्चा बहुत थी अब निशाना फिर कहाँ ।।



तोड़ते वो आइनों को बारहा इस फिक्र में ।

लुट गया है हुस्न का इतना खज़ाना फिर कहाँ… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2017 at 12:18am — 9 Comments

जयति जयति जय...-रामबली गुप्ता

गीत

आधार छंद-आल्हा/वीर छंद

जयति जयति जय मात भारती, शत-शत तुझको करुँ प्रणाम।

जननी जन्मभूमि वंदन है, प्रथम तुम्हारी सेवा काम।

जयति जयति जय........

जन्म लिया तेरी माटी में, खेला गोद तुम्हारी मात!

लोट तुम्हारे रज में तन को, मिला वीर्य-बल का सौगात।।

तुझसे उपजा अन्न ग्रहण कर, पीकर तेरे तन का नीर।

ऋणी हुआ शोणित का कण-कण, ऋणी हुआ यह सकल शरीर।।

अब तो यह अभिलाषा कर दूँ, अर्पित सब कुछ तेरे नाम।

जननी जन्मभूमि वन्दन है प्रथम…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 27, 2017 at 10:50pm — 26 Comments

गजल(फिर गजल होगी....)

2122 2122 2122 222



फिर गजल होगी भली रुत को जरा आने तो दो

बंद छितराये पड़े हैं,और जुड़ जाने तो दो।1



राख में चिनगारियाँ भी चिलचिलाती रहती हैं,

बस हवा का एक झोंका अब गुजर जाने तो दो।2



भागता जाता बखत भी बेकली के रस्ते से

गुनगुनायेंगी दिशाएँ मीत अब गाने तो दो।3



ज़ोर है तनहाइयों का , मानता, डरना भी क्या?

दूरियाँ क्या साहिलों की?यार अकुलाने तो दो।4



चाहतों का सिलसिला कब माँगने से मिलता है?

तिश्नगी बढ़ती गयी अब और रिरियाने तो… Continue

Added by Manan Kumar singh on August 27, 2017 at 11:27am — 16 Comments

नई सदी के मानव - (कविता) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

इक्कीसवीं सदी के मानव तुम कहां जा रहे हो?
दानव बहुरूपिये ही यूं बने जा रहे हो!
पठन-पाठन, अध्ययन ऐसा क्यों किये जा रहे हो?
बस कठपुतली ही यूं बने जा रहे हो!
साजो-सामान, भोग-विलास में क्यों डूबे जा रहे हो?
चोलों में, बोलों से भोलों को ठगते जा रहे हो!
पतन की गर्त में गोते लगा कर क्यों खोते जा रहे हो?
स्वर्ण से, रजत, ताम्र, कांस्य, कलयुग से नीचे कहीं जा रहे हो!

(मौलिक व अप्रकाशित)
(२७-०८-२०१७)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 27, 2017 at 8:00am — 11 Comments

एक नवगीत - सूरज सन्यास लिए फिरता

अँधियारे गद्दी पर बैठा,

सूरज सन्यास लिए फिरता

 

नैतिकता सच्चाई हमने,

टाँगी कोने में खूँटी पर.

लगा रहे हैं आग घरों में,

जाति धर्म के प्रेत घूमकर.

सत्ता की गलियों में जाकर,

खेल रही खो-खो अस्थिरता.

 …

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on August 26, 2017 at 7:16pm — 17 Comments

असली मुजरिम (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"ख़ुदा भी आसमां से जब जमीं पर देखता होगा....!" राजेन्द्र कृष्ण जी का लिखा फ़िल्म 'धरती' का यह गीत और मजरूह सुल्तानपुरी साहब का लिखा फ़िल्म 'लाल दुपट्टा मलमल का' का गीत -"तुमने रख तो ली तस्वीर हमारी" सुनने के साथ ही देशवासी अपनी धरती पर लोकतंत्र के लिए ख़तरे बन रहे कुछ बाबाओं, मुल्ला-मौलवियों और नेताओं की कारगुजारियों पर आंसू बहाने लगा। वह असहाय था। उसका गीतकार सा अन्तर्मन इन फ़िल्मी गीतों पर लिखी पैरौडी पढ़ कर सुनाते हुए उसे चिढ़ा रहा था, रुला रहा था। कह रहा था :



" तुम ने देख तो ली… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 26, 2017 at 7:00pm — 5 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 172 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
13 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 160

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"जितनी भी कोशिश करो, रहता नहीं अखण्ड। रावण  हो  या  राम का, टिकता नहीं…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"हार्दिक आभार आदरणीय दिनेश कुमार जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"सारगर्भित मुक्तकों के लिए बधाई प्रेषित है आदरणीय..सादर"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीय दिनेशकुमार विश्वकर्मा जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीया, प्रतिभा पाण्हे जी,बहुत सरल, सार-गर्भित कुण्डलिया छंद हुआ, बधाई, आपको"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आप, भगवान के बिकने के पीछे आशय स्पष्ट करें तो कोई विकल्प सुझाया जाय, बंधु"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आपके जानकारी के किए, पँचकल से विषम चरण प्रारम्भ होता है, प्रमाणः सुनि भुसुंडि के वचन सुभ देख राम पद…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आपके जानकारी के किए, पँचकल से विषम चरण प्रारम्भ होता है, प्रमाणः सुनि भुसुंडि के वचन सुभ देख राम पद…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service