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September 2024 Blog Posts (10)

दोहा सप्तक. . . . संबंध

दोहा सप्तक. . . . संबंध

पति-पत्नी के मध्य क्यों ,बढ़ने लगे तलाक ।

थोड़े से टकराव में, रिश्ते होते खाक ।।

अहम तोड़ता आजकल , आपस का माधुर्य ।

तार - तार सिन्दूर का, हो जाता सौन्दर्य ।।

खूब तमाशा हो रहा, अदालतों के द्वार ।

आपस के संबंध अब, खूब करें तकरार ।।

अपने-अपने दम्भ की, तोड़े जो प्राचीर ।

उस जोड़े की फिर सदा, सुखमय हो तकदीर ।।

पति-पत्नी के बीच में, बड़ी अहम की होड़ ।

जनम - जनम के साथ को, दिया बीच में छोड़। ।

जरा- जरा सी बात पर,…

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Added by Sushil Sarna on September 23, 2024 at 3:41pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . दरिंदगी

दोहा पंचक. . . . . दरिंदगी

चाहे जिसको नोचते, वहशी कामुक लोग ।

फैल वासना का रहा , अजब घृणित यह रोग ।।

बेबस अबला क्या करे, जब कामुक लूटें लाज ।

रोज -रोज  इस कृत्य से, घायल हुआ समाज ।।

अबला सबला हो गई, कहने की है बात ।

जाने कितने सह रही, घुट-घुट वो आघात ।।

नजरें नीची लाज की, वहशी करता मौज ।

खुलेआम ही हो रहा, घृणित तमाशा रोज ।।

छलनी सब सपने हुए, छलनी हुआ शरीर ।

कौन सुने संसार में, अबला  अंतस  पीर ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on September 20, 2024 at 3:58pm — No Comments

ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो

.

तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो

जो मुझ में नुमायाँ फ़क़त तू ही तू हो.

.

ये रौशन ज़मीरी अमल एक माँगे

नदामत के अश्कों से दिल का वुज़ू हो.

.

जो तख़लीक़ सब की सभी से जुदा है

भला राह मुक्ति की क्यूँ  हू-ब-हू हो.

.

कभी हो ख़यालात से ज़ह’न ख़ाली

ख़लाओं से भी तो कभी गुफ़्तगू हो.

.

वो मुल्हिद नहीं हो मगर ये है मुमकिन

उसे बस सवालात करने की ख़ू हो.

(मुल्हिद--नास्तिक) (ख़ू -आदत)

.

निलेश "नूर"

मौलिक/…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 18, 2024 at 4:51pm — 5 Comments

दोहा दसक- रोटी

नभ पर लकदक  चाँद दे, रोटी का आभास

बिन रोटी कब प्रीत भी, करती कहो उजास।१।

*

सभ्य जगत में है  भले, हर वैज्ञानिक योग

रोटी खातिर आज भी, भटक रहे पर लोग।२।

*

भूखे  प्यासे  प्राण  को, बासी  रोटी खीर

लगता बस धनहीन को, मँहगाई का तीर।३।

*

रोटी ने जिसको किया, विवश और कमजोर।

उसकी सबने खींच  दी, हर  इज्जत की डोर।४।

*

पहली  रोटी  गाय  को,  अन्तिम  देना  स्वान।

पुरखों की इस सीख को, कौन रहा अब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2024 at 10:31pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . . . . विविध

चढ़ते सूरज को सदा, करते सभी सलाम।

साँझ ढले तो भानु की, बीते तनहा शाम।।

भोर यहाँ बेनाम है, साँझ यहाँ गुमनाम ।

जिस्मों के बाजार में, हमदर्दी नाकाम ।।

छीना झपटी हो रही, किस पर हो विश्वास ।

रहबर ही देने लगे,  अपनों को संत्रास ।।

तनहाई के दौर में, यादों का है शोर ।

जुड़ी हुई है ख्वाब से, उसी ख्वाब की डोर ।।

मुझसे  ऊँचा क्यों भला,  उसका हो प्रासाद ।

यही सोचकर रात -दिन, सदा बढ़े  अवसाद ।।

सुशील…

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Added by Sushil Sarna on September 17, 2024 at 2:46pm — No Comments

दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते

सौदेबाजी रह गई, अब रिश्तों के बीच ।

सम्बन्धों को खा गई, स्वार्थ भाव की कीच ।।

 

रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।

धीरे-धीरे हो रही, क्षीण मिलन की प्यास ।।

 

मन में गाँठें बैर की, आभासी मुस्कान ।

नाम मात्र की रह गई, रिश्तों में पहचान ।।

 

आँगन छोटे कर गई, नफरत की दीवार ।

रिश्तों की गरिमा गई, अर्थ रार से हार ।।

 

रिश्ते रेशम डोर से, रखना जरा सँभाल ।

स्वार्थ बोझ से टूटती, अक्सर इनकी डाल…

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Added by Sushil Sarna on September 11, 2024 at 1:00pm — 2 Comments

करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़

गर्दभ का हर युग रहे, गर्दभ सा ही हाल

बनता नहीं तुरंग वह, भले लगा ले नाल।१।

*

भूला पुरखे  थे  कभी, चेतक से बेजोड़

करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़।२।

*

कहते लोग तुरंग को, कब होता घर दूर

चाहे हो वो काठ का, जय लाता भरपूर।३।

*

क्या पौरुष  के  रंग  वो, दिखलाता संसार।

मोड़ न पाया रास जो, बनकर अश्व सवार।४।

*

रथ में जोते  चल  रहा, सूरज सात तुरंग

इसीलिए लड़ पा रहा, तम से लम्बी जंग।५।

*

घोड़े पर  जो  वायु  के, होता  बहुत सवार

छिन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2024 at 6:09am — 4 Comments

दोहा दसक - गुण

आँखों तक ही रूप का, होता है संसार

किंतु गुणों से आत्मा, पाती है झंकार।१।

*

रखने तन को छरहरा, देते भोजन त्याग।

कोई कहता हैं नहीं, लेकिन गुण से जाग।२।

*

गुण की चिंता है किसे, दिखता रहे गँवार

अब तो केवल रूप को, सब ही रहे सँवार।३।

*

जाना जिसने रूप से, गुण का गुण है खास

उस के जीवन से कभी, जाती नहीं उजास।४।

*

गुण है गुण गुणवान को, अवगुण गुण है दुष्ट

जिस को भाता जो रहा, करता उसको पुष्ट।५।

*

गुण से बढ़कर रूप का, जो करता गुणगान

करता गुण…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2024 at 4:15am — 4 Comments

ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)

1222 - 1222 - 1222 - 1222

ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ कि वो इस्लाह कर जाते

वगर्ना आजकल रुकते नहीं हैं बस गुज़र जाते 

न हो उनकी नज़र तो बाँध भी पाता नहीं मिसरा 

ग़ज़ल हो नज़्म हो अशआर मेरे सब बिखर जाते

 

बड़ी मुद्दत से मैं भी कब 'मुरस्सा' नज़्म कह पाया 

ग़ज़ल पर सरसरी नज़रों ही से वो भी गुज़र जाते

अरूज़ी हैं अदब-दाँ वो अगर बारीक-बीनी से 

न देते इल्म की दौलत तो कैसे हम निखर जाते

मिले हैं ओ. बी. ओ.…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 8, 2024 at 5:15pm — 21 Comments

दोहा दसक



जूते तो शोरूम  में, पुस्तक अब फुटपाथ।

कैसे लोगो फिर लगे, कहो तरक्की हाथ।२।

*

कलयुग में उलटा हुआ, मानव का आचार

महल बनाता श्वान  को, गायों को दुत्कार।२।

*

पढ़ो धर्म के  साथ  ही, नित  नूतन विज्ञान

तब जाकर होगा कहीं, सुंदर सकल जहान।३।

*

केवल कोरा ज्ञान ही, कब सुख का आधार

साथ चाहिए  सीख  में,  नैतिकता संस्कार।४।

*

दिखते पग पग खूब हैं, होते नित सतसंग

फिर भी करते…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2024 at 9:25am — No Comments

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