For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

October 2013 Blog Posts (275)

रख्त -ऐ -सफ़र तक़दीर

रख्त -ऐ -सफ़र  तक़दीर  को  कब  मिले  महोलत  घबरानेसे

अबस कुँजश्क तर्स खाये है इक आफताब के बेबक्त डूब जाने से

कटरा-ब -कतरा-ओ-गिरया हाथ  में लेकर दरया बनाता  हूँ 

जब  आती  है  पुर्सिश  गर्म  सांसोकी  खनक  तेरे  अफ़साने से

यह सबा ये फ़िज़ा-ओ-तहरतुष बुलाती है शायर-ऐ -फितरत  को

फिर मिलाती है दिल-ओ-दीद-ओ-जान आशिया कोई  बसाने को  

गर  वक़्त  ज़ालिम है तो तक़दीरभी  संग-ओ-दिल सनम है 

ऐसे जंगजू-ओ-हालातमें  कौन  बचाये  किसको तड़पानेसे से  

बा-गर्दिशे …

Continue

Added by Preeti Manekar on October 31, 2013 at 8:47pm — 3 Comments

कविता - साहित्य दीप ! शब्दों की ज्योति !!

साहित्य दीप ! शब्दों की ज्योति !!…

Continue

Added by Abhinav Arun on October 31, 2013 at 8:30pm — 18 Comments

आईना

जाने को तैयार ससुराल मैं,
देख रहा था आर्इना बार बार मैं।
सूझी तभी हमें  शरारत,
आइने से बोल पडा।
बता मेरे यार कैसा लग रहा मैं,…
Continue

Added by Akhand Gahmari on October 31, 2013 at 8:00pm — 8 Comments

वक़्तका तकाज़ा है

वक़्तका तकाज़ा है आज आई है शाबान-ऐ-हिज्राँ सिरहानेसे

वैसे दम-ब-दम को नहीं फुर्सत दर-ब-दर मुझे आज़मानेसे

कितने  माजूर-ओ-बेखुद  बने बद-चलन  पैमाने झलकानेसे

सफा -ऐ -कल्ब  क्या  बनोगे  इंसा  सरसार दर्यामे नहाने  से

उम्र -ऐ -खिज्र  में  गर  फिर  लिखे  दास्तान -ऐ -शौक कोई  

किस  तर्ज़ -ऐ -तपाक मिले  तोड़कर  मसाफात  अनजाने  से

सर -गर्म -ऐ -जफ़ा  किसको  महोलत  दी  है  यहाँ  बेदिलीने

तक़दीर  कैसे  निगाह -बान  रहे  नज़र -ऐ -बाद  बचाने  से

फरते -मिहानपे …

Continue

Added by Zid on October 31, 2013 at 6:20pm — 6 Comments

गीत

मधुमति,

मेरे पदचिन्‍हों को

पी लेता है

मेरा कल

और मेरे

प्राची पनघट पर

उग आते

निष्‍ठुर दलदल

ऐसे में किस स्‍वप्‍नत्रयी की

बात करूं मेरे मादल ?

वसुमति,

मेरे जिन रूपों को

जीता है

मेरा शतदल

उस प्रभास के

अरूण हास पर

मल जाता

कोई काजल

ऐसे में किस स्‍वप्‍नत्रयी की

बात करूं मेरे मादल ?

द्युमति,

मेरे तेज अर्क में

घुल…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on October 31, 2013 at 3:39pm — 14 Comments

बनूँगा, बनाऊंगा ! Copyright (c)

स्मृति बनूँ या बनूँ स्मारक?
सुधार बनूँ या बनूँ सुधाकर?
पिनाकी बनूँ या ब्रह्मास्त्र?
गाण्डीव  बनूँ या पशुपतास्त्र?
मूल बनूँ या मौलिक?
आलोक या अलौकिक?
जीवन या संजीवनी?
दमन या दामिनी?
छंद बनूँ या स्वच्छंद
मुक्तक या निबंध
सागर बनूँगा, छोर भी
सावन बनूँगा, मोर भी
उजाला भी, अंधेरा घनघोर भी
समस्या का तोड़ भी
आशा की डोर भी
उत्तर बनूँगा,…
Continue

Added by अनुपम ध्यानी on October 31, 2013 at 1:00am — 6 Comments

सतरंगी कमान |

नील गगन हे ! सावधान |

साध ये ..सतरंगी कमान |

आया है... कौन काज ...

अनंग ले ...ये काम वान ||



शाख शजर के डेरा डाल |

मन करे..घायल बेहाल |

हरी हरियाली पाँखों बीच ..

ओढ़े बैठा सतरंगी शाल ||



मौसम ये भीगा-भीगा आया |

काले-काले...बदरा लाया |

वावली हुईं…

Continue

Added by Alka Gupta on October 30, 2013 at 11:03pm — 8 Comments

!!! भंवर में डूब गयी नाव !!!

!!! भंवर में डूब गयी नाव !!!

1212 1122 1212 22

उधार आज नहीं, कल नकद बताने से।

भंवर में डूब गयी नाव, भाव खाने से ।।

जवां-जवां है हंसीं है सुहाग रातों सी।

यहां गुलाब - चमेली महक जताने से।।

बड़े उदास सितारें जमीं पे टूट गिरे।

हंसी खिली कि चमेली मिली दीवाने से।।

कठोर रात सितारों पे फबितयां कसती।

हुजूर आप यहां, चांद डगमगाने से।।

शुभागमन है यहां भोर लालिमा जैसी।

सुगन्ध फैल गयी नम हवा बहाने…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 30, 2013 at 8:51pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आँखों देखी – 5 आकाश में आग की लपटें

आँखों देखी – 5 आकाश में आग की लपटें

 

भूमिका :

           पिछले अध्याय (आँखों देखी – 4) में मैंने आपको बताया था कैसे एक तटस्थ डॉक्टर के कारण हम लोग किसी सम्भावित आपदा को टाल देने में सक्षम हुए थे. शीतकालीन अंटार्कटिका का रंग-रूप ही कुछ अकल्पनीय ढंग से अद्भुत होता है.…

Continue

Added by sharadindu mukerji on October 30, 2013 at 2:30pm — 28 Comments

ग़ज़ल - खोल शिखा फिर आन करें हम

मात्रा भार - 222 ,222 ,22





खोल शिखा फिर आन करें हम  

आज गरल का पान करें हम। 

ज्वालाओं के धनुष बना कर 

लपटों का संधान करें हम।  

 

अंगारों सा धधक रहा उस 

यौवन पर अभिमान करें हम।  

अँधियारा  जब छा जाये  तो  

खुद को ही दिनमान करें हम। 

समिधाओं से राख उड़ी है 

आहुति का आह्वान करें हम।

अपना कौन पराया कितना  

अब उनकी पहिचान करें हम।  

कर कौन रहा कल…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on October 30, 2013 at 12:00am — 16 Comments

सकून के दो पल

दहकती ज्‍वाला,
तेज प्रकाश
जग को,हमकेा,आपकेा
सबकेा देता उजाला है
मगर बिल्‍कुल तन्‍हा
बिल्‍कुल…
Continue

Added by Akhand Gahmari on October 29, 2013 at 9:29pm — 7 Comments

इस दीपावली एक संकल्प लें

समाज की अति व्यस्तता में मगन हम आनंद का अनुभव करने के लिए विशेष अवसरों की खोज करतें हैं | त्यौहार उन विशेष अवसरों में से एक है | ये हमारे जीवन में नयापन लाते हैं, आनन्द और उल्लास पैदा करते हैं | हमारे त्योहारों में दीपावली का विशेष स्थान है | दीपावली का साधारण अर्थ दीपों की पंक्ति का उत्सव है और दीपक का प्रकाश ज्ञान और उल्लास का प्रतीक है | दीपावली कब और क्यों मनाया जाता है ये तो हम सभी जानते हैं | इसके बारे में अनेक सांस्कृतिक,ऐतिहासिक एवं धार्मिक परम्पराएं और कितनी कहानियां प्रचलित हैं ये…

Continue

Added by Meena Pathak on October 29, 2013 at 8:30pm — 19 Comments

आपका वो मज़ाक अच्छा था

मिले तुम इत्तिफाक अच्छा था ।
हसरते दिल फिराक अच्छा था ।

मुझ से बोला कि प्यार है तुमसे ,
आपका वो मज़ाक अच्छा था ।

पाके खोया तुम्हे तो ये पाया ,
मै तनहा ही लाख अच्छा था ।

नज़रें फेरे जो तुमको देखा तो ,
लम्हा वो दर्द नाक अच्छा था ।

प्यार में मेरे हज़ारों कमियाँ ,
तेरा धोखा तो पाक अच्छा था ।

कस्मे वादे रहीं न रस्में वफ़ा ,
दिल दिल का तलाक अच्छा था ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज

Added by Neeraj Nishchal on October 29, 2013 at 6:30pm — 12 Comments

हल्द्वानी में आयोजित ओ बी ओ ’विचार गोष्ठी’ में प्रदत्त शीर्षक पर सदस्यों के विचार : अंक 9

अंक 8 पढने हेतु यहाँ क्लिक करें…….

आदरणीय साहित्यप्रेमी सुधीजनों,

सादर वंदे !

ओपन बुक्स ऑनलाइन यानि ओबीओ के साहित्य-सेवा जीवन के सफलतापूर्वक तीन वर्ष पूर्ण कर लेने के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड के हल्द्वानी स्थित एमआइईटी-कुमाऊँ के परिसर में दिनांक 15 जून 2013 को ओबीओ प्रबन्धन समिति द्वारा "ओ…

Continue

Added by Admin on October 29, 2013 at 3:30pm — 6 Comments

लगा अब दांव पर परिवार का सम्मान है /

1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2



लबों से आज गायब हो गई मुस्कान है

अजब सी अब परेशानी लिए इन्सान है /

कभी तो दिन भी बदलेंगे ,मिलेगा चैन तब

दुखों का अंत होगा तब यही अनुमान है /

गिले शिकवे यूँ अब हावी हुए रिश्तों पे हैं

लगा अब दांव पर परिवार का सम्मान है /

किसे अपना कहें किसको पराया हम कहें

यहाँ हर चेहरे की अब छुपी पहचान है /

रचे हैं साजिशें गहरी मगर अब सोचते

जफ़ा पाकर खुदी का डोलता ईमान है…

Continue

Added by Sarita Bhatia on October 29, 2013 at 1:45pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जलाऊं दीपक कैसे

जलाऊं दीपक कैसे

कुल बीते दिन चार ,चमन का खोया माली

रोते पुहुप हजार ,कहाँ कैसी दीवाली

व्यथित उत्तराखंड ,तबाही कैसे भूले

आँसू मिश्रित आग ,जलेंगे कैसे चूल्हे

बिना तेल के दीप ,जलेगी कैसे बाती…

Continue

Added by rajesh kumari on October 29, 2013 at 1:00pm — 28 Comments

कितने कर्ण?

जाने कितने कर्ण जन्मते यहाँ गली फुटपाथों पर। 

या गंदी बस्ती के भीतर या कुन्ती के जज्बातों पर॥

कुन्ती इन्हें नहीं अपनाती न ही राधा मिलती है।

इसीलिये इनके मन में विद्रोह अग्नि जलती है॥

द्रोण गुरु से डांट मिली और परशुराम का श्राप मिला। 

जाति- पांति और भेदभाव का जीवन में है सूर्य खिला॥

सभ्य समाज में कर्ण यहाँ जब- जब ठुकराये जाते हैं।

दुर्योधन के गले सहर्ष तब- तब ये लगाये जाते हैं।

इनके भीतर का सूर्य किन्तु इन्हें व्यथित करता रहता।

भीतर ही भीतर इनकी…

Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 29, 2013 at 11:00am — 8 Comments

इश्कदारी

कभी औरों से टकराते कभी खुद से खफा होते ।

न आते ज़िन्दगी में तुम तो मौसम ए खिजां होते ।

मोहब्बत की पनाहों में हुये हालात ऐसे हैं ,

न खामोशी से छुपते हैं न लफ़्ज़ों से बयाँ होते ।

दिले नादाँ को समझायें ज़रा सी बात कैसे हम ,

प्यार के हादसे अक्सर दिलों के दरमियाँ  होते ।

प्यार कहने की ख्वाहिश में सिमट जाता है अपना दिल,

खुदा तेरी तरह होते जो हम भी बेज़ुबाँ होते ।

खुदी का घर मिटाये बिन सुकूँ का दर नही मिलता…

Continue

Added by Neeraj Nishchal on October 29, 2013 at 6:30am — 19 Comments

गीत

दीप हमने सजाये घर-द्वार हैं  

फिर भी संचित अँधेरा होता रहा

मन अयोध्या बना व्याकुल सा सदा

तन ये लंका हुआ बस छलता रहा

 

राम को तो सदा ही वनवास है

मंथरा की कुटिलता जीती जहाँ

भाव  दशरथ दिखे बस लाचार से

खेल आसक्ति ऐसी खेले यहाँ

 

लोभ धर रूप कितने सम्मुख खड़ा

दंभ रावण के जैसा बढ़ता रहा

 

धुंध यूँ वासना की छाने लगी

मन में भ्रम इक पला, सीता को ठगा

नेह के बंध बिखरे, कमजोर हैं

सब्र शबरी का…

Continue

Added by बृजेश नीरज on October 28, 2013 at 9:30pm — 26 Comments

क्षणिकाएं*********

१-सुकून

सुनों

आज के बाद तंग नहीं करूँगा

चला जाऊँगा

बस एक बार क्षण-भर

आओ बैठो मेरे पास

तुम्हारे आने से

जिंदा हो उठता हूँ



२-अकेला

दुख के सन्नाटे से

लड़ रहा हूँ

तभी तो

आज फिर अकेला हूँ

३-मंत्री भूखानंदजी

करोड़ों का माल गटक गए

सुना है आज फिर

भूख हड़ताल पे बैठे है

४-साथ

मै तो ग़मों का रेगिस्तान था

वो तो तुम्हारे आने से सादाब हो…

Continue

Added by ram shiromani pathak on October 28, 2013 at 8:00pm — 24 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
1 hour ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service