२१२२-१२१२-२२/११२
और कितना बता दे टालूँ मैं
क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)
छोड़ते ही नहीं ये ग़म मुझ्को
ख़ुद को कितना बता सभालूँ मैं (२)
तू मुझे क़ैद करके मानेगा
क्यों न पिंजरे में ख़ुद को डालूँ मैं (३)
ज़िंदगी दूर है बहुत मुझसे
ज़ह्र है पास क्यों न खा लूँ मैं (४)
ज़िन्दगी लिफ्ट माँगती ही नहीं
मौत माँगे तो क्या बिठा लूँ मैं (५)
पाँव में एक दिन जगह देगा
क्यों न सर पे उसे…
Added by सालिक गणवीर on October 31, 2024 at 4:35pm — 3 Comments
212 212 212 212
इस तमस में सँभलना है हर हाल में
दीप के भाव जलना है हर हाल में
हर अँधेरा निपट कालिमा ही नहीं
एक विश्वास पलना है हर हाल में
एकपक्षीय प्रेमिल विचारों भरे
इन चरागों को जलना है हर हाल में
निर्निमेषी नयन का निवेदन लिये
मन से मन तक टहलना है हर हाल में
देह को देह की भी न अनुभूति हो
मोम जैसे पिघलना है हर हाल में
अल्पनाओं सजी गोद में बैठ कर
दीप को मौन बलना है…
Added by Saurabh Pandey on October 29, 2024 at 9:30pm — 7 Comments
बह्र: 1212 1122 1212 22
किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा
तमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में रहा
छुपा सके न कभी बेवकूफ़ थे इतने
हमारा इश्क़ मुहब्बत की हर ख़बर में रहा
बड़ी अजीब मुहब्बत की है उलटबाँसी
बहादुरी में कहाँ था मज़ा जो डर में रहा
नदी वो हुस्न की मुझको डुबो गई लेकिन
बहुत है ये भी की मैं देर तक भँवर में रहा
मिली न प्यार की मंजिल तो क्या…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 27, 2024 at 9:37pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . करवाचौथ
चली सुहागन चाँद का, करने को दीदार ।
खैर सजन की चाँद से, माँगे बारम्बार ।।
सधवा ढूँढे चाँद को, विभावरी में आज ।
नहीं प्रतीक्षा का उसे, भाता यह अंदाज ।।
पावन करवा चौथ का, आया है त्योहार ।
सधवा देखे चाँद को, कर सोलह शृंगार ।।
अद्भुत करवा चौथ का, होता है त्योहार ।
निर्जल रह कर माँगती, अपने पति का प्यार ।।
भरा माँग में उम्र भर , रहे सदा सिन्दूर ।
हरदम दमके आँख में , सदा सजन का नूर ।।
सुशील सरना /…
Added by Sushil Sarna on October 20, 2024 at 3:13pm — 3 Comments
मुझ को मेरी मंज़िल से मिला क्यूँ नहीं देते
आख़िर मुझे तुम अपना पता क्यूँ नहीं देते
जज़्बात के शोलों को हवा क्यूँ नहीं देते
तुम आग मुहब्बत की लगा क्यूँ नहीं देते
जब आप को बे इंतिहा मुझ से है मुहब्बत
फिर हाथ मेरी सम्त बढ़ा क्यूँ नहीं देते
जो बन के सितारे हैं रवां आँख से आँसू
ये ज़ीस्त की ज़ुल्मत को मिटा क्यूँ नहीं देते
जो…
ContinueAdded by Mamta gupta on October 12, 2024 at 11:30pm — 2 Comments
Added by Amod Kumar Srivastava on October 10, 2024 at 2:37pm — No Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है
ये कैसा मौसम आया है जिसका रंग ज़ुदाई है
घूमते रहते हैं कई साये दिल के अँधेरे कमरे में
काट रही है पल पल मन को ग़म की रात कसाई है
जंगल जंगल घूम रहा हूँ लेकर अपनी बेचैनी
ख़ामोशी में शोर बपा है ये कैसी तन्हाई है
ना जाने क्या सोच रही है मन ही मन बैठी दुल्हन
आँखों में इक हैरानी है चेहरे पे रानाई है
शादी का अवसर लाया है ग़म के साथ…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on October 5, 2024 at 10:40am — No Comments
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