दोहा सप्तक. .. . विरह
देख विरहिणी पीर को, बाती हुई उदास ।
गालों पर रुक- रुक बही , पिया मिलन की आस ।।
चैन छीन कर ले गया, परदेसी का प्यार ।
आहट उसकी खो गई, सूना लगता द्वार ।।
जलती बाती से करे, शलभ अनोखा प्यार ।
जल कर उसके प्यार में, तज देता संसार ।।
तिल- तिल तड़पे विरहिणी, कहे न मन की बात ।
आँखों से झर - झर बहें, प्रीति जनित आघात ।।
पिया मिलन में नींद तो, रहे नयन से दूर ।
पिया दूर तो भी नयन , जगने को मजबूर ।।
बड़ा अजब है…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 27, 2024 at 4:13pm — No Comments
क्षणभंगुर है आजकल, शीशे सा संकल्प।
राम सरीखा कौन अब, सारे मन के अल्प।।
*
जो आगन को लड़ रहे, भाई से हर शाम
कमतर देखो लग रहा, उन्हें राम का काम।।
*
सूपनखा की कट गयी, लछमन हाथों नाक
बनी रही फिर भी वही, तीन पात का ढाक।।
*
जनमर्यादा को करे, कौन राम सा त्याग
ढूँढा करते किन्तु सब, राम काज में दाग।।
*
दण्ड लखन को मृत्यु का, सीता को वनवास
सहा न क्या-क्या राम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2024 at 8:57am — No Comments
कितना भी दुविधा का क्षण हो
मन में केवल रामायण हो।।
*
बनना जितना राम असम्भव
उससे बढ़कर भरत कठिन है।
जीवन में चहुँ ओर मंथरा
जब उकसाती हर पलछिन है।।
कलयुग के सिर दोष न मढ़ना
देख स्वयम् को निज दर्पण हो।।
*
इच्छाओं के कुरुक्षेत्र में
भीष्म सरीखा जब हो घायल।
और ज्ञान के नभ मण्डल में
शंकाओं के छायें बादल।।
पर तुम विचलित कभी न होना
आस-पास कितना भी रण हो।।
*
गोवर्धन नित पड़े …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2024 at 12:21pm — 2 Comments
दोहा सप्तक. . . . विविध
मौन घाट मैं प्रेम का, तू चंचल जल धार ।
कैसे तेरे वेग से, करूँ अमर अभिसार ।।
जब आती हैं आँधियाँ, करती घोर विनाश ।
अपनी दम्भी धूल से, ढक देती आकाश ।।
मैं मेरा की रट यहाँ, गूँज रही हर ओर ।
निगल न ले इंसान को,और -और का शोर ।।
किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।
अपनेपन की आड़ में, लोग निकालें बैर ।।
अर्थ बिना संसार में, सब कुछ लगता व्यर्थ ।
आभासी दुश्वारियाँ, केवल हरता अर्थ ।।
कल ही कल की सोच में,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 25, 2024 at 5:00pm — No Comments
घोर घटा घन नाच नभ, मचा मनों में शोर।
विरह विरहणी तड़पती, सावन चंद चकोर।।
सुरेश कुमार 'कल्याण'
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 21, 2024 at 3:09pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . शीत
अलसायी सी गुनगुनी , उतरी नभ से धूप ।
बड़ा सुहाना भोर में, लगता उसका रूप ।।
धुन्ध चीर कर आ गई, आखिर मीठी धूप ।
हाथ जोड़ वंदन करें, निर्धन हो या भूप ।।
शीत ऋतु में धूप से , मिले मधुर आनन्द ।
गरम-गरम हो चाय फिर , रचें प्रेम के छन्द ।।
शीत भोर की धुंध में, ठिठुर रही है धूप ।
शरमाता है शाल में, गौर वर्ण का रूप ।।
धुन्ध भयंकर साथ फिर, शीतल चले बयार ।
पहन चुनरिया ओस की, भोर करे शृंगार ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 20, 2024 at 3:55pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . मतभेद
इतना भी मत दीजिए, मतभेदों को तूल ।
चाट न ले दीमक सभी , रिश्ते कहीं समूल ।।
मतभेदों को भूलकर, प्रेम करो जीवंत ।
एक यही माधुर्य बस , रहे श्वांस पर्यन्त ।।
रिश्तों के माधुर्य में , बैरी हैं मतभेद ।
सम्बन्धों का टूटना, मन में भरता खेद ।।
मतभेदों की किर्चियाँ, चुभतीं जैसे शूल ।
सम्बन्धों के नाश का, है यह कारण मूल ।।
जितना जल्दी भूलते , मतभेदों को लोग ।
जीवन के आनन्द का, उतना करते भोग ।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 19, 2024 at 2:51pm — No Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
कह रही है बहुत ये हवा आग से
तिश्नगी हर नगर की बुझा आग से।१।
*
जागते लोग बाधा सियासत कहे
चैन की नींद सब को सुला आग से।२।
*
ईश औषध बना बोल देते रहे
लोग चलने लगे विष बना आग से।३।
*
दूर से हाथ जोड़ो कि सपनों छिपा
जब पड़े आप का वास्ता आग से।४।
*
जल गये हाथ बच्चे के बूढ़ा कहे
खुश हुआ दोस्ती कर युवा आग से।५।
*
भूप अंधा हुआ आग हाथों में ले
झोपड़ी को भुला खेलता आग से।६।
*
इश्क…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 16, 2024 at 4:10am — No Comments
रोला छंद . . . .
हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।
सदा सत्य के साथ , राह पर चलते रहना ।
पथ में अनगिन शूल , करेंगे पैदा बाधा ।
जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।
***
जब तक तन में साँस , बहे यह जीवन धारा ।
विपदाओं से यार, भला कब जीवन हारा ।
सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।
उस दाता के खेल, जीव यह समझ न पाया ।
***
जब होता अवसान ,मृदा में मिलती काया ।
जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।
भोगों…
Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:43pm — No Comments
रोला छंद . . . .
हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।
सदा सत्य के साथ , राह पर चलते रहना ।
पथ में अनगिन शूल , करेंगे पैदा बाधा ।
जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।
***
जब तक तन में साँस , बहे यह जीवन धारा ।
विपदाओं से यार, भला कब जीवन हारा ।
सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।
उस दाता के खेल, जीव यह समझ न पाया ।
***
जब होता अवसान ,मृदा में मिलती काया ।
जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।
भोगों…
Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:42pm — No Comments
तुझे पाना ही बस मेरी चाह नहीं,
बदन मिल जाना ही इश्क़ की राह नहीं।
जिस्म का क्या है, मिट्टी में मिल जाएगा,
हाँ, मगर रूह को कोई परवाह नहीं।
लबों ने लबों को तो बाद में छुआ,
पहले तू रूह से हमारा हुआ।…
ContinueAdded by AMAN SINHA on November 10, 2024 at 7:59am — No Comments
दोहा पंचक. . . विविध
देख उजाला भोर का, डर कर भागी रात ।
कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।
गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।
सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।
धर्म - कर्म ईमान सब, बेमतलब की बात ।
क्षुधित उदर को चाहिए, केवल रोटी भात ।।
आँधी आई अर्थ की, दरकी हर दीवार ।
अपनी ही दहलीज पर, रिश्ते सब लाचार ।
नवयुग के परिवेश में, प्यार बना व्यापार ।
प्यार नहीं है जिस्म को, जिस्मानी दरकार ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 9, 2024 at 3:30pm — 3 Comments
सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार।
लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।।
मिले नहीं आधार, सत्य के बिन उद्घाटन।
शिक्षा, संस्कृति, अर्थ, मूल्य पर भी हो चिंतन।।
बिना ज्ञान-विज्ञान, न वर्णन है प्रासंगिक।
विषय सृजन की रहें, विषमताएँ सामाजिक।।1।।
सुनिए सबकी बात पर, रहे सहज अभिव्यक्ति।
तथ्यपरक हो दृष्टि भी, करें न अंधी भक्ति।।
करें न अंधी भक्ति, इसी में है अपना हित।
निर्णय का अधिकार, स्वयं सँग रखें सुरक्षित।।
कुछ करने के पूर्व, उचित को हिय…
Added by रामबली गुप्ता on November 4, 2024 at 8:00pm — 9 Comments
एक ही सत्य है, "मैं"
एक ही सत्य है, "मैं"
श्वेत हूँ मैं ,
और श्याम भी मैंं ।
मैं ही क्रोध हूँ,
और काम भी मैं।
उस ईश्वर का
मैं रूप नहीं,
स्वयं ईश्वर हूँ,
मैं दूत नहीं।
एक ही सत्य है, "मैं"
कर्म भी मैं हूँ,
और फल भी मैं,
धर्म भी मैं,
और अधर्म भी मैं।
कर्ता भी मैं,
और कांड भी मैं,
विपत्ति भी मैं,
और समाधान भी मैं।
तुम जितना
मुझमें समाओगे,
उतना ही
मुझको…
Added by AMAN SINHA on November 2, 2024 at 5:56am — No Comments
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