Added by sanjiv verma 'salil' on December 31, 2010 at 10:57pm — 1 Comment
नये साल का गीत
कुछ ऐसा हो साल नया
संजीव 'सलिल'
*
कुछ ऐसा हो साल नया,
जैसा अब तक नहीं हुआ.
अमराई में मैना संग
झूमे-गाये फाग सुआ...
*
बम्बुलिया की छेड़े तान.
रात-रातभर जाग किसान.
कोई खेत न उजड़ा हो-
सूना मिले न कोई मचान.
प्यासा खुसरो रहे नहीं
गैल-गैल में मिले कुआ...
*
पनघट पर पैंजनी बजे,
बीर दिखे, भौजाई लजे.
चौपालों पर झाँझ बजा-
दास कबीरा राम भजे.…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on December 31, 2010 at 6:25pm — 1 Comment
Added by AjAy Kumar Bohat on December 31, 2010 at 6:08pm — 3 Comments
Added by Bhasker Agrawal on December 31, 2010 at 5:00pm — 3 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 31, 2010 at 4:34pm — 4 Comments
(दीपक शर्मा 'कुल्लुवी')
गतांक - 10 से आगे...
दोस्तों मैं जाते हुए साल 2010 कि बिदाई और आते हुए नव वर्ष 2011 का स्वागत अपनें कुछ भजनों से करना चाहूँगा . खुदा आप सबको ढेर खुशियाँ प्रदान करे वैसे इसी सप्ताह उड़ीसा के मंदिर में घटित शर्मनाक घटना से मन अत्यंत दुखी है जिसमें एक विदेशी महिला को केवल इस बात के लिए मंदिर…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 31, 2010 at 4:00pm — No Comments
Added by rajni chhabra on December 31, 2010 at 2:55pm — No Comments
मन मे हो रही एक…
ContinueAdded by Mayank Sharma on December 31, 2010 at 1:59pm — No Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 31, 2010 at 1:00pm — No Comments
Added by Bhasker Agrawal on December 31, 2010 at 11:25am — No Comments
Added by Mayank Sharma on December 30, 2010 at 10:31pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on December 30, 2010 at 4:53pm — No Comments
Added by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 12:42pm — 6 Comments
Added by Ratnesh Raman Pathak on December 30, 2010 at 12:38pm — No Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 10:10am — 3 Comments
बिदाई गीत:
अलविदा दो हजार दस...
संजीव 'सलिल'
*
अलविदा दो हजार दस
स्थितियों पर
कभी चला बस
कभी हुए बेबस.
अलविदा दो हजार दस...
*
तंत्र ने लोक को कुचल
लोभ को आराधा.
गण पर गन का
आतंक रहा अबाधा.
सियासत ने सिर्फ
स्वार्थ को साधा.
होकर भी आउट, न हुआ
भ्रष्टाचार पगबाधा.
बहुत कस लिया
अब और न कस.
अलविदा दो हजार दस...
*
लगता ही नहीं, यही है
वीर…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 9:44am — 2 Comments
कैसी हो तुम?
वैसी ही शांत, संयमित और अपने को सहेजते हुए I
भाग्यशाली है वह,
जो तुम्हारे साथ है
और सुन सकता है
तुम्हारे मौन द्वारा पुकारे उसके नाम को I
भाग्यशाली है वो हवा,
जो अभी बहुत हल्के से
किरणों के बावजूद तुम्हे छूकर गई है I
भाग्यशाली है वो जल,
जो छोड़े जाने से पूर्व
तुम्हारी अंजलि में कुछ देर रुककर
तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाता है I
भाग्यशाली हैं वो कभी कभी कहे गये…
ContinueAdded by Veerendra Jain on December 29, 2010 at 5:30pm — 10 Comments
Added by satish mapatpuri on December 29, 2010 at 3:00pm — 3 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 29, 2010 at 1:30pm — 4 Comments
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