गज़ल
बह्र : 2122 1212 22
जाल सैयाद नें बिछाया है
कैद में सोन पंछी आया है..
टीसता ज़ख्म पीपता रिश्ता
सब्र की आड़ में छिपाया है..
हारी बाज़ी पलट सका वो ही
संग…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on June 3, 2013 at 10:30pm — 25 Comments
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