आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत
अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत
जैसे सूरज में किरण, चन्दन बसे सुगंध
प्रियतम से है प्रीत का, मधुरिम वह सम्बन्ध
क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव
सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव
संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त
आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त
प्रीत प्रखरता जाँचती, नित्य नियति की चाल
मोहन लोभन…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 29, 2013 at 1:30am — 28 Comments
छंद त्रिभंगी : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता, प्रति पद १०,८,८,६ पर यति, प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान, जगण निषिद्ध
रज कण-कण नर्तन, पग आलिंगन, धरती तृण-तृण, अर्श छुए
कर तन मन चंचल, फर-फर आँचल, मुक्त उऋण सी, पवन बहे
सुन क्षण-क्षण सरगम, अन्तर पुर नम, विलयन संगम, भाव बिंधे
सुन्दरतम नियमन, श्रुति अवलोकन, लय आलंबन, सृजन सुधे
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr.Prachi Singh on September 20, 2013 at 8:00pm — 25 Comments
१२२२...१२२२
नज़र दर पर झुका लूँ तो
मुहब्बत आज़मा लूँ तो
तेरी नज़रों में चाहत का
समन्दर मैं भी पा लूँ तो
बदल डालूँ मुकद्दर भी
अगर खतरा उठा लूँ तो
सियह आरेख हाथों का
तेरे रंग में छुपा लूँ तो
तेरी गुम सी हर इक आहट
जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो
तुम्हारे संग जी लूँ मैं
अगर कुछ पल चुरा लूँ तो
न कर मद्धम सी भी हलचल
मैं साँसों को…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 13, 2013 at 9:30am — 55 Comments
अविश्वास !
प्रश्नचिन्ह !
उपेक्षा ! तिरस्कार !
के अनथक सिलसिले में घुटता..
बारूद भरी बन्दूक की
दिल दहलाती दहशत में साँसे गिनता..
पारा फाँकने की कसमसाहट में
ज़िंदगी से रिहाई की भीख माँगता..
निशदिन जलता..
अग्निपरीक्षा में,
पर अभिशप्त अगन ! कभी न निखार सकी कुंदन !
इसमें झुलस
बची है केवल राख !
....स्वर्णिम अस्तित्व की राख !
और राख की नीँव पर
कतरा-कतरा ढहता
राख के घरौंदे…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 12, 2013 at 4:00pm — 25 Comments
सद्गुरु मणि अनमोल है, जीवन दे चमकाय
पारस तो कुंदन करे, गुरु पारस कर जाय //१//
गुरु बंधन से मुक्त कर, ब्रह्म मार्ग दिखलाय
छद्म समझिए रूप वह, जो बंधन जकड़ाय //२//
गुरु की कृपा अनंत है, गुरु का प्रेम अथाह
श्रद्धानत जो मन हुआ, तद्क्षण पाई राह //३//
भटका गुरु-गुरु खोजता, गुरु मिलया नहिं कोय
ज्ञान पिपासा जब जगी, प्रकट स्वतः गुरु होय //४//
गुरु का आदि न अंत है, गुरु नहिं केवल गात्र
एक अनश्वर सत्व है,…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 5, 2013 at 2:53pm — 38 Comments
हे देवपुरुष !
हे ब्रह्मस्वरूप !
कहती हूँ तुम्हें - श्रीकृष्ण !
पर
माधव, मैं -
वंशी धुन सम्मोहित
प्रेम…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 3, 2013 at 4:00pm — 33 Comments
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