“हैलो पूर्वा, शाम साढ़े सात बजे तक तैयार रहना, आज मिस्टर अग्रवाल की बिटिया का महिला संगीत है और रात को डिनर के लिए चलना है” अक्षय नें अपनी पत्नी से फोन पर कहा. पूर्वा नें हामी भरी और पार्टी के कपडे निकालने के लिए अल्मारी खोली. उफ़! कितनी भारी भारी साड़ियाँ, पर आज तो कुछ सौम्य सा पहनने का मन है, सोचते हुए पूर्वा नें पाकिस्तानी कढाई का एक बेहद खूबसूरत सूट निकला और तैयार होने लगी.
आँखों का हल्का सा मेकअप, आई लाईनर, काजल, बालों का ताजगी भरा स्टाईल, चन्दन का इत्र, छोटी सी बिंदी, हल्की सी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 29, 2012 at 9:58am — 27 Comments
देखा है
क्रूर वक़्त को,
पैने पंजों से नोचते
कोमल फूलों की मासूमियत
और बिलखते बिलखते
फूलों का बनते जाना पत्थर,
देखा है
पत्थर को गुपचुप रोते
फिर कोमलता पाने को
फूल सा खिल जाने को
मुस्काने को, खिलखिलाने को,
देखा है
अटूट पत्थर का
फूल बन जाना
फिर कोमलता पाना
महकना, मुस्काना, इतराना,
देखा है
सब कुछ बदलते
आकाश से पाताल तक
फिर भी मैं वही हूँ…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 26, 2012 at 9:38am — 10 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on November 21, 2012 at 10:45am — 6 Comments
जब वो आते धूम मचाते
मन अंतर पर वो छा जाते
खुशियों के लाते उपहार,
क्या सखी साजन? नहीं त्यौहार.
रंग गेहुआ कड़कदार वो
बच्चों बूढों सबका यार वो
भटके, फिर भी वो गली गली
क्या सखी साजन? नहीं मूंगफली.
घुले हवा जब उसकी खुशबू
रहे नहीं तब मन पर काबू
दिल पर छाए उसका जलवा
क्या सखी साजन? नहीं सखी हलवा.
Added by Dr.Prachi Singh on November 6, 2012 at 6:58pm — 22 Comments
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