2212/ 1211/ 2212/ 12
चेहरा छुपा लिया है सभी ने नका़ब में,
परदा नशीं बने हैं सभी इस अ़ज़ाब में।
आक़ा हो या अ़वाम सभी फ़िक्रमन्द हैं,
अब घिर चुकी है पूरी जमाअ़त इताब में।
फ़ाक़ाकशी न कर दे कहीं ज़िन्दगी फ़ना,
सब लोग मुब्तिला हैं इसी इज़्तिराब में।
करता रहा ग़रूर सदा जिस ग़िना पे तू ,
क़ुदरत न कुछ है आज तेरे इस निसाब में।
क्या ये अ़ज़ाब है या कोई इम्तिहान है ?,
ये …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on April 20, 2020 at 5:30pm — 6 Comments
रौशनी दिल में नहीं हो तो ख़तर बनता है,
आग सीने में लगी हो तो शरर बनता है।
जिसको ढाला न गया हो किसी भी साँचे में,
इब्ने आदम यूं ही हरगिज़ न बशर बनता है।
टूट जाते हैं कई रिश्ते ग़लत फ़हमी से,
रंजिशें ख़ुद ही भुला दे जो, बशर बनता है।
बात जो निकली ज़बां से न वो फिर रुकती है,
राज़ हो जाए अ़यां गर, तो ज़ह'र बनता है।
अदबियत जिसको विरासत में ही मिल जाती हो,
तब कहीं जा के 'अ़ली' कोई 'जिगर'…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on April 6, 2020 at 6:26pm — 5 Comments
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