For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कवि - राज बुन्दॆली's Blog (94)

गीत (लावणी व कुकुभ मिश्रित)

आधार छन्द : 16+14 लावणी व कुकुभ मिश्रित,,



कोयल कुहुकी मैना बोली,भौंरे गूँजे भोर हुई ।।

आँख चुराये चन्दा भागा,रैन बिचारी चोर हुई ।।

कोयल कुहुकी,,,,



पूरब में ज्यों लाली निकली,सजा आरती धरा खड़ी,

उत्तुंग हिमालय पर लगता,कंचन की हो रही झड़ी,

बर्फ लजाकर लगी पिघलने,हिमनद रस की पोर हुई ।।(1)

कोयल कुहकी मैना बोली,भौंरे,,,,



सात अश्व के रथ पर चढ़कर,आ गए दिवाकर द्वारे,

स्वागत में मुस्काई कलियाँ,भँवरों नें मन्त्र उचारे,

सूर्यमुखी को देख…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2017 at 12:00am — 4 Comments

गीत,,,,,,

२१२२  २१२२  २१२२  २१२२

**************************



गुनगुनाकर देखिएगा आप भी यह गीत मेरा ।।

दोपहर की धूप में आभास होगा नव सवेरा ।।

गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,



तप्त सूरज शीश पर जब अग्नि वर्षा कर रहा हो,

ऊष्णता के हृदविदारक तीर तरकस भर रहा हो,

तब प्रभाती गीत की तुम छाँव में करना बसेरा ।।(1)

दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,,,

गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,



कोकिला के कण्ठ से माँ भारती का गान सुनना,

व्योम में प्रतिध्वनित होती सप्त सरगम…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 13, 2017 at 7:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल,,

वज़्न : 1222 1222 1222 1222

मिलेंगी कुर्सियाँ लेकिन सियासी फ़न ज़रूरी है ।।

जुटाना है अगर बहुमत लचीलापन ज़रूरी है ।।(1)



कई पतझड़ यहाँ आके गये अफ़सोस मत करिये,

बहारों के लिए हर साल में सावन ज़रूरी है ।।(2)



हवाओं नें कसम खा ली जले दीपक बुझाने की,

उजाला ग़र बचाना है खुला दामन ज़रूरी है ।।(3)



वफ़ा की बात करते हो मियाँ इस दौर में तुम भी,

जहाँ शतरंज की बाज़ी बिछी हो धन ज़रूरी है ।।(4)



अगर कोई कहे तुमसे बताओ प्यार के मानी,…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 11, 2017 at 11:30pm — 12 Comments

सरसी छन्द,,,

सरसी छन्द :

शिल्प :16,11 मात्राएँ चरणान्त गुरु+लघु

****************************

प्रसंग : "धनुष यज्ञ" रामचरित मानस

****************************



सुनें जनक के वचन लखन नें,उमड़ पड़ा आक्रोश ।।

दहल उठी थीं दसों दिशायें,देख लखन का जोश ।।

लगता ज्वालामुखी खड़ा हो,भरे हृदय में रोष ।।

या फ़िर जैसॆ प्रलय सामने,खड़ा हुआ ख़ामोश ।।



काँप उठी थी सभा समूची,नत भूपॊं की दृष्टि ।।

लगता सम्मुख खड़ा शेष अब,खा जाएगा सृष्टि ।।

भृकुटि तनीं भुजदण्ड फड़कते,रक्त…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 19, 2016 at 10:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल,,,

2222 2222 2222 222



पीछे मुड़कर जब भी देखा मौन खड़ा साकार मिला ।।

इसकी आँहें उसके आँसू बिखरा बिखरा प्यार मिला ।।(1)



मतलब की इस दुनियाँ में सब यार मिले हैं मतलब के,

मतलब से है मतलब सबको मतलब का मनुहार मिला ।।(2)



झूम रहीं नफ़रत की फसलें बीज सभी ने बोये हैं,

अपनों के सीनों पर चलता अपनों का हथियार मिला ।।(3)



खून खराबा देख रहा वह अपनी अनुपम दुनियाँ में,

सबकी किस्मत लिखने वाला आज स्वयं लाचार मिला ।।(4)



अज़ब निराले खेल यहाँ के…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 15, 2016 at 2:30am — 6 Comments

घनाक्षरी छन्द :-

1) जलहरण घनाक्षरी छन्द

-------------------

यशोदा को छैया सखी,छलिया छबीलो छैल,

छेड़त है नित्य प्रति,यमुना के घाट पर ।।

कंकरिया मार मार,गगरिया फोर डारै,

ठाढ़ो ठहाके लगावै,खूब ढीठ डाँट पर ।।

छीन लेत दही दूध,लूट लेत माखन वो,

तके रोज ठाढ़ो रहै,गोकुल की बाट पर ।।

चंचल चपल चल,चितचोर श्याम लटो,

आज रात सपनें में,आइ गयो खाट पर ।।(1)





२)रूप घनाक्षरी छन्द :-



बात नहीं करें आज,रूठ गये बृजराज,

हार गए नैना सखी,श्याम मग हेर हेर… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 11, 2016 at 9:53pm — 10 Comments

ग़ज़ल,,,,

ग़ज़ल,,,,,

,,,,,,,,,,,,,,,,



1222,1222,1222,1222



तुम्हारा अश्क़ गंगा है हमारा अश्क़ पानी है ।।

तुम्हारा इश्क़ लैला है हमारा क्यूँ कहानी है ।।(1)



छुपाकर अब तलक़ रक्खा गुलाबी गुल किताबों में,

हमारे प्यार की आखिर वही तो इक निसानी है ।।(2)



लिखे थे ख़त कभी तुमनें मुझे दो चार लफ़्ज़ों में,

कसम से आज भी उनमें महकती ज़ाफ़रानी है ।।(3)



शिकायत कर रहा है एक गजरा मोंगरे का अब,

हुई क्यों दूर यूँ मुझसे अचानक रातरानी है ।।(4)



नहीं… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 2, 2016 at 10:36am — 10 Comments

ग़ज़ल

फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ा

.

इक तरफा यारी यार निभाऊँ क्यूँ कर ।।

फोकट में डेली चाय पिलाऊँ क्यूँ कर ।।(1)



रोज सुबह तू दूध जलेबी ठसक रहा,

ऊपर से नामी ग़ज़ल सुनाऊँ क्यूँ कर ।।(2)



बन हीरो भटक रहा खुर्राट निठल्ला,

तेरा खरचा अब और चलाऊँ क्यूँ कर ।।(3)



बनिया भी अपना पैसा माँग रहा है,

तेरी खातिर मैं नाक छुपाऊँ क्यूँ कर ।।(4)



सारे लफड़े-झगड़े तू देख सलट खुद,

तेरे लफड़ों में टाँग अड़ाऊँ क्यूँ कर ।।(5)



उस लड़की के…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 30, 2016 at 2:30am — 8 Comments

गज़ल,,,,,

                       

एक गज़ल,,,,

===========================

वज़्न = २१२२   २१२२  २१२२ २१२

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन

===========================



सूख जातॆ फ़ूल पत्तॆ शाख़ भी हिलती नहीं !!

क्यूँ ग़रीबी कॆ बगीचॆ मॆं कली खिलती नहीं !!(१)



बॆटियॊं का बाप हूँ दिल जानता है सच सुनों,

आज कॆ इस दौर मॆं बॆटी सहज पलती नहीं !!(२)



बात करतॆ हॊ यहाँ अच्छॆ दिनॊं की खूब तुम,

तीरग़ी सॆ है भरी यॆ रात क्यूँ ढलती नहीं !!(३)



दॆख लॊ मुझकॊ…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 15, 2015 at 12:16am — 12 Comments

एक गज़ल,

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

---------------------------------------------------



बारिषॊं मॆं भीग जाना नित नहाना याद है !!

आसमां पर उन पतंगॊं का उड़ाना याद है !!(१)



टप-टपातीं बूँद बादल गरजतॆ आषाढ़ मॆं,

पॊखरॊं कॆ मध्य मॆढक टर-टराना याद है !!(२)



घॊड़ियॊं कॆ झुंड आतॆ थॆ कभी जब गाँव मॆं,

पूँछ उनकी खींचतॆ ही हिनहिनाना याद है !!(३)



श्रावणी त्यॊहार तॊ हॊता अनॊखा था बहुत,

लड़कियॊं का ताल मॆं कजली बहाना याद है!!(४)



खूब रॊतीं थी…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 8, 2015 at 3:30am — 12 Comments

दस दॊहॆ,,,(व्यसन मुक्ति)

दस दॊहा,,,(व्यसन मुक्ति)

==================

धुँआ उड़ाना छॊड़दॆ, मत भर भीतर आग !

सड़ जायॆंगॆ फॆफड़ॆ, हॊं अनगिनत सुराग़ !!(१)



जला जला सिगरॆट तू, मारॆ लम्बी फूंक !

रॊग बुलाता है स्वयं, कर कॆ भारी चूक !!(२)



बीड़ी सिगरिट फूँक कर, करॆ दाम बर्बाद !

मीत न आयॆं पूछनॆं,जब तन बहॆ मवाद !!(३)



कैंसर सँग टी.बी. मिलॆ,जैसॆ मिलॆ दहॆज़ !

खूनी खाँसी अरु दमा,अंत मौत की सॆज़ !!(४)



मजॆ उड़ाता है अभी, गगन उड़ाता छल्ल !

खूनी खाँसी जब उठॆ, रक्त बहॆगा भल्ल…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 7, 2015 at 1:55am — 5 Comments

दस दॊहॆ,,,,,(माँ)

दस दॊहॆ,,,,,(माँ)

===========

प्रथम खिलायॆ पुत्र कॊ,बचा हुआ जॊ खाय !

दॊ रॊटी कॊ आज वह, घर मॆं पड़ी ललाय !! (१)



दूध पिलाया जब उसॆ, सही वक्ष पर लात !

वही पुत्र अब डाँट कर, करता माँ सॆ बात !! (२)



सूखॆ वसन सुलाय सुत,रही शीत सिसियात !

चिथड़ॊं मॆं अँग अँग ढँकॆ, जागी सारी रात !! (३)



नज़ला खाँसी ताप या, गर्म हुआ जॊ गात !

एक छींक पर पुत्र की, जगतॆ हुआ प्रभात !! (४)



गहनॆ गिरवी धर दियॆ, जब जब सुत बीमार !

मज़दूरी कर कर भरा,…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 6, 2015 at 4:00am — 9 Comments

अरसात सवैया छन्द

शिल्प = भगण X 7 + रगण
ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।।  ऽ।ऽ
 

ऊपर सींकि टँगाय धरी हति,झूलत ती लटकी नित जीत की !!
मॊहन खाइ गयॊ सगरॊ दधि, फॊरि गयॊ मटकी नवनीत की !!
भीतर आइ लखी गति मॊ पर,गाज गिरी टटकी अनरीत की !!
‘राज’ कहैं नहिं दॆंउ उलाहन,भीति हियॆ अटकी कछु प्रीत की !!

"राज बुन्दॆली"
मौलिक एवं अप्रकाशित,,,,,,,

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 5, 2015 at 4:00am — 5 Comments

चकोर सवैया

चकोर सवैया

================

भगण X 7 + गुरु + लघु
================

फॊरत है मटकी नित मॊहन, नंद यशॊमति तॆ कहु आज !!
चीर चुरावत गॊपिन कॆ सुनु, वॊहि न आवत एकहु लाज !!
नाँवु धरैं नर नारि सबै नित, नाँवु धरै यदु वंश समाज !!
खीझत खीझत ‘राज’कहैं अलि,खूब सताइ रहा बृजराज !!

"राज बुन्दॆली"

मौलिक व अप्रकाशित

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 4, 2015 at 5:30am — 6 Comments

मनहरण घनाक्षरी छन्द

मनहरण घनाक्षरी छन्द
***********************



पैरॊं की धूल सॆ तर,गई नार गौतम की,

पैर धो कॆवट पाया, जग मॆं सम्मान है !!

राज-पाट पाया भाई,भरत नॆं अयॊध्या का,

किन्तु प्रभु…
Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 3, 2015 at 12:14am — 8 Comments

एक प्रयास ग़ज़ल,,,

कभी तुम चीन जाओगे कभी जापान जाओगे ।।

नया रुतबा दिखाने को कभी ईरान जाओगे ।।(1)



गिरानी के तले दबकर मरे जनता तुम्हारा क्या,

विदेशों में मियाँ खाने मिलें पकवान जाओगे ।।(2)



पड़े ओले किसानों के मुक़द्दर में बनीं पर्ची,

जताने तुम रहम-खोरी चले खलिहान जाओगे ।।(3)



मिलेंगे कब हमें अच्छे दिनों की आस है भाई,

विदेशी नोट लाने को कभी हनुमान जाओगे ।।(4)



हमारी बेवशी को तुम न समझोगे बड़े साहब,

ज़रा ख़ुद डूब कर देखो,हमें पहचान जाओगे ।।(5)…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 2, 2015 at 8:00am — 10 Comments

गज़ल,,,,,,

ज़मानॆ का चलन यारॊ यहाँ इक-दम निराला है !!

गिरा जॊ राह मॆं उसकॊ कहॊ किसनॆं सँभाला है !!(१)



चला जॊ राह ईमाँ की उसी पर है उठी उँगली,

सरीखा आँख मॆं चुभता सभी की तॆज भाला है !!(२)



चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,

कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है !!(३)



लिखी किसनॆ यहाँ तहरीर है ख़ूनी लिबासॊं की,

जहाँ दॆखॊ वहीं पॆ बस क़ज़ा का बॊल-बाला है !!(४)



वफ़ा की राह चलनॆं का नतीज़ा खून कॆ आँसू,

मग़र फिर भी वफ़ाऒं कॊ ज़हां मॆं खूब…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 1, 2015 at 1:30am — 7 Comments

ताटंक छन्द,,,,

ताटंक छन्द,,,,,,

************



आग लगी है नंदनवन मॆं,पता नहीं रखवालॊं का,

करॆं भरॊसा अब हम कैसॆ,कपटी दॆश दलालॊं का,

भारत माता सिसक रही है,आज बँधी ज़ंज़ीरॊं मॆं,

जानॆं किसनॆ लिखी वॆदना,उसकी हस्त लकीरॊं मॆं,



जिनकॊ चुनकर संसद भॆजा, चादर तानॆ सॊतॆ हैं,

संविधान कॆ अनुच्छॆद सब, फूट-फूट कर रॊतॆ हैं,

आज़ादी कॊ बाँध लिया अब, भ्रष्टाचारी डॊरी मॆं,

इन की कुर्सी रहॆ सलामत, जनता जायॆ हॊरी मॆं,



घाट  घाट पर ज़ाल बिछायॆ, बैठॆ यहाँ मछॆरॆ हैं,

दॆख मछरिया…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 21, 2015 at 1:14pm — 10 Comments

एक ग़ज़ल,,,

दिलॊं कॆ हौसले देखें घटाओं से ज़रा कह दॊ ।।

जलाये हैं चरागों को हवाओं से ज़रा कह दॊ ।।  (1)

तुम्हॆं मॆरी इबादत की कसम है ऐ मिरे क़ातिल,

अभी टूटा नहीं हूं मैं ज़फ़ाओं से ज़रा कह दॊ।। (2)

घनी ज़ुल्फ़ॆं मुझॆ बांधॆं इरादा तॊड़ दॆं मॆरा,

नहीं पालॆं भरम क़ातिल अदाऒं सॆ ज़रा कह दॊ !! (3)



मिलूँगा मैं गरीबों की दुआ में रोज तुमको अब,

बुला लेंगी मुझे अपनीं वफाओं से ज़रा कह दॊ ।। (4)



शहर सारे हुये पत्थर दिलों में रंज है…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 16, 2015 at 12:30am — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Saurabh Pandey's blog post गजल - जा तुझे इश्क हो // -- सौरभ
"आ. सौरभ सर श्राप है या दुआ जा तुझे इश्क़ हो मुझ को तो हो गया जा तुझे इश्क़ हो..इस ग़ज़ल के…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. नाथ जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. विजय जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. अजय जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. समर सर. पता नहीं मैं इस ग़ज़ल पर आई टिप्पणियाँ पढ़ ही नहीं पाया "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. रचना जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. तेजवीर सिंह जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - उन  के बंटे जो  खेत तो  कुनबे बिखर गए
"धन्यवाद आ. आशुतोष जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की-जिस्म है मिट्टी इसे पतवार कैसे मैं करूँ
"धन्यवाद आ. समर सर "
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Saurabh Pandey's blog post खत तुम्हारे नाम का.. लिफाफा बेपता रहा // सौरभ
"आ. सौरभ सर,मोएन जो दारो की ख़ुदाई से एक प्राचीन सभ्यता के मिले अवशेष अभी देख रहा हूँ..यह ग़ज़ल कैसे…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post खत तुम्हारे नाम का.. लिफाफा बेपता रहा // सौरभ
"आदरणीय, सहमति के लिए हार्दिक धन्यवाद"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service