खुशियों की सौगातें लाया
झूम के देखो सावन आया
चंचल सोख़ हवा इतराई
बारिश की बौछारें लाई
महक उठा अब मन का आँगन
भीनी भीनी सी खुशबू छाई
देख छटा हर मन हर्षाया
झूम के देखो सावन आया ...
मन की बगिया महक रही है
पंछी बन के चहक रही है
इच्छाओं को पंख मिल गए
दिल की धड़कन बहक रही है
मौसम में है खुमार छाया
झूम के देखो सावन आया ...
धरती बाहों को…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on August 14, 2018 at 11:21pm — 6 Comments
(122 122 122 122)
कोई बात दिल में छुपाते नहीं हैं
मगर आँसुओं को दिखाते नहीं हैं
सहे ज़ुल्म हमने सदा हँसते हँसते
मिले ज़ख्म कितने गिनाते नहीं हैं
ये बातें हैं दिल की सुनो तुम भी…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on February 18, 2018 at 8:00pm — 6 Comments
(1222 1222 122)
जिन्हें आने की फुरसत ही नहीं है
उन्हे मिलने की हसरत ही नहीं है
अगर तुझमें शराफत ही नहीं है
मुझे तेरी ज़रूरत ही नहीं है
डुबो देगी हमें ये बेईमानी
ये इंसानों की फ़ितरत ही नहीं है
उगलते हैं ज़ुबाँ से आग अपनी
बची इनमें शराफत ही नहीं है
चलो छोड़ो जुदा थी राह अपनी
हमें तुमसे शिकायत ही नहीं है
असल मुद्दों से ही भटकाये रखना
सियासत की रिवायत ही नहीं…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on February 4, 2018 at 6:31pm — 10 Comments
Added by नादिर ख़ान on December 29, 2017 at 10:30pm — 4 Comments
1.
शायद आज बच जाओ
साम दाम दण्ड भेद से
मगर एक कैमरा
नज़र रखे है
हर करतूत पर
बिना साम दाम दण्ड भेद के .....
2.
मत उलझाइये खेल
मत कीजिये घाल-मेल
सीधी है ... सीधी ही रहने दीजिये
जिंदगी की रेल
3.
उठ रहे हैं बच्चे
सूरज के जागने से पहले
ठिठुर रहे हैं बच्चे
पीठ में बोझ लिए
झेल रह हैं बच्चे
भविष्य का दण्ड…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 25, 2017 at 1:30pm — 10 Comments
उसे होश में आया देख डॉक्टर का नुमाइंदा पास आया और फरमान सुनाने लगा । अपने घर बात करके 15 हज़ार रुपये काउंटर में जमा करवा दो बाकि के पैसे डिस्चार्ज के समय जमा करा देना । मगर साहब मै बीमार नहीं, बस दो दिन से भूखा हूँ। उसकी आवाज़ घुट के रह गई, नुमाइंदा जा चुका था ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by नादिर ख़ान on December 9, 2017 at 10:00pm — 12 Comments
1.
उतारिए चश्मा
पोछिये धूल
चीज़ें खुदबखुद... साफ़ हो जाएँगी ।
2.
ज़रूरी है… सफाई अभियान
शुरुआत कीजिये
दिल से ....
3.
गंदगी सिर्फ मुझमे ही नहीं
तुम में भी है मित्र
ज़रा अंदर तो झाँको ....
4.
जब ईमान गिरवी हो
ज़मीर बिक चुका हो
कौन उठायेगा बीड़ा
समाज की सफाई का ....
5.
साफ़ नहीं होती गंदगी
बार बार उंगली दिखाने…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on November 26, 2017 at 8:00pm — 10 Comments
(22 22 22 22)
क्यूँ है तू बीमार मेरे दिल
गम से यूँ मत हार मेरे दिल
तय है इक दिन मौत का आना
इस सच को स्वीकार मेरे दिल
पहले ही से दर्द बहुत हैं
और न ले अब भार मेरे दिल
सुनकर भाषण होश न खोना
ये सब है व्यापार मेरे दिल
कौन यहाँ पर कब बिक जाए
रहना तू हुशियार मेरे दिल
झूठ खड़ा है सीना ताने
सच तो है लाचार मेरे दिल
दिल के कोने में रहने दे
प्यार…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on November 2, 2017 at 12:30am — 7 Comments
2212 1212 2212 12
कितना सुकून है तेरी यादों की छाँव में
लगता है जैसे बैठे हैं जन्नत की ठाँव में
फिरते हैं अब तलाश में जिसकी यहाँ वहाँ
मिलता था वो सुकूँ कभी पीपल की छाँव में
आँखों को इंतिज़ार है आने का आपके
मुड़कर तो आइये ज़रा अपने ही गाँव में
कुछ इस्तेमाल कीजिये अपना दिमाग भी
किसको मिला है फायदा नफरत के दाँव में
अब क्या सुबूत दें तुम्हें जद्दोजहद की हम
छाले पड़े हैं आज तक हम सब…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on May 15, 2017 at 12:00am — 11 Comments
वह किसान था
लड़ता रहा उम्र भर
कभी सूखे की मार से
तो कभी बाढ़ की तबाही से
कभी बेमौसम बारिश से
तो कभी ओला वृष्टि से .....
वह किसान था
सहता रहा उम्र भर
हर तक़लीफ
हर गम
ताकि भरा रहे पेट दूसरों का .....
वह किसान था
करता रहा गुज़ारा
बचे खुचे पर
वह सीख गया था, एडजस्ट करना
प्रक्रति के साथ......
वह किसान था
खुश रहता था
हर परिस्थिति…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on August 11, 2016 at 11:00am — 5 Comments
जब कदम बढ़ गए सरकशी की तरफ
आदमी चल पड़ा गुमरही की तरफ
मुतमइन हैं सभी अब अंधेरों में भी
देखता कौन है रोशनी की तरफ
पागलों की तरह भागते हम रहे
हमने देखा नही ज़िंदगी की तरफ
दुश्मनी कर चुके आप सबसे बहुत
कुछ कदम तो चलें दोस्ती की तरफ
सबने देखी मेरी मुस्कुराहट मगर
किसने देखा मेरी बेबसी की तरफ
बोझ गम का लिए क्यूँ खड़े हो मियां
इक पहल तो करो तुम खुशी की तरफ
आस…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on August 3, 2016 at 11:00am — 7 Comments
( 2122 1212 22/112 )
मैंने उसपर ही ऐतबार किया
बारहा जिसने मुझपे वार किया
मैं समझता रहा उसे अपना
उसने जड़ पर ही मेरे वार किया
तुमने अपने लिये तो फूल चुने
मेरे हिस्से में सिर्फ खार किया
फिर खुशी लौट कर नहीं आयी
हमने बस तेरा इन्तिज़ार किया
वो जो बुनियाद थी भरोसे की
शक ने रिश्ता वो तार तार किया
लौ खुदा से अभी लगाई थी
किसकी यादों ने बेकरार किया
गर…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on May 4, 2016 at 1:07pm — 18 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
है सही या गलत, सोचता कौन है ।
सच को सच आजकल बोलता कौन है ।
यूँ तो सब ही बराबर के हक़दार हैं
इक तराज़ू में पर तोलता कौन है ।
अब भी पानी की इक बूँद की आस में
रातभर चाँद को ताकता कौन है ।
माँ को गुज़रे हुए सालभर हो गए
हर बुराई से फिर रोकता कौन है ।
इक मुलाकात थी और कुछ भी न था
करवटें ले के फिर, जागता कौन हैं ।
बोझ गम का लिये आ गये जब यहाँ
कुछ कहो तो…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on February 23, 2016 at 4:00pm — 4 Comments
वो छुपाते रहे अपना दर्द
अपनी परेशानियाँ
यहाँ तक कि
अपनी बीमारी भी….
वो सोखते रहे परिवार का दर्द
कभी रिसने नहीं दिया
वो सुनते रहे हमारी शिकायतें
अपनी सफाई दिये बिना ….
वो समेटते रहे
बिखरे हुये पन्ने
हम सबकी ज़िंदगी के …..
हम सब बढ़ते रहे
उनका एहसान माने बिना
उन पर एहसान जताते हुये
वो चुपचाप जीते रहे
क्योंकि वो पेड़…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on February 3, 2016 at 6:30pm — 12 Comments
अरे ये क्या किया आपने, वक्त ज़रूरत के लिए एक ज़मीन थी वो भी बेच दी कल को बेटी की शादी करनी है और रिटायरमेंट के बाद के लिए कुछ सोचा है । एक सहारा था वह भी चला गया ।
अरे भाग्यवान, बेटी के इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन के लिए ही तो बेचा है, और बुढ़ापे का सहारा ये ज़मीन जायजाद नहीं हमारे बच्चे हैं और उनकी तरबियत की जिम्मेदारी हमारी है । रही बात शादी की तो, न लड़की की शादी में दहेज़ देंगे, न लड़के की शादी में दहेज़ लेंगे
हिसाब बराबर है, न लेना एक न देना दो ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by नादिर ख़ान on December 2, 2015 at 10:45pm — 16 Comments
1222 1222 1222 1222
बुराई का बुराई से जहाँ में सामना क्यूँ है
कि इतनी ज़ुल्म की बढ़ती हुयी अब इन्तेहा क्यूँ है...१
हमारी राह में तुमने, तुम्हारी राह में हमने
जो बोये थे वही कटेंगे इतना सोचता क्यूँ है ....२
कभी मेरी भी बातें सुन कभी मुझसे भी आकर मिल
तेरी परछाई हूँ मुझसे तू इतना भागता क्यूँ है ..३
ज़रा सा देख ले तू इक नज़र मेरे भी बच्चों को
तेरे बच्चों के जैसे हैं, तू इनसे रूठता क्यूँ है…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 1, 2015 at 6:00pm — 13 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२
अपनी खुशियों पे नया रंग चढ़ाकर देखो
बंद पिंजरे के ये पंछी तो उड़ाकर देखो
मेरी आँखों से बहा जाता है आँसू बनकर
अपनी यादों में कभी खुद को जलाकर देखो
बात बन जायेगी बिगड़ी है जो सदियों से यहाँ
तुम ज़रा अपनी अना को तो झुकाकर देखो
सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना
तुम हकीकत नज़र आज मिलाकर देखो
तुमको हर नेकी के बदले में मिलेगी खुशियाँ
राह में सबके…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on November 24, 2015 at 6:30pm — 12 Comments
भरी दोपहरी मई के महीने में वो दरवाज़े पर आया और ज़ोर ज़ोर से आवाज़ लगाने लगा खान साहब…….. खान साहब……..| मेरी आँख खुली मैंने बालकनी से झाँका | एक ५५-६० साल का अधबूढ़ा शख्स, पुराने कपड़ों, बिखरे बाल और खिचड़ी दाढ़ी में सायकल लिए खड़ा है। मुझे देखते ही चिल्ला पड़ा फलाँ साहब का घर यही है| मैंने धीरे से हाँ कहा और गर्दन को हल्की सी जेहमत दी | वो चहक उठा उन्हें बुला दीजिये | मैंने कहा अब्बा सो रहे हैं, आप मुझे बताएं | उसने ज़ोर देकर कहा, नहीं आप उन्हें ही बुला दीजिये , कहियेगा फलाँ शख्स आया है। मुझे बड़ा…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 28, 2015 at 12:30pm — 7 Comments
2122 1122 1122 22
अपनी आँखों से ये मंज़र नहीं देखे जाते
हाथ में अपनों के खंजर नहीं देखे जाते
दुश्मनी की भी कोई हद तो मुक़र्रर कर दो
इन गरीबों के जले घर नहीं देखे जाते
बातों ही बातों में शमशीर निकल जाती है
हमसे बच्चों के ये तेवर नहीं देखे जाते
खूबसूरत हैं बहुत आपकी प्यारी आँखें
गम के है इनमें जो सागर नहीं देखे जाते
याद गावों की मुझे अब भी सताती है बहुत
अपने पुरखों के ये खण्डर…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on September 30, 2015 at 11:00am — 4 Comments
है काम बहुत कुछ करने को, यूँ हमने कब आराम किया दिन न देखा रात न देखी बस जीवन भर काम किया
मज़दूर हूँ मै, मजबूर हूँ मै, हर हाल में मैंने काम किया फिर भी सबने मेरे आगे, दर्द का कड़वा जाम किया
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Added by नादिर ख़ान on July 26, 2015 at 4:30pm — 7 Comments
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