1222 1222 122
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जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में
वो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी में
दिखाई ही न दें मुफ़्लिस जहां से
न हो इतनी बुलंदी बंदगी में
दुआ करना ग़रीबों का भला हो …
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 22, 2024 at 3:30pm — 5 Comments
212 212 212 212
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चोर का मित्र जब से बना बादशाह
चोर को चोर कहना हुआ है गुनाह
वो जो संख्या में कम थे वो मारे गए
कुछ गुनहगार थे शेष थे बेगुनाह
आज मुंशिफ के कातिल ने हँसकर कहा
अब मेरा क्या करेंगे सुबूत-ओ-गवाह
खून में उसके सदियों से व्यापार है
बेच देगा वतन वो हटी गर निगाह
एक बंदर से उम्मीद है और क्या
मारता है गुलाटी करो वाह वाह
एक मौका सुनो फिर से दे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 5, 2024 at 12:46pm — 2 Comments
बह्र : 221 2121 1221 212
ज़ालिम बढ़ा दे ज़ुल्म ज़रा हर ख़ता के बाद
होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बाद
किसने बदल दिया है ये कानून देश का
होने लगी है जाँच यहाँ अब सज़ा के बाद
बीमारियों से देश बचा लोगे जान…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 13, 2023 at 8:17pm — 2 Comments
पास आ गया है बेहद
जब से चुनाव फिर संसद का
राजनीति की चिमनी जागी
धुँआँ उठा है नफ़रत का
आहिस्ता-आहिस्ता
सारी हवा हो रही है जहरीली
काले-काले धब्बों ने …
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 2, 2023 at 8:26pm — 4 Comments
महावृक्ष बनकर लहराता
नफ़रत का पौधा
पत्ते हरे फूल केसरिया
लाल-लाल फल आते
प्यास लहू की लगती जिनको
आकर यहाँ बुझाते
सबसे ज्यादा फल खाने की…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 26, 2023 at 9:53am — 4 Comments
मैना बैठी सोच रही है
पिंजरे के दिल में
मिल जाता है दाना पानी
जीवन जीने में आसानी
सुनती सबकी बात सयानी
फिर भी होती है हैरानी
मुझसे ज्यादा ख़ुश तो
चूहा है अपने बिल में
जब तक बोले मीठा-मीठा
सबको लगती है ये सीता
जैसे ही कहती कुछ अपना
सब कहते बस चुप ही रहना
अच्छी चिड़िया नहीं बोलती
ऐसे महफ़िल में
बहुत सलाखों से टकराई
पर पिंजरे से निकल न पाई
चला न…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 16, 2022 at 11:30am — 4 Comments
तड़प रही है
गर्म रेत पर
मरती हुई नदी
पहले तो बाँधों ने लूटा
फिर पावर प्लांटों ने लूटा
तिस पर सारे नाले मिलकर
हर पल इसको देते कैंसर
जल्द हमारे कंधों पर
होगी ये लाश लदी
मरती नदियाँ मरते जंगल
पूँजी का मंगल ही मंगल
छोड़ सूर्य की साफ ऊर्जा
होता जीवाश्मों पर दंगल
बात-बात पर खाँस रही है
ये बीमार सदी
गर्म हो रही सारी दुनिया
भजन करें सब ले…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 16, 2022 at 12:00am — 7 Comments
बह्र : 22 22 22 22
जब तक पैसे को पूजोगे
चोर लुटेरे को पूजोगे
जल्दी सोकर सुबह उठोगे
तभी सवेरे को पूजोगे
खोलो अपनी आँखें वरना
सदा अँधेरे को पूजोगे
नहीं पढ़ोगे वीर भगत को
तुम बस पुतले को पूजोगे
ईश्वर जाने कब से मृत है
कब तक…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 27, 2022 at 7:30pm — 14 Comments
22 22 22 22 22 22
घुटकर मरने जीने पर भी टैक्स लगेगा
एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा
नदी साफ तो कभी न होगी लेकिन एक दिन
दर्या, घाट, सफ़ीने पर भी टैक्स लगेगा
दंगा, नफ़रत, हत्या कर से मुक्त रहेंगे
लेकिन इश्क़ कमीने पर भी टैक्स लगेगा
पानी, धूप, हवा, मिट्टी, अम्बर तो छोड़ो
एक दिन चौड़े सीने पर भी टैक्स लगेगा
भारी हो जायेगा खाना रोटी-चटनी
धनिया और पुदीने पर भी टैक्स…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2022 at 6:34pm — 5 Comments
पूछा मैंने पानी से
क्यूँ
सबको गीला कर देता है
पानी बोला
प्यार किया है
ख़ुद से भी ज़्यादा औरों से
इसीलिये चिपका रह जाता हूँ
मैं अपनों…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 19, 2021 at 10:30pm — 3 Comments
याद तुम्हारी क्या कहूँ, यूँ करती तल्लीन।
घर, दफ़्तर, दुनिया, ख़ुदी, सब कुछ लेती छीन।
जल बिन मछली से कभी, मेरी तुलना ही न।
मैं आजीवन तड़पता, कुछ पल तड़पी मीन।
प्रेम पहेली एक है, हल हैं किन्तु अनेक।
दिल नौसिखिया खोजता, इनमें से बस…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 21, 2021 at 7:00pm — 5 Comments
गड़गड़ाकर
खाँसता है
एक बूढ़ा ट्रैक्टर
डगडगाता
जा रहा है
ईंट ओवरलोड कर
सरसराती कार निकली
घरघराती बस…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 26, 2021 at 9:21pm — 11 Comments
दूसरी मुहब्बत के नाम
मेरे दूसरे इश्क़,
तुम मेरे जिंदगी में न आते तो मैं इसके अँधेरे में खो जाता, मिट जाता। तुम मेरी जिन्दगी में तब आये जब मैं अपना पहला प्यार खो जाने के ग़म में पूरी तरह डूब चुका था। पढ़ाई से मेरा मन बिल्कुल उखड़ चुका था। स्कूल बंक करके आवारा बच्चों के साथ इधर-उधर घूमने लगा था। घर वालों से छुपकर सिगरेट और शराब पीने लगा था। आशिकी, पुकार और भी न जाने कौन-कौन से गुटखे खाने लगा था। मेरे घर के पीछे बने ईंटभट्ठे के मजदूरों के साथ जुआ खेलने लगा था। दोस्तों के साथ मिलकर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 3, 2021 at 10:30pm — No Comments
११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२
किसी रात आ मेरे पास आ मेरे साथ रह मेरे हमसफ़र
तुझे दिल के रथ पे बिठा के मैं कभी ले चलूँ कहीं चाँद पर
तुझे छू सकूँ तो मिले सुकूँ तुझे चूम लूँ तो ख़ुदा मिले
तू जो साथ दे जग जीत लूँ तूझे पी सकूँ तो बनूँ अमर
मेरे हमनशीं मेरे हमनवा मेरे हमक़दम मेरे हमजबाँ
तुझे तुझ से लूँगा उधार, फिर, भरूँ किस्त चाहे मैं उम्र भर
कहीं धूप है कहीं छाँव है कहीं शहर है कहीं गाँव…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2021 at 6:10pm — 4 Comments
22 22 22 22 22 2
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चेहरे पर मुस्कान बनाकर बैठे हैं
जो नकली सामान बनाकर बैठे हैं
दिल अपना चट्टान बनाकर बैठे हैं
पत्थर को भगवान बनाकर बैठे हैं
जो करते बातें तलवार बनाने की…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2021 at 9:30pm — 4 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अगर हक़ माँगते अपना कृषक, मजदूर खट्टे हैं
तो ख़ुश्बू में सने सब आँकड़े भरपूर खट्टे हैं
मधुर हम भी हुये तो देश को मधुमेह जकड़ेगा
वतन के वासिते होकर बड़े मज़बूर, खट्टे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2021 at 10:28pm — 7 Comments
काश कहीं से मिल जाती इक जादू की हाथ घड़ी
मैं दस साल घटा लेता तू होती दस साल बड़ी
माथे से होंठों तक का सफर न मैं तय कर पाया
रस्ता ऊबड़-खाबड़ था ऊपर से थी नाक बड़ी
प्यार मुहब्बत की बातें सारी भूल चुका था मैं
किस मनहूस घड़ी में…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 12, 2020 at 11:29pm — 1 Comment
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
जब चाहें तब इश्क़ करें तो कितना अच्छा हो
दुनिया में सब इश्क़ करें तो कितना अच्छा हो
ये दुनिया बेहतर हो दिन भर ऐसे काम करें
फिर सारी शब इश्क़ करें तो कितना अच्छा हो
अट्ठारह घंटे खटते जो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 18, 2020 at 11:25pm — 4 Comments
जब तक रहना जीवन में
फुलवारी बन रहना
पूजा बनकर मत रहना
तुम यारी बन रहना
दो दिन हो या चार दिनों का
जब तक साथ रहे
इक दूजे से सबकुछ कह दें…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 25, 2019 at 7:33pm — 5 Comments
ट्रेन समय की
छुकछुक दौड़ी
मज़बूरी थी जाना
भूल गया सब
याद रहा बस
तेरा हाथ हिलाना
तेरे हाथों की मेंहदी में
मेरा नाम नहीं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 31, 2019 at 8:07pm — 11 Comments
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