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आदरणीय, अमीरुद्दीन साहिब, प्रणाम ।
आपने शे'र काफी दुरुस्त कर दिए,
हमने भी यह ग़ज़ल पढ़ी लेकिन इतनी नज़र अच्छी नहीं कि इस मेयार तक देख पाते,
आपके एक सवाल है,
"शे'र का शिल्प कमज़ोर है" इस का मतलब क्या हुआ और शिल्प को दुरुस्त कैसे किया जाता है,
मुझे पता नहीं इस मंच पर सवाल जवाब कहाँ किया जाता है, यह कमेंट पढ़ा तो हमने यहीं पूछ लिया ग़लती हुई हो तो मुआ'फ़ी चाहूंगा,
हमने आपको एक मैसेज भी किया था, लेकिन पता नहीं आपको वो मिला नहीं कि आपने वो देखा नहीं अभी तक, हम मुंतज़िर थे आपके जवाब का, सादर।
आदरणीय दण्डपाणि नाहक़ जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बहुत ख़ूबसूरत इन्सानी जज़्बात आपने अपनी ग़ज़ल में पिरोए हैं बधाई स्वीकार करें, कुछ सुझाव पेश करने की जसारत कर रहा हूंँ :
इश्क़ से ना हो राब्ता कोई इश्क़ से है न राब्ता कोई
ज़िन्दगी है की हादसा कोई ज़िन्दगी है कि हादिसा कोई
वो पुराने ज़माने की बात है बात वो है गये ज़माने की
(ये मिसरा बह्र में नहीं है) अब नहीं करता है वफ़ा कोई
ज़िन्दगी के जद्दोजहद अपने मरहले ज़िन्दगी में रहते हैं
(ये मिसरा बह्र में नहीं है) मौत का है न फ़लसफ़ा कोई
यहाँ सब बे अदब हैं मेरी जां बेअदब हैं सभी तो याँ 'नाहक़'
(ये मिसरा बह्र में नहीं है) अब करे क्या मुलाहिज़ा कोई
दिल का है टूटने काग़म 'नाहक' दिल जो टूटा तो ग़म नहीं मुझको
था सलामत मुआहिदा कोई टूटा थोड़ी महायदा कोई
(इस शे'र का शिल्प कमज़ोर है) सादर।
आ. भाई दण्डपाणि जी, सादर अभिवादन । गजल का प्रयास अच्छा हुआ है । हार्दिक बधाई ।
मेरे हिसाब से इसे इस प्रकार बाँधते तो और बेहतर हो सकता था
२१२१/१२१२/१२
इश्क़ से नहीं राब्ता कोई
ज़िन्दगी है कि हादसा कोई
वो पुराने ज़माने की बात है
शेष गुणीजनों के विचारों का इतजार करें । सादर..
आ दण्डपाणी जी,
ग़ज़ल के प्रयास हेतु बधाई। कुछ जगह बह्र टूट रही है।
एक टिप है कि सिर्फ मात्राएं गिनने की जगह रचना को लय और ताल पर गुनगुनाएं।
सादर
बहुत उम्दा शे'र हुए है, आ. नाहक साहिब ,
"इश्क़ से ना हो राब्ता कोई" यहा "ना " ज़ियादा उचित होगा की "न " का इस्तिमाल रौशनी डाले इस पर सादर |
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