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छः दोहे (प्रकृति)
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अलंकार सम रूख धर,
रंग बिरंगा रूप।
पुष्प पात फल वृन्त रस,
बाँट रहे ज्यों भूप।1।

धरा गगन के मध्य में,
मेघों का संचार।
शांत करें तन ताप मन,
ज्यों शीतल उद्गार।2।

हर्षाए से मेघ भी,
जल भर लाए थाल।
नव अंकुर मुँह खोलते,
ज्यों तरिणी के पाल।3।

मोती की ज्यों चमकती,
शबनम की यह बूँद।
चकाचौंध सी चमक से,
नयन रहा रवि मूँद।4।

दुग्ध फेन सी चाँदनी,
चमक रहा हर छोर।
कण-कण शीतल सो रहा,
रजनी भाव विभोर।5।

टिमटिम लुकछुप खेलते,
तारे सारी रात।
सबको खुशियाँ बाँटकर,
करते जग की बात।6।

मौलिक एवं अप्रकाशित
सुरेश कुमार 'कल्याण'

कैथल (हरियाणा)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 7:57am

आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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