For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या तुम्हें याद है प्रिय

जब मैं औऱ तुम बस यूँ ही

नदी के किनारे चलते चलते

एक छोर से दूसरे छोर तलक

एक दूजे का हाथो में लेकर हाथ

टहलते रहते थे नंगे पाँव!

 

तुम जल्दी ही थक जाती थीं

औऱ बैठ जाया करती थीं

बेंच पर दोनों हाथ टिकाकर

और टिका देती थीं सर बेंच पर

औऱ मैं यूँ ही टहलता रहता था

सिगरेट के कशों  के साथ !

 

हम दोनों घंटो निहारते रहते थे

एक दूसरे के चेहरे क़ो अपलक

कभी विस्तृत नीले आकाश क़ो

औऱ कभी नदी में ठहरी नाव क़ो

जो कभी कभी करने लगती थी

उन्मादित लहरों से बचने की जंग

 

अब कुछ नहीँ, कुछ भी नहीं

शेष है तो सिर्फ़ तुम्हारी याद

जो बैठ गई है मेरे अंतर्मन में

और खोजती रहती है शून्य में तुम्हें

कभी बहुत दूर और कभी पास

जो दिलाता है तुम्हारे होने का अहसास

 

                        मौलिक व अप्रकाशित                                   

- प्रदीप देवीशरण भट्ट - 07:01:2020

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 9, 2020 at 5:40pm

समर जी आभार आपका

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 9, 2020 at 5:39pm

शुक्रिया लक्ष्मण जी

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 9, 2020 at 5:39pm

शुक्रिया सुरेंद्र जी

Comment by Samar kabeer on January 9, 2020 at 4:15pm

जनब प्रदीप जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2020 at 6:39am

आद0 प्रदीप देवीशरण भट्ट जी सादर अभिवादन। एक अलग रूहानी रचना से रूबरूहोने का मौका दिया आपने,,

तुम जल्दी ही थक जाती थीं

औऱ बैठ जाया करती थीं

बेंच पर दोनों हाथ टिकाकर

और टिका देती थीं सर बेंच पर

औऱ मैं यूँ ही टहलता रहता था

सिगरेट के कशों  के साथ !

 

बधाई स्वीकार कीजिये। सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 9, 2020 at 5:35am

आ. भाई प्रदीप देवीशरण भट्ट जी, सादर अभिवादन।बहुत अच्छी और भावनाप्रधान रचना हुई है ।ढेरों बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"चूंकि मुहतरम समर कबीर साहिब और अन्य सम्मानित गुणीजनों ने ग़ज़ल में शिल्पबद्ध त्रुटियों की ओर मेरा…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)

1222 - 1222 - 1222 - 1222ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ कि वो इस्लाह कर जातेवगर्ना आजकल रुकते नहीं हैं बस…See More
3 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदरणीय समर कबीर जी को जन्म दिवस की हार्दिक बधाई और हार्दिक शुभकामनाऐं "
16 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब को ज़िन्दगी का एक और नया साल बहुत मुबारक हो, इस मौक़े पर अपनी एक…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आ. भाई समर जी को जन्म दिन की असीम हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाई।"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"ओ बी ओ पर तरही मुशायरा के संचालक एवं उस्ताद शायर आदरणीय समर कबीर साहब को जीवन के अड़सठ वें वर्ष में…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Friday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आ. भाई सुशील जी, सादर आभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Friday
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post दिल चुरा लिया
"   आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत ग़ज़ल प्रयास की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service