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1.

शमअ  देखी न रोशनी देखी । 

मैने ता उम्र तीरगी देखी । 

देखा जो आइना तो आंखों में, 

ख़्वाब की लाश तैरती देखी । 

टूटे दिल का हटाया मलबा तो, 

आरज़ू इक दबी पड़ी देखी । 

एक इक पल डरावना सा लगा, 

इतने पास आ के ज़िन्दगी देखी । 

मैने इंसानियत रह ए हक़ पर, 

दो कदम चल के हांफती देखी 

2.

आप ने क्या कभी परी देखी । 

मैने यारो अभी अभी देखी । 

उसकी आँखों में सुब्ह सी देखी, 

और ज़ुल्फ़ों में शाम भी देखी । 

लब थे अंगार आँख थी बिजली, 

फ़िर भी चहरे पे सादगी देखी । 

उस से ज्यूँ ही नज़र मिली यारो, 

गिरती मैने तो बर्क़ सी देखी । 

उस नज़र सा सुरूर फ़िर ना हुआ, 

हर तरह की शराब पी देखी । 

     (मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2021 at 6:31pm

आ. भाई गुरप्रीत सिह जी, सादर अभिवादन । दोनों गजलें अच्छी हुई हैं । हार्दिक बधाई ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 23, 2019 at 6:50pm

'उससे ज्यूँ ही नज़र मिली यारो'

  वाह सर जी ।  बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Samar kabeer on July 23, 2019 at 3:24pm

//उस से इक पल निगाह टकराई //

इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'उससे ज्यूँ ही नज़र मिली यारो'

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 23, 2019 at 12:54pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अजय तिवारी जी 

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 23, 2019 at 12:53pm

आदाब समर सर जी । ग़ज़ल की सरहना के शुक्रिया । ये मिसरा ऐसे ठीक रहेगा क्या 

  ' उस से इक पल निगाह टकराई ' 

  जी बहुत दिनों बाद obo पर आ पाया । क्या बताएं सर जी 

      दुनियादारी ने ऐसे उलझाया है । 

       ख़ुद के लिए भी वक़्त नहीं मिल पाया है । 

Comment by Ajay Tiwari on July 20, 2019 at 10:07am

आदरणीय गुरप्रीत जी, ख़ूबसूरत अशाआर हुए हैं. हार्दिक बधाई. 

Comment by Samar kabeer on July 19, 2019 at 11:18am

जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़लें ओबीओ पर पढ़ने का मौक़ा मिला,कहाँ रहे भाई?

दोनों ग़ज़लें अच्छी हुई हैं,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'उस से इक पल नज़र मिली शायद,'

इस मिसरे से "शायद" शब्द निकालें । 

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