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अतुकांत कविता : निर्लज्ज (गणेश बाग़ी)

अतुकांत कविता : निर्लज्ज

=================

उसने कहा,
मेरे पास गाड़ी है, बंगला है
बैंक बैलेंस है
तुम्हारे पास क्या है ?

मैने कहा,
मेरे पास हैं...
फेसबुकिये दोस्त
जो नियमित भेजते रहते हैं
गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग,
गुड नाईट, स्वीट ड्रीम वाले संदेश

उसने कहा,
मूर्ख हो तुम
निपट अज्ञानी हो

मैंने कहा,
हाँ, हो सकता है मैं हूँ
किंतु...
सक्रिय हो जाती है छठी इंद्रीय
जब इनबॉक्स में
कोई आकर
बड़े प्यार से कहती है
हाय डियर !
और पूछती है
कैसे हो डियर ?

मुझे पता है
थोड़ी देर में ये
मांगेगी धन
क्योंकि
इतने प्यार से तो कभी मेरी घरवाली भी
नहीं पूछती हाल चाल
खैर...

मैं उसे उत्तर देता हूँ
हाय ! .. मैं ठीक हूँ,
किंतु पैसे-रुपओं के मामले में
तनिक कंजूस हूँ
आप कैसी है ?
पता नही क्यों
उधर से कोई
उत्तर ही नही आता

उसने पुनः कहा,
यार, तुम तो
अव्वल दर्जे के बेहया इंसान हो
तुममें संस्कार नाम की चीज है कि नहीं ?

मैंने कहा,
संस्कार का तो मुझे पता नही
बस एक ही चीज बची है मेरे पास
वह है संवेदना...
जब पूरा विश्व
खड़ा हो
मौत की दहलीज पर
नित्य हो रही हो गिनती
लाशों की
सुनाई दे रहे हों
विलाप के स्वर...

ऐसे में
मैं नहीं पीट सकता
ढ़ोल-नगाड़े,
मैं नही फोड़ सकता
बम-पटाखे

मैं तो बस
प्रज्ज्वलित कर सकता हूँ
एक दीया
उम्मीदों से भरा....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by TEJ VEER SINGH on April 7, 2020 at 8:52am

हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी।सुंदर प्रस्तुति।

Comment by Samar kabeer on April 6, 2020 at 5:16pm

जनाब गणेश जी 'बाग़ी' साहिब आदाब,अच्छी अतुकांत कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आपको ओबीओ की 10 वीं सालगिरह मुबारक हो, 1 अप्रेल को फ़ोन भी किया था लेकिन आपका मोबाइल बंद था ।

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