बह्र- 2122 1122 1122 22(112)
ज़हर पी के मैं तेरे हाथ से मर जाऊँगा
और हँसते हुए दुनिया से गुज़र जाऊँगा [1]
जो सिला मुझ को मिला है यहाँ सच बोलने से
अब तो मैं झूट ही बोलूँगा जिधर जाऊँगा [2]
रात को ख़्वाब में आऊँगा फ़रिश्ते की तरह
और आँखों से तेरी सुब्ह उतर जाऊँगा [3]
ख़ून छन छन के निकलता है कलेजे से मेरे
रोग ऐसा है कि कुछ रोज़ में मर जाऊँगा [4]
सामना होने पे पूछेगा तू , पहचाना मुझे?
गर मैं पहचान भी लूँगा तो मुकर जाऊँगा [5]
तेरी दहलीज़ पे आया हूँ मुहब्बत के लिए
ख़ाली कासे को उठा के मैं किधर जाऊँगा [6]
किसी की आँख में चमकूँगा सितारे की तरह
और दुआओं की तरह लब पे ठहर जाऊँगा [7]
दर्द सीने में जो बढ़ता है तो लिखता हूँ ग़ज़ल
दर्द मिलता रहे इस फ़न में सँवर जाऊँगा [8]
रूपम कुमार 'मीत'
'मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आ. रूपम जी,
ग़ज़ल अच्छी हुई है, बधाई .. अब थोड़ी खरी खरी ,, वो भी इसलिए कि आप के अब तक के लेखन से बड़ी उम्मीद जगती है ..
१) ग़ज़ल का वाक्य विन्यास अगर आमफ़हम है तो वो ग़ज़ल अच्छी से बेहतरीन बन जाती है.. आप का मतला देखें ..
ज़हर पी के मैं तेरे हाथ से मर जाऊँगा.. यहाँ ज़हर से मरने की जगह तेरे हाथ से मर जाऊंगा अधिक ध्वनित हो रहा है..बहुत बारीक नुक्ता है लेकिन आप को बताना आवश्यक है.
२) जो सिला मुझ को मिला है तुझे सच बोलने पर.. तुझे सच बोलने पर ज़बान में नहीं बोला जाता.. तुझ से सच बोलने पर कहेंगे.. तुझे सच बोलने पर अलग मतलब देता है..
३) किसी की आँख में चमकूँगा सितारों की तरह: आप की आँख में चमकूँगा सितारे की तरह ..बह्र भी सही हो गयी और भाव भी.. सितारों बहुवचन है और आप एकवचन तो ये मसअला भी दुरुस्त हो गया.
.
पुन: एक बार बधाई.. हर मिसरे को पोस्ट करने से पहले कुछ समय मन में गुनिये..ताकि रचना और निखर सके.
सादर
जनाब रूपम कुमार जी आदाब, ग़ज़ल के सातवें और आठवें शे'र लाजवाब हुए हैं हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
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