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अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

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तेरे ख्यालों के अंजुमन में हज़ार पहरे लगे हुए हैं
सजाये कैसे ग़ज़ल का दामन गुनाहों में हम रंगे गए हैं

हमारे जैसा उदास कोई हमें कहीं भी नहीं मिला पर
हमारे दुख से बड़े बहुत दुख ज़माने भर में भरे पड़े हैं

कभी नहीं वो कहेंगे हमसे के उनके दिल में है प्यार अब भी
सकार को भी जिया था हमने नकार को भी समझ रहे हैं

ये ज़िन्दगी की उदास खुशबू जो बस गयी है मेरी रगों में
ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें ग़म भी घुले हुए हैं

कहाँ हो तुम दो जहां के मालिक हमारे दिल में अंधेरा करके
पुकार कर तेरा नाम कब से हमारे नाले भी थक चुके हैं

यहाँ से आगे का रास्ता अब कटेगा कैसे ये फिक्र है बस
खुदी की बेखुद तलाश में हम ख़ुदा से अपने बिछड़ गये हैं

तलाश है जाने अब हमें क्या ?, निगाहों को ये पता नहीं है
कभी नहीं जो मिलेगा तुमसे हम ऐसे रस्ते पे चल रहे हैं

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by मनोज अहसास on January 29, 2023 at 4:35pm

आदरणीय समर कबीर साहब

ग़ज़ल पर बेशकीमती इस्लाह का हार्दिक आभार

सुधार के प्रयास जारी है

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2023 at 3:50pm

आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई। आ. भाई समर जी से सहमत हूँ।

Comment by Samar kabeer on January 29, 2023 at 2:41pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

ये देख  कर बहुत अफ़सोस होता है कि अभी तक आपको हिन्दी उर्दू शब्द ठीक से लिखना भी नहीं आते I 

'तेरे ख्यालों के अंजुमन में हज़ार पहरे लगे हुए हैं'--इस मिसरे में 'के' को "की" कर लें 'अंजुमन' शब्द स्त्रीलिंग है I 

'कभी नहीं वो कहेंगे हमसे के उनके दिल में है प्यार अब भी'---इस मिसरे में 'के' को "कि" कर लें I 

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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"सादर"
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"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
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