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अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

2×15

एक ताज़ा ग़ज़ल

टुकड़े टुकड़े में दिन बीता और पहाड़ सी रात कटी।
तेरी उल्फत में जाने जां ज़ीस्त यूँ ही बेबात कटी।

तूने छीन के अँधियारों से मुझको दिया नया जीवन,
तू क्या जाने फिर तेरे बिन कैसे ये सौगात कटी।

इस दुनिया की सबसे पुरानी शर्त है उपयोगी होना ,
उसका मर जाना बेहतर है जिस घोड़े की लात कटी।

चाहत के दो कतरे पीकर जीवन भर सुलगा जीवन,
खुद को लम्हा लम्हा जलाके ये तेरी खैरात कटी।

कैद कर लिया है खुद को बस खामोशी के मौसम में,
तन्हाई के आँगन में सर्दी,गर्मी,बरसात कटी।

क्या हासिल मेरे साथी ग़ज़ल में लिखकर दिल की बात,
तेरी एक नहीं के आगे मेरी सारी बात कटी।

शायद तुझे तसल्ली होगी सोचके बस इतनी सी बात,
इक प्यादे की कुर्बानी से तेरी निश्चित मात कटी।

कहना नहीं आता मुझको कुछ भी बेहतर लहज़े में,
मैं तो ग़ज़ल हूँ मेरी दिलबर तेरे बिना ज़ज़्बात कटी।

बात नहीं पूरी हो पाई और रात गहराने लगी,
और सुबह ये भी कहना है तन्हाई में रात कटी।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by मनोज अहसास on February 10, 2023 at 10:46pm

आदरणीय  सिंह जी गजल पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक आभार आपकी बताई हुई बातों पर गौर कर रहा हूं थोड़ा समय लगेगा तो निष्कर्ष पर पहुंच जाऊंगा आपने बहुमूल्य समय निकालकर इतने ध्यान से गजल को पड़ा इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार

Comment by Gurpreet Singh jammu on January 29, 2023 at 4:50pm

आदरणीय मनोज अहसास जी इस अच्छी ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बधाई। ग़ज़ल पढ़ते हुए जो प्वाइंट मन में आए वो साझा कर रहा हूं। अगर कुछ गलत कहूं तो कृपया क्षमा कीजिएगा।

मतले के सानी में पूरी ज़ीस्त का जिक्र है तो फिर ऊला में मुझे लगता है कि दिन और रात को हर दिन/रात बताना पड़ेगा। और सानी में उल्फत की जगह मुझे लगता है हसरत ज़्यादा फिट बैठेगा।

टुकड़ों में हर दिन बीता है पर्वत सी हर रात कटी
तेरी हसरत में यूं सारी उम्र मेरी बेबात कटी
और इस तरह आपका ऊला मिसरा का पहला हिस्सा जो मीना कुमारी जी की ग़ज़ल की मिसरे जैसा हो गया है, वो भी अलग हो जाएगा।


तीसरा शेर मुझे बहुत पसंद आया, वाह वाह क्या बात है। बस इस शेर के ऊला में मुझे लगता है पुरानी की जगह पहली ज़्यादा सही रहेगा।

छठे शेर के ऊला में मेरी तकतीय के मुताबिक एक मात्रा कम पढ़ रही है। आप देख लें। अगर आपके मुताबिक भी कम हो तो इस मिसरे को ऐसे कह सकते हैं

 क्या हासिल होगा अब गज़लों में लिख लिख कर दिल की बात

  (इसके सानी में भी सारी बात की जगह मुझे लगता है हर इक बात ज़्यादा ठीक रहेगा)

आठवें शेर के ऊला में भी मुझे एक मात्रा कम लग रही है।

ये मुझ अनजान की अल्प बुद्धि अनुसार जो समझ में आया वो कहने की कोशिश की है। बाकी गुणिजन बेहतर बता पाएंगे।

कृपया ध्यान दे...

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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"सादर"
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