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खनखनाता रुपैया मेरे देश का --

मेरे आजाद देश की  

बेहतरीन खिलाडी

बिना डोपिंग परिक्षण के, 

महंगाई हो गई है

दौड़ती है सबसे आगे

तेज धावक की तरह

मारती है सबसे ऊँची

छलांग

पहुंचना चाहती है

सबसे पहले  

बाहरवें आसमान|

और रुपया बेचारा

मुंह उतारे

लुढ़क रहा है नीचे नीचे

अपना ही बाजार सौतेला हो गया जिसके लिए

जैसे इस मंडी से नाराज  

वह मुंह छुपाना चाहता हो

प्रचलन से बाहर किसी तरह से

निकल आना चाहता हो

वह गिरा जो तो गिरा

लुढकता जा रहा है ............................

बेचारा करे भी तो क्या,

साजिशों के तहत

काला बाजारी का धन हो गया है

विदेशों में जा कर तिजोरियों में बंद हो गया है ...

मल्टीनेशनल कम्पनियों का राज हो गया है

पेटेंट विदेशीयों का उत्पाद हो गया है

मिलावट ने रही सही रूपये की टांग तोड़ दी है

घोटालों पे घोटालों की आदत,

नेताओं में आम हो गयी है .....

जाति भाषा भेदभाव की

भ्रष्टाचार व  वोट की कूटनीति की  

नैतिकता गुलाम हो गयी है  ...........

 

ठन से खनकता रुपया

अब किसकी जेब में खनखनायेगा

दो जून की रोटी के लिए

किस किस को ललचाएगा ...

जब डाल डाल पर

बसती थी सोने की चिड़िया

गए दिनों की बात और मात्र किस्सागोई है  

 

पर नहीं मांगता देश अब

वह सोने की चिड़िया 

बस मांगता एक ऐसा यंत्र

एक उपाय एक अटूट मन्त्र

जैसे कह सके  वह भी

बहुत हो गयी अब

अब खुल जा रे सिमसिम

और खुल जाये तिजिरियों के बंद ताले

मिटा के कड़े प्रतिरोधों के जाले

वापस आये देश में

देश से लुटा गया धन,

ले कर के हरियाली

चेहरे चेहरों पे खुशहाली .......

 

उपाय बीजमंत्र की  

बस शर्त  इतनी सी है

नैतिक मूल्यों का हो चयन   

ठोकर पर रख दें हर कोई   

भ्रष्टाचार कालाबाजारी

रिश्वतखोरी की बीमारी|

धन्यधान्य हो देश  

और फिर मिले सबको

शिक्षा रोजगार ज्ञान

रोटी कपड़ा और मकान......

जनजन गौरव से कह सके  

अपना देश महान ................................... ~nutan~

मौलिक अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 2:14pm

आज की सर्वाधिक विकराल समस्या अपने अर्थतंत्र में मची छटपटाहट है. आपने इस समस्या को संवेदना से उभारा है, डॉ. नूतन.

बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2013 at 6:38pm

सुंदर व् सटीक रचना पर हार्दिक बधाई ,स्वीकार करें, आदरणीया नूतन जी

Comment by रविकर on August 17, 2013 at 5:27pm

सटीक विश्लेषण-
शुभकामनायें आदरेया-

कौआना सरकार का, मुद्रा में विश्वास |
देशी मुद्रा चल बसी, चलो जलाओ लाश |


चलो जलाओ लाश, ताश का महल ढहाया |
चन्द्र गुप्त को पाठ, नया कौटिल्य पढाया |


नहीं हुआ बर्दाश्त, आज डालर का हौवा |
सुनो मराठी बोल, बोलता देशी कौआ ||

Comment by विजय मिश्र on August 17, 2013 at 12:12pm
इतने अपराधियों के चंगुल से मुक्त करा इस लुढकते हुए भारतीय मुद्रा को पुनः इसके गरिमा पर पुनर्स्थापित करना एक दिवास्वप्न प्रतीत होता है . इस यथार्थ का बोध कराती सुंदर अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद नूतनजी .
Comment by Sumit Naithani on August 17, 2013 at 9:55am

sunder ati sunder... :)

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 16, 2013 at 8:43pm

आदरणीय महिमा जी, D P Mathur जी, नीरज मिश्रा  जी ... आप को सादर धन्यवाद ... और प्रार्थना है की भले ही स्वतंत्रता दिवस की यह रात हो आई है.. पर  सही मायने में स्वंत्रता का सूरज उदयमान हो जिसकी कभी सांझ न  हो, देश में खुशहाली हो प्रगति हो, नैतिकता हो और सुरक्षा हो .. सादर 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 16, 2013 at 8:43pm

Aadarniy annupama Bajpai ji, Giriraaj Bhandari ji, Aman kumar ji.. tah e dil se aapkaa shukriya ... 

Comment by aman kumar on August 16, 2013 at 8:58am

 लौट आये देश में खुशहाली

जिसके लिए मिटाना होगा व्यभिचार, भ्रष्टाचार

कालाबाजारी|   

आप की रचना अच्छी दिशा मे है ,

पर मुझे लगता है शुरुआत हमे अपने से करनी होंगी ........न गलत करे , न होने दे ....

आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 5:08am

अर्थ व्यवस्था पर अच्छी सामयिक रचना ! बधाई !!

Comment by annapurna bajpai on August 15, 2013 at 10:27pm

आदरणीया नूतन जी बहुत ही सुंदर भावों के साथ समसामयिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार ।  

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