For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाने कितने कर्ण जन्मते यहाँ गली फुटपाथों पर। 
या गंदी बस्ती के भीतर या कुन्ती के जज्बातों पर॥
कुन्ती इन्हें नहीं अपनाती न ही राधा मिलती है।
इसीलिये इनके मन में विद्रोह अग्नि जलती है॥
द्रोण गुरु से डांट मिली और परशुराम का श्राप मिला। 
जाति- पांति और भेदभाव का जीवन में है सूर्य खिला॥
सभ्य समाज में कर्ण यहाँ जब- जब ठुकराये जाते हैं।
दुर्योधन के गले सहर्ष तब- तब ये लगाये जाते हैं।
इनके भीतर का सूर्य किन्तु इन्हें व्यथित करता रहता।
भीतर ही भीतर इनकी आत्मा को मथता रहता।
महलों में पले- बढ़े अर्जुन को चुनौती देते हैं।
बनकर कृष्ण ढाल उनका इनको डंस लेते हैं॥
ये भीतर ही भीतर खुद से लड़ते रहते हैं।
जो नीति व्यवस्था इन्हें कुचलती उसे कुचलते रहते हैं॥
कहो बंधु! कर्णों के पीछे किसकी कुत्सित चाल छिपी।
दुर्वासा का वर या कुन्ती की पहली गलती॥
सूरजों का बहशीपन या और व्यवस्था कोई है।
देख कर्ण की दीन दशा को अपनी आत्मा रोई है॥
इन्हें दिला दो हक इनका जिसके ये अधिकारी हैं।
नहीं धकेलों इन्हें परिधि में ये धीर- वीर व्रतधारी हैं॥

मौलिक और प्रकाशित

Views: 504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on November 12, 2013 at 2:16pm

कर्ण जैसे व्यक्तित्व की पीड़ा बहुत घनी है| आपने उसे महीन उकेरा है| यह तब भी वही थी और अब भी वही है| खेद है की दुर्योधन जैसों के हाथ पड़ कर समाज के लिए उपयोगी नहीं हो पाती बल्कि एक श्राप बन के ही समाप्त हो जाती है|

शिल्प पक्ष पर वही कहना चाहती हूँ  जो आ0 सुशील जी, आ0 संदीप भैया, और आ0 राजेंद्र जी ने कहा - लय के प्रवाह के लिए थोड़ा और समय दीजिये| 

सादर !! 

Comment by राजेश 'मृदु' on October 31, 2013 at 2:40pm

मित्र कथ्‍य को कसना होगा, तनिक और भी धंसना होगा

कर्ण पुराना पात्र हुआ है, नए को ही अब घसना होगा ।

भाव, कथ्‍य प्रवाह सब कुछ धारदार पर मेरी मान्‍यता है कि यह पीड़ा अधिक समय मांगती है, नए चेहरे, नए बिंब के साथ, कृपया अन्‍यथा ना लें, सादर

Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:30pm

आ0 विन्ध्येश्वरी जी क्या ही जोश  भरी रचना है , संदेश युक्त सून्दर रचना  बहुत बधाई आपको । 

Comment by Jyotirmai Pant on October 30, 2013 at 4:35pm

कर्णों के प्रति समाज के दायित्व की ओर ध्यान  आकर्षित करती हुई  सुन्दर रचना .

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 30, 2013 at 3:50pm

आदरणीय बंधुवर सादर 

ग़ज़ब की धार है आपने कथ्य में सहज ही पाठक के मन मस्तिष्क को कचोटती हुई 

किन्तु जैसे के आदरणीय सुशील जी ने कहा 

लय भंग हो रही है 

और इस लय भंग की स्थिति की वजह से पढ़ते पढ़ते मन उचट सा रहा है 

मुझे लगता है आप जैसे कवि के लिए इस रचना को छंदबद्ध करना कोई दुष्कर कार्य नहीं था ऐसे विचार 

कभी कभी मन में आते हैं जिन्हें यदि छंदों में पिरोया जाए तो क्या कहने 

और यदि मात्राएँ ही मिला लीं जाती तो भी एक सुखद काव्य धार में गोते लगाने का मजा दोबाला हो जाता 

बहरहाल इस सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारिये 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2013 at 9:40am

जाने कितने कर्ण जन्मते यहाँ गली फुटपाथों पर।  
या गंदी बस्ती के भीतर या कुन्ती के जज्बातों पर॥
कुन्ती इन्हें नहीं अपनाती न ही राधा मिलती है।
इसीलिये इनके मन में विद्रोह अग्नि जलती है॥-------बहुत मार्मिक पंक्तिया रची है | ऐसी खबरे पढ़कर मन व्यथित हो जाता है |

इन्हें दिला दो हक इनका जिसके ये अधिकारी हैं।
नहीं धकेलों इन्हें परिधि में ये धीर- वीर व्रतधारी हैं॥----इनको हक़ के लिए न्यायालय तक के द्वार खटखटाने पड़ते है और 

                                                                   न्याय मिलता भी है तो बहुत देर हो चुकी होती है |

सुन्दर गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई शिर विन्ध्येश्वर त्रिपाठी जी | सादर 

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 10:21pm

इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई आ0 त्रिपाठी जी...... शुरुआत बहुत ही सुंदर तरीके से लयबद्ध हुई है लेकिन बीच में कहीं कहीं पर लगता है लय भंग हो रही है.... कृपया देखिएगा.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 29, 2013 at 4:38pm

आदरणीय विन्ध्येश्वरी भाई , आज की सामाजिक वास्तविकता को महाभारत के पात्रों के माध्यम से बहुत सुन्दर ढंग से समझाया है आपने !!!!! आपको तहेदिल से ढेरों बधाई !!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-104 (विषय: युद्ध)
"लघुकथा : युद्ध दिल को देखो चेहरा न देखो,चेहरों ने लाखों को लूटा,दिल सच्चा और चेहरा झूठा... हाँ, यही…"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-104 (विषय: युद्ध)
"स्वागतम"
11 hours ago
Chetan Prakash posted a blog post

एक ताज़ा ग़ज़ल

2122 1122 1122 22ख़्वाब से जाग उठे शाह सदा दी जाए पकड़े जायें अभी क़ातिल वो सज़ा दी जाएबख़्श दी जाए…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
""ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-161 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"नाहक जी, अपने अंदर विनम्रता लाएँ और उस्तादों का आदर करना सीखें। इस्लाह से संबंधित कोई शंका हो तो…"
Saturday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी नमस्कार। बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"आदरणीय नीलेश जी आदाब। बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए बधाई स्वीकार करें। "
Saturday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"आदरणीय Devesh Kumar जी नमस्कार। ओबीओ के मंच पर आपका स्वागत है। अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। बधाई…"
Saturday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई"
Saturday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"आदरणीय दिनेश कुमार जी नमस्कार। बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार करें। "
Saturday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service