For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1- नाम वरों में छुप रहे

नामवरों में छुप रहे , सारे गलती बाज

सच के आगे किस तरह , मची हुई है खाज

मची हुई है खाज , खून उभरा है तन में

लेकिन कोई लाज , कहाँ कब दिखती मन में

सत्य गिनेगा नाम , कभी तो जानवरों में

आज छिपालो झूठ, किसी का नामवरों में

****************

2- गिरगिट मानव देख

धोती में अपनी कभी , नही देखते दाग

और लगाते हैं सदा , अन्य वसन में आग

अन्य वसन में आग , लगाते हैं वो सारे

जिनको डर है सत्य,  कहीं ना उनको मारे

गिरगिट मानव देख , सदा सच्चाई रोती

चलो दिखायें दाग , निकालें उनकी धोती

***************************************

गिरिराज भंडारी

Views: 807

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 7:59am

आदरनीय सौरभ भाई , आपके विस्तार से समझाने पर ग़लती का नक्शा साफ साफ खिंच गया , इतनी बारीकी समजह्ने और समझाने के लिये आपका हृदय से आभार । आपका सुझाया हल भी बहुत सही है , मै अभी सुधार कर रहा हूँ । नामवर भी ठीक कर लेता हूँ । आपका पुनः आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 7:51am

आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

नामवर को ठीक कर लूँगा आपका पुनः आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2016 at 2:16am

बहुत खूब ! हार्दिक बधाइयाँ !

एक पंक्ति .. लेकिन कोई लाज , नही दिखती है मन में 

गेयता कमज़ोर है. सुधीजनों को इसका भान अवश्य हुआ होगा किन्तु, अगाह, देख रहा हूँ किसीने किया नहीं है.  इसका मुख्य कारण पंक्ति और क्रमशः चरणों का शुद्ध मात्रिक होना प्रतीत हो रहा है. लेकिन शब्द संयोजन की दृष्टि से देखा जाय तो ’है’ पर मात्रा-भार कम कर उच्चारण करना पड़ रहा है. इसका कारण ’दिखती’ के ’ती’ अधिक स्वर-भार का होना है. चूँकि ’दिखती’ एक शब्द होने से ’दिख+ती’ करते हुए ’दिख’ को अलग कर पढ़ना संभव नहीं है ताकि ’ती’ पर का स्वर-भार अधिक न हो पाये. अतः ’नहीं’ के बाद कोई ऐसा द्विकल रख दिया जाय ताकि उपर्युक्त समस्या में दिखते ’दिख’ का स्थानापन्न हो. इसकेलिए ’नहीं’ के बाद ’है’ रखने से काम चल जायेगा.

इस स्थिति में पंक्ति होगी - लेकिन कोई लाज , नही है दिखती मन में   

मात्रिकता और शब्द-संयोजन के हिसाब से अब वाचन-उच्चारण में कोई दोष नहीं होगा.

लेकिन पंक्ति अर्थ के हिसाब से थोड़ी  अटपटी हो गयी. इसकेलिए इस पंक्ति को फिर से लिखना और साधना होगा.  

एक विकल्प, लेकिन कोई लाज , कहाँ कब दिखती मन में .. हो सकता है. वैसे, इस विन्दु पर आप मुझसे बेहतर सोच सकते हैं, आदरणीय.

और, ’नामवर’ एक शब्द है. आदरणीय. इसे ’नाम वर’ लिखना अशुद्ध है 

सादर  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2016 at 10:34am

आआ० अनुज , मैं जो कुण्डलिया देख रहा हूँ , उनमे त्रुटि नहीं है . शायद मैं  सुधार के बाद देख रहा  हूँ . बहुत बढ़िया रचना है. नाम और वरों को अलग अलग दिखाना सही नहीं है नामवर अपने आप में एक शब्द है ,  सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2016 at 9:25am

आदरनीय अशोक भाई , सराहना के लिये आपका आभार , खून उभरा है तन में  -- के लिये कोई सलाह हो तो बताइयेगा । आपका पुनःआभार ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 1, 2016 at 8:17am

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर नमन, सुंदर कुण्डलिया छंद रचे हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी 'खून उभरा है तन में' कहन कमजोर लगी. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 3:41pm

आदरणीय आशुतोष भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार । आपकी सलाह उचित है , अभी सुधार रहा हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 3:40pm

आदरणीया राजे श जी , सराहना के लिये आपका आभार । आपकी सलाह उचित है , सुधार कर लूँगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 3:39pm

आदरणीय राम बली भाई , आप का कहना सही है , सुधरता हूँ अभी , आभार आपका ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 28, 2016 at 3:19pm

आदरणीय भाईसाब ..सुंदर कुण्डलियाँ है पर उनकी धोती का प्रयोग शायद परिवर्तित होना चाहिए ..इन दोनों ही रचनाओं पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Usha Awasthi commented on Usha Awasthi's blog post पूजा बता रहे हैं
"आ0 अखिलेश  कृष्ण  श्रीवास्तव  जी, पटल पर आपकी अधूरी प्रतिक्रिया देख पा रही हूँ। जो…"
20 hours ago
Usha Awasthi posted a blog post

पूजा बता रहे हैं

पूजा बता रहे हैं उषा अवस्थीपाले हैं,यौन कुंठापूजा बता रहे हैंन जाने ऐसे लोग किस राह जा रहे हैं?रचते…See More
22 hours ago
Euphonic Amit commented on Samar kabeer's blog post 'वतन को आग लगाने की चाल किसकी है'
"बिहतरीन ग़ज़ल आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम। वाहह वाह। सादर चरण स्पर्श "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
"सुनन्दरम।"
Tuesday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on सतविन्द्र कुमार राणा's blog post दिख रहे हैं हजार आंखों में
"आदरणीय सौरभ सर सादर नमन, मार्गदर्शन के लिए सादर आभार। नुक्ता कहीं भी प्रयासपूर्वक नहीं लगाया है। सच…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
"वाह दिनेश जी वाह बहुत ही सुन्दर रचना "
Monday
दिनेश कुमार posted blog posts
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Chetan Prakash's blog post एक ताज़ा ग़ज़ल
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/१२१२/२२ * सूनी आँखों  की  रोशनी बन जा ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१। * अब भी प्यासा हूँ इक…See More
Dec 2
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-104 (विषय: युद्ध)
"क्या नैपथ्य या अनकहे से कथा स्पष्ट नहीं हो सकी?"
Nov 30

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-104 (विषय: युद्ध)
"भाई, शैली कोई भी हो किन्तु मेरे विचार से कथा तो होनी चाहिए न । डायरी शैली में यह प्रयास हुआ है ।"
Nov 30

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service