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ग़ज़ल (अगर तुम सा मिले दुश्मन तो हसरत और हो जाती)

नहीं जो चाहते रिश्ते अदावत और हो जाती,
अमन की बात ना करते सियासत और हो जाती,

दिखाकर बुज़दिली पर तुम चुभोते पीठ में खंजर,
अगर तुम बाज़ आ जाते मोहब्बत और हो जाती।

घिनौनी हरकतें करना तुम्हारी तो सदा आदत,
बदल जाती अगर आदत तो फितरत और हो जाती।

जो दहशतगर्द हैं पाले यहाँ दहशत वो फैलाते,
इन्हें बस में जो तुम रखते शराफत और हो जाती।

नहीं कश्मीर तेरा था नहीं होगा कभी आगे,
न जाते पास 'हाकिम' के शिकायत और हो जाती।

नहीं औकात तेरी कुछ दिखाते आँख फिर भी तुम,
पड़े ना सामने वरना जलालत और हो जाती।

मसीहा कुछ बड़े आका नचाते तुझको बन रहबर,
मिलाते हाथ हमसे तो ये शोहरत और हो जाती।

नहीं पाली कभी हमने तमन्ना जंग की दिल में,
अगर तुम सा मिले दुश्मन तो हसरत और हो जाती।

तमन्ना तू ने पैदा की कि दो दो हाथ हो जाये,
दिखे हालात जब ऐसे तो हिम्मत और हो जाती।

दिलों में खाइयाँ गहरी वजूदों की ओ मजहब की,
इन्हें भरते जो मिल कर तुम हक़ीक़त और हो जाती।

वतन की आन की खातिर 'नमन', सजदा करें सब मिल,
जहाँ सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती।

(फितरत=स्वभाव, रहबर=पथ प्रदर्शक, अदावत=लड़ाई, जलालत=तिरस्कार या अपमान)

(1222 1222 1222 1222)

मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2016 at 6:30pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है आद० बासुदेव अग्रवाल जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 10, 2016 at 8:57am
आदरणीय रामबली जी आपका बहुत आभार।
Comment by रामबली गुप्ता on October 10, 2016 at 3:39am
सभी शेर अच्छे हैं दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 8, 2016 at 3:45pm
जनाब समर कबीर साहब आपकी हौसला आफजाई का तहे दिल से शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on October 8, 2016 at 2:32pm
जनाब वसुदेव नमन जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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