For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पिता धरा की शक्ति, धारणा के वाहक हैं।
माता धरा समान, सृष्टि की संचालक हैं।
दिया आपने जन्म, न उतरे ऋण की थाती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

पिता धरातल ठोस, और मां ममता धारा।
पिता स्वयं वट वृक्ष, छांव मां ने पैसारा।
हम सब फल रसदार, मिष्‍ठता उनसे आती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

पिता अटल गिरिराज, और मां झरना पावन।
पिता दुपहरी जेट, मास मां रिमझिम सावन।
जेठ ताप कम दाब, फुहारें सावन आती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

पिता सूर्य की ज्योति, जगाते बरबस हमको।
माता सुंदर रात, सुलाती सारे जग को।
बिना रात के दिवस, दिवस बिन रात न आती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

पिसता आटा पिता, और मां गर्म चपाती।
पिता दीप में तेल, बनी मां जलती बाती।
पिता वही है गीत, लोरिया जो मां गाती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

विस्तृत अम्बर तात, और मां उसमें तारा।
पत्थर के शिव पिता, मातृ गंगा की धारा।
निकली शिव के भाल, गंग त्रय ताप मिटाती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

वे नारियल समान, और मां उसमें रस सी।
गर्म दूध सम तात, मातु ज्यों ठंडी लस्सी।
दूध करे तन पुष्ट, जुड़ाती इससे छाती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

स्वाती बूंद समान, पिता मां सीपी होती।
पालन पोषण जनन, बने जिससे हम मोती।
सब उनकी ही देन, हमारी कुछ न थाती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

दिया आपने जन्म, आपके आभारी हम।
दो हमको आशीष, बने आज्ञाकारी हम।
जब तम हो घनघोर, जलूं बन दीपक बाती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

मौलिक और अप्रकाश्‍िात

Views: 756

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 15, 2017 at 7:56pm
आदरणीय समर कबीर सर ! रचना आपकी टिप्पणी हेतु आपका आभार
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 15, 2017 at 7:28pm
आदरेया राजेश मैम! आपने रचना पर अपना कीमती समय व सुझाव दिया, इसके लिये आपका बहुत-बहुत आभार। उतावलेपन में अवश्य कुछ गलतियां हुई हैं, जिसमें संशोधन करता हूं।
सादर
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 15, 2017 at 7:24pm
आदरणीय सुरेंद्र सर! रचना पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 15, 2017 at 7:22pm
आदरणीय आरिफ सर! रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 14, 2017 at 5:38pm

माता पिता की महिमा दर्शाता बहुत सुंदर रोला गीत लिखा है आपने आद० विन्ध्येश्वरी जी हर बंद सुंदर है जिसके लिए दिल से बधाई लीजिये .जल्दी बाजी में कहीं कहीं कुछ त्रुटियाँ रह गई हैं जिनको इंगित कर रही हूँ......

बिना रात के  दिवस, दिवस बिन रात न आती।---बिना रात के भोर , भोर  बिन रात न आती।--ऐसा करने से विषम चरण का अंत विधान में हो जाएगा दिवस =१२      रोला में २१ चाहिए 

पिसता आटा पिता----पिसता आटा तात ---करने से चरणाअंत  ठीक हो जाएगा  

पत्थर के शिव पिता, ----यहाँ भी तात या पित्र  करना पडेगा 

पालन पोषण जनन---पालन पोषण संग  या कोई और शब्द रक्खें 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by Samar kabeer on February 12, 2017 at 7:21pm
जनाब विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी आदाब,अच्छा लगा आपका गीत,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 7:08pm
आदरणीय बिन्देस्वरी प्रसाद जी सादर अभिवादन। माता पिता पर केंद्रित बेहद उम्दा रचना रोल रूप में आपने प्रस्तुत किया है। इस खूबसूरत प्रस्तुति पर आपको दिल खोल कर बधाई।
Comment by Mohammed Arif on February 12, 2017 at 10:10am
आदरणीय विन्ध्येश्वरी आदाब, माता-पिता के प्रति आपने बहुत अच्छी व्यंजना प्रकट की । इस सुंदर प्रस्तुति पर ढेरों बधाईयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
yesterday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service