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ग़ज़ल - सब में आग थी, लोहा भी था, नेक बहुत थे सारे हम - अजय तिवारी

फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ा

 22      22      22       22     22      22      22      2

सब में आग थी, लोहा भी था, नेक बहुत थे सारे हम

लेकिन  तन्हा-तन्हा लड़ कर,  तन्हा-तन्हा  हारे हम

 

ज़र्रा-ज़र्रा  बिखरे  है  हम,  चारो ओर खलाओं में

लेकिन जिस दिन होंगे इकठ्ठा, बन जायेंगे सितारे हम

 

कितने दिन वो मूँग दलेंगे, कमजोरों की छाती पर

कितने दिन और चुप  बैठेंगे, बनके यूं बेचारे हम 

 

कबतक और ये खून की होली, कबतक और नफ़रत का खेल

कबतक और करेंगे दिल के, ये खूनी बंटवारे हम

 

जब हो जरूरत खिल जायेंगे, फिर से सुनहरी लपटों में

राख में अपनी दबे है लेकिन, हैं जलते अंगारे हम.

 

शायद एक दिन ऐसा होगा, खुशियाँ होंगी सब के साथ

शायद एक दिन ऐसा होगा, होंगे साथ तुम्हारे हम

               "मौलिक/अप्रकाशित"

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Comment by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 4:47pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 4:44pm

आदरणीय वसंत जी, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 4:43pm

आदरणीय आरिफ साहब, हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 4:40pm

आदरणीय समर साहब, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by surender insan on March 26, 2018 at 1:37pm

वाह वाह बहुत अच्छी ग़ज़ल आदरणीय अजय तिवारी जी ।सादर नमन जी।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 26, 2018 at 1:09pm

वाह बहुत खूबसूरत गजल , बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय 

Comment by Mohammed Arif on March 26, 2018 at 1:07pm

आदरणीय अजय तिवारी जी आदाब,

                               मुश्क़िल बह्र में बहुत ही शानदार और सरस ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

Comment by Samar kabeer on March 26, 2018 at 12:34pm

जनाब अजय तिवारी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 11:42am

आदरणीय बृजेश जी, हार्दिक धन्यवाद .

Comment by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 11:41am

आदरणीय निलेश जी, आपकी प्रसंशा से ग़ज़ल सार्थक हुई. हार्दिक धन्यवाद

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