For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काश ! ऐसा हो जाये कि,
ज़िंदगी एक पूरा नशा बन जाये,
नशे में सब कुछ माफ हो, और,
ज़िंदगी जीने का मज़ा आ जाये ।

जी लूँ कुछ,
इस तरह कि,
अगले जनम की भी,
चाह न रह जाए।

ऐ दुनियावालों !
क्यों है ये बेइन्तहा मुश्किल?
कि कह सकें-कर सकें वो,
जो दिल करना चाहता हो।

कभी हमें भी था,
भरोसा अपने सपनों पर,
अब अहसास हो गया है कि,
सपने दूसरो के ही र॔ग लाते हैं।

न सोचूँ, न मैं चाहूँ,
न ही दे सकूँ मैं, दर्द किसी को,
पर ज़माने ने जैसे,
ये ठेका, मेरे लिये ही उठा रखा है।

आ जाये जो हँसी,
दिल भर आता है,
गर आ गये जो आँसू,
कहीं दम ही न निकल जाए।

अजीब है, यहां हर कोई पा जाता है,
जो उसकी चाहत है,
मज़ाक तो ये है कि,
अपनी चाहतें ही मर गयी सारी l

आज सब याद आ गया,
आता ही चला गया,
अब तो कुछ ऐसा हो कि,
यादें ही मिट जाएँ सारी।

मौलिक व् अप्रकाशित।

Views: 530

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by R.C.Singh on November 2, 2019 at 12:22pm

आदरणीय उषा जी आपने अपनी इस मोहक कविता में वास्तव में भावों को शब्दों में इस तरह पिरोकर उदगारित किया है कि ये कहना गलत न होगा-
रख दिया है कागज पर कलेजा निकालकर,आपके उदगार व्यावहारिक हैं ।
बधाई स्वीकारें।

Comment by Usha on November 2, 2019 at 11:21am
आदरणीय सुश्री डॉ गीता चौधरी जी, आपके प्रोत्साहन भरे सकारात्मक भावों के लिए हृदय से आभार। सादर।
Comment by Dr. Geeta Chaudhary on November 2, 2019 at 6:45am

आदरणीय उषा जी, अच्छी भावपूर्ण क्षणिकाओं के लिए हार्दिक बधाई! 

Comment by Usha on November 1, 2019 at 9:05pm
आदरणीय समर कबीर सर, मेरी क्षणिकाओं पर आपकी पूर्ण सकारात्मक टिप्पणी से मेरा बहुत उत्साहवर्धन हुआ है। शाब्दिक त्रुटियाँ मेरे संज्ञान में लाने के लिए हृदय से आपका आभार। भविष्य में भी आपका आशीष यूहीं पाती रहूँगी, ऐसी कामना के साथ , एक बार पुनः आपका आभार। सादर।
Comment by Samar kabeer on October 31, 2019 at 2:58pm

मुहतरमा ऊषा जी आदाब,अच्छी क्षणिकाएँ लिखीं आपने,बधाई स्वीकार करें ।

'नशे में सब कुछ माफ हो'

इस पंक्ति में सहीह शब्द 'मुआफ़' है,देखियेगा ।

'जी लूँ कुछ,
इस तरह कि,
अगले जनम की भी,
चाह न रह जाए।

ऐ दुनियावालों !'

इस क्षणिका में 'जनम' को "जन्म" कर लें,और 'दुनिया वालों' शब्दों में दुनिया के बाद स्पेस दें ।

Comment by Dr. Geeta Chaudhary on October 30, 2019 at 10:19am

आदरणीय डॉ० उषा जी क्षणिकाओं की सराहना के लिए हार्दिक आभारI 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
19 hours ago
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
19 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
19 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. रवि जी,ग़ज़ल तक आने और उत्साह वर्धन का धन्यवाद ..ऐ पर आपसे सहमत हूँ ..कुछ सोचता हूँ…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service