२१२२ २१२२
ग़मज़दा आँखों का पानी
बोलता है बे-ज़बानी
मार ही डालेगी हमको
आज उनकी सरगिरानी
आपकी हर बात वाजिब
और हमारी लंतरानी
जाने किसकी बद्दुआ है
वक़्त-ए-गर्दिश जाँ-सितानी
दर्द-ओ-ग़म रास आ रहे हैं
बुझ रही है ज़िंदगानी
कौन जाने कब कहाँ से
आये मर्ग-ए-ना-गहानी
ले के फागुन आ गया फिर
फ़स्ल-ए-गुल की छेड़खानी
कैसे मैं समझाऊँ ख़ुद को
संग दिल है मेरा जानी
बोलते हैं चोर अक्सर
शाह ख़ुद को ख़ानदानी
कौन जाने रूह क्या है
फ़ानी है या जावेदानी
मुफ़्लिसी सोती है 'आज़ी'
ओढ़कर रंग आसमानी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Shyam Narain Verma
Apr 27