२१२२-१२१२-२२/११२
और कितना बता दे टालूँ मैं
क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)
छोड़ते ही नहीं ये ग़म मुझ्को
ख़ुद को कितना बता सभालूँ मैं (२)
तू मुझे क़ैद करके मानेगा
क्यों न पिंजरे में ख़ुद को डालूँ मैं (३)
ज़िंदगी दूर है बहुत मुझसे
ज़ह्र है पास क्यों न खा लूँ मैं (४)
ज़िन्दगी लिफ्ट माँगती ही नहीं
मौत माँगे तो क्या बिठा लूँ मैं (५)
पाँव में एक दिन जगह देगा
क्यों न सर पे उसे बिठा लूँ मैं (६)
वो गला ही मेरा दबा देंगे
आखिरी गीत क्यों न गा लूँ मैं (७)
* मौलिक एवं अप्रकाशित
Samar kabeer
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
मतले के सानी में 'तुमको' की जगह "तुझको" कर लें, शुतर गुरबा हो रहा है ।
'वो गला ही मेरा दबा देंगे'
इस मिसरे को यूँ कहें :-
'इससे पहले कि वो दबा दें गला'
Nov 6
रामबली गुप्ता
बढियाँ ग़ज़ल का प्रयास हुआ है भाई जी हार्दिक बधाई लीजिये।
Nov 16
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
on Sunday