Samar kabeer

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  • Chetan Prakash

    आदरणीय, मोहतरम समीर कबीर साहब प्रत्युत्तर के लिए आपका आभारी हूँ। रू का शाब्दिक
    अर्थ आपने चहरा, (उक्त मिसरे में ) बता या , लेकिन मैंने मूल प्रति में रूह लिखा था। लेकिन कुछ लोग वहाँ ह की गणना कर ले ते हैं, सो मैंने रू चुना। एक और बात रू , वहाँ आत्मा की प्रतिच्छाया है न कि चहरा।आदरणीय, बिम्ब की दृष्टिसे रू का प्रयोग सर्वथा उचित है। माननीय, कवि का संसार ( काव्य ) बिम्ब के माध्यम से अभिव्यक्त होता है, जो लक्षणा और
    व्य्ंजना से ही बोध गम्य है। शब्द ही ब्रह्म है, इसी हेतु मनीषियों ने कहा है। और, दूसरे मिसरे की बह्र से खारिज...बतायाआपने, मेहरबानी होगी, आपकी, तक्तीअ कर मार्ग- दर्शन करें!

  • DR ARUN KUMAR SHASTRI

    प्रिय मित्र समीर साहिब जी गज़ब लिखा ख़ास कर ये पंक्तियाँ मुझे बेहद सुकून दे गई

    आग तो सर्द हो चुकी कब की

    क्यों अबस राखदान फूँकता है

    हुक्म से रब के ल'अल मरयम का

    देखो मुर्दे में जान फूँकता है





    डॉ अरुण कुमार शास्त्री // एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त

  • सूबे सिंह सुजान

    वाह वाह वाह बहुत खूब।

    ओ बी ओ