दोहा पंचक. . . . कागज

दोहा पंचक. . . कागज

कागज के तो फूल सब, होते हैं निर्गंध ।
तितली को भाते नहीं, गंधहीन यह बंध ।।

कितनी बेबस लग रही, कागज की यह नाव ।
कैसे हो तूफान में,साहिल पर ठहराव ।।

कागज की कश्ती चली, लेकर कुछ अरमान ।
रेजा - रेजा कर गया , स्वप्न सभी तूफान ।।

कैसी भी हो डूबती, कागज वाली नाव ।
हृदय विदारक दृश्य से, नैनों से हो स्राव ।

कागज पर लिख डालिए, चाहे जितने भाव ।
कागज कभी न भीगता, कितने ही हों घाव ।।

सुशील सरना / 3-12-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

  • Chetan Prakash

    बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे सदैव एक अपेक्षा रहती है कि आप स्वयं, बंधुवर, रचना को थोड़ा और समय दें। भरती के शब्द आपकी रचनाओं, खेद है, अपेक्षाकृत अधिक पाए जाते हैं! यथा, ' तो' पहला दोहा, विषम चरण । शब्द का दोहराव भी एक समस्या है