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तमतमा कर बकी हुई गाली
कापुरुष है, जता रही गाली
भूल कर माँ-बहन व रिश्तों को
कोई देता है बेतुकी गाली
कुछ नहीं कर सका बुरा मेरा
खीझ उसने उछाल दी गाली
ढंग-व्यवहार के बदलने से
हो गयी विष बुझी वही गाली
कब मुलायम लगी कठिन कब ये
सोचना कब दुलारती गाली
कौन कहिए यहाँ जमाने में
अदबदा कर न दी कभी गाली
नाज से तुम सहेज कर रखना
संस्कारों पली-बढ़ी गाली
***
मौलिक व अप्रकाशित
Sushil Sarna
वाह आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी एक अलग विषय पर बेहतरीन सार्थक ग़ज़ल का सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर ।
Aug 29
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार
Aug 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई है। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।
Sep 2
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी.
Sep 3
Chetan Prakash
मुस्काए दोस्त हम सुकून आली
संस्कार आज फिर दिखा गाली
वाहहह क्या खूब ग़ज़ल ' गाली' हुई। हार्दिक बधाई, आदरणीय, भाई सौरभ पाण्डेय जी !
on Friday