अरकान- 212 212 212 212
दर्द सीने में अक्सर छुपाती है माँ|
तब कहीं जाकर फिर मुस्कुराती है माँ|
ख़ुद न सोने की चिंता वो करती मगर,
लोरियां गा के हमको सुलाती है माँ|
रूठ जाते हैं हम जो कहीं माँ से तो,
नाज-नखरे हमारे उठाती है माँ|
लाख काँटे हों जीवन में उसके मगर,
फूल बच्चों पे अपनी लुटाती है माँ|
माँ क्या होती है पूछो यतीमों से तुम,
रात-दिन उनके सपनों में आती है माँ|
माँ के मुंह से न छीनों निवाला कभी,
भूखे रहकर जो तुमको खिलाती है माँ|
राम लल्ला समझ अपनी औलाद को,
अपनी बाँहों में झूला झुलाती है माँ|
माँ के दिल को न हर्गिज दुखाओ कभी,
रूप भगवान का लेके आती है माँ|
मौलिक व अप्रकाशित
मनोज अहसास
दर्द सीने में अक्सर छुपाती है माँ|
तब कहीं जाकर फिर मुस्कुराती है माँ| इसमें जाकर को जाके कर लीजिये
माँ क्या होती है पूछो यतीमों से तुम,
रात-दिन उनके सपनों में आती है माँ| इसमें आपने क्या को एक मात्रिक लिया है
वैसे तो ठीक है पर गुणी जनों से भी कुछ मश्वरा मिल जाये तो अच्छा है
बहुत बधाई इस प्रयास के लिये
सादर
Oct 27, 2015
Shyam Narain Verma
Oct 27, 2015
DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'
मनोज साहेब, सही और उचित सलाह के लिए धन्यवाद| .........गुणी जनों के मशवरे की प्रतीक्षा में..... बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'|
Oct 27, 2015
DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'
श्याम वर्मा जी..... धन्यवाद|
Oct 27, 2015