ग़ज़ल.... अजीब मंजर है बेखुदी का

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न वक्त का कुछ पता ठिकाना न रात मेरी गुज़र रही है ।
अजीब मंजर है बेखुदी का , अजीब मेरी सहर रही है ।।

ग़ज़ल के मिसरों में गुनगुना के , जो दर्द लब से बयां हुआ था ।
हवा चली जो खिलाफ मेरे , जुबाँ वो खुद से मुकर रही है ।।

है जख़्म अबतक हरा हरा ये , तेरी नज़र का सलाम क्या लूँ ।
तेरी अदा हो तुझे मुबारक , नज़र से मेरे उतर रही है ।।

मिरे सुकूँ को तबाह करके , गुरूर इतना तुझे हुआ क्यूँ ।
तुझे पता है तेरी हिमाकत , सवाल बनकर अखर रही है ।।

न वस्ल को तुम भुला सकी हो, न हिज्र को मैं भुला ही पाया ।
यहाँ रकीबों की वादियों में , तेरी ही खुशबू बिखर रही है ।।

हमारे दिल में हमी से पर्दा , गुनाह कुछ तो छुपा गई हो ।
है दिल का कोई नया मसीहा , तू जिसके दम पे निखर रही है ।।

किसी तबस्सुम की दास्ताँ पे , फ़ना हुआ है गुमान जिसका ।
है कत्ल खाने में जश्न इसका, कज़ा की महफ़िल गुजर रही है ।।

हुजूर चिलमन से देखते हैं , गजब का मौसम है कातिलाना ।
ये इश्क भी क्या अजब का फन है नज़र नज़र पे ठहर रही है ।।

तमाम रातो के सिलसिलों में , खतों से अक्सर पयाम आया ।
जो चोट मुझको मिली थी तुझसे वो फ़िक्र बनकर उभर रही है ।।

----- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

  • Samar kabeer

    जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
    पूरी ग़ज़ल में ऐब-तनाफ़ुर है, देखियेगा ।
    पांचवें शैर में शुतरगुर्बा का दोष है,देखियेगा ।
  • Naveen Mani Tripathi

    बहुत बहुत आभार सर । मैंने कहीं पढ़ाथा कि यदि शायर ग़ज़ल पढ़कर शेर को निभा ले जाता है तो ऐबे तनाफुर कोई दोष न के बराबर ही समझा जाता है । वैसे भी यह दोष अरब संस्कृति की देन है जहाँ उच्चारण में अस्पष्टता की वजह से बना दिया गया था । वर्तमान परिवेश में विशेष परिस्थितियों में ही ऐब तनाफुर को महत्त्व दिया जाता है । उदाहरण के रूप में हम हिंदी भाषी दिन भर ऐबे तनाफुर में सैकड़ो बार बात करते रहते हैं ।
    जैसे
    हम काम कर रहे हैं ।
    वह भाग गए ।
    रुपया याद है । आदि आदि ।

    सर जो मुझे लगा वह बात मैंने आपके सामने रख दी है आप बड़े शायर हैं मुझे यकीन है आप इस विषय पर अपना भी व्यक्तिगत मत रखेंगे । आशा यह भी है कि की आप शिष्य की बात को अन्यथा न
    लेते हुए किसी समाधान की दिशा की ओर प्रेरित भी करेंगे । सादर नमन सर ।
  • Samar kabeer

    ऐब-ए-तनाफ़ुर के बारे में आपने सही फरमाया,लेकिन मेरा फ़र्ज़ था कि मैं आपको आगाह कर दूँ,इसलिये बता दिया ।
  • Naveen Mani Tripathi

    आ0 कबीर सर सादर नमन सर ।शुतुरगुरबा दोष को सर मैंने अपनी मूल प्रति में आपके मार्ग दर्शन का पालन कर लिया है । बहुत बहुत आभार सर । आपके मार्ग दर्शन में अत्यंत कीमती जानकारी प्राप्त हो जाती है ।
  • Sushil Sarna

    न वक्त का कुछ पता ठिकाना न रात मेरी गुज़र रही है ।

    अजीब मंजर है बेखुदी का , अजीब मेरी सहर रही है ।।

    ग़ज़ल के मिसरों में गुनगुना के , जो दर्द लब से बयां हुआ था ।

    हवा चली जो खिलाफ मेरे , जुबाँ वो खुद से मुकर रही है ।।

    गज़ब के अशआर कहे हैं सर आपने। ..... खूबसूरत अहसासों की इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।


  • सदस्य कार्यकारिणी

    मिथिलेश वामनकर

    आदरणीय नवीन जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. सादर 

  • Naveen Mani Tripathi

    आ0 मिथिलेश सर सादर आभार
  • Anita Maurya

    वाह.... बहुत खूब ..