आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
विषय : "होली के रंग"
आयोजन अवधि-15 मार्च 2025, दिन शनिवार से 16 मार्च 2025, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.
ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 15 मार्च 2025, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
दोहे
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होली पर बदलाव का, ऐसा उड़े गुलाल।
कर दे नूतन सोच से, धरती-अम्बर लाल।।
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भाईचारा, प्रेम का, भर होली में रंग।
मना सादगी से इसे, मचा नहीं हुड़दंग।।
*
विरहन को बिन आस के, दे साजन का संग।
अबके फागुन ने किया, चटक खुशी का रंग।
*
जिसने जीवन में किया, रंगों से परहेज।
वह खुशियों के रंग कब, पाया यहाँ सहेज।।
*
रंगों से मन छूटकर, भीगा केवल रूप।
रही नशीली यूँ नहीं, अब फागुन की धूप।।
*
रंग बेचना रास है, पर रहना है दूर।
पाखंडों ने कर दिया, क्यों इतना मजबूर।।
*
इंद्रधनुष से रंग जब, विचरें गा-गा फाग।
मन में तब पाषाण के, भर जाता अनुराग।।
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श्वेत-श्याम माना करे, भाग्य सुखों को बीन।
कर होली के रंग से, जीवन कुछ रंगीन।।
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मौलिक/अप्रकाशित
Mar 15
Chetan Prakash
होली के रंग : घनाक्षरी छंद
बरसत गुलाल कहीं और कहीं अबीर है ब्रज में तो चहुँओर होली का ही शोर है !
वसंत की बहार है, फूलों की गंध से मन सराबोर है राधा से कान्हा भी विभोर है !!
रंग भर पिचकारी, कान्हा राधा जू पे छोड़ैं, अंगिया भिगोय दई, राधा मुस्काय रही !
ग्वाल- बाल हँसत हैं, एकाएक मौका होय रँगों भरी बाल्टी राधा, कृष्ण उल्टाय रही !!
मगन हैं ब्रजवासी, कानन वन गुंजाय होली है भई होली है, बोलते हुरियारे !
गाय रही गोपियाँ हैं रसिया झुलाय रहीं, झूल वो, राधा-कृष्ण को, झूमते हुरियारे !!
मौलिक एवं अप्रकाशित
Mar 15
Sushil Sarna
कुंडलिया. . . . होली
होली के हुड़दंग की, मत पूछो कुछ बात ।
छैल - छबीले मनचले, खूब करें उत्पात ।
खूब करें उत्पात, डरें सब लाला- लाली ।
डरता उनको देख , बजाते फिर सब ताली ।
बहकी सब की चाल, भाँग की खा कर गोली ।
बुरा न मानो यार, नशीली आई होली ।
***
होली के त्यौहार तो, अलबेला त्यौहार ।
धरती से आकाश तक, रंगों का शृंगार ।।
रंगों का शृंगार, भेद सब भूले मन के ।
शर्म के मारे गाल, नार के इसमें दमके ।।
भरकर हाथ गुलाल, गाल पर मलती टोली ।
अंग- अंग पर रंग , जमाने आई होली ।।
***
लो जीजा से खेलने , साली लाई रंग ।
देख अजब गुस्ताखियाँ, उतर गई लो भंग ।
उतर गई लो भंग, रंग में कब कुछ सूझे ।
खूब छिड़ी फिर जंग ,हाल क्या कोई बूझे ।
जीजा ने भी आज,प्यार का पाया वीजा ।
साली से लो रंग , खेलने आया जीजा ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
15-3-25
Mar 15