विनय कुल का हर कार्टून सम्पूर्ण रचना है। पल भर में पाठक को अपने प्रभाव में समेट लेने वाली कृतियां। इनकी प्रभावान्विति असंदिग्ध और प्रत्यक्ष है। कार्टून सामने आते ही चेहरे पर कभी इकहरी भी तो कभी बेचैनी से भरी मुस्कान। व्यंग्य जो कभी गुदगुदाता है तो अक्सर स्तब्ध और चिन्ताकुल कर देता है। इसमें दो राय नहीं कि इनमें हमारे समय-समाज की धड़कनें सूक्ष्म पर्यवेक्षणीय दृष्टि और तीक्ष्ण अभिव्यक्ति-दक्षता के साथ दर्ज हो रही हैं ! इन चित्र-कृतियों में चित्रण-भर नहीं, बल्कि लक्षित विषय-संदर्भ पर रचनाकार का मौलिक व सम्पूर्ण सोच-दृष्टिकोण भी सामने आता है। अपना स्वयंभू और सुचिन्तित कथ्य लेकर। इस सृजन-कार्य में सर्जनशील और समीक्षकीय, दोनों दृष्टि साकार हो रही है। यह मामूली सर्जनशीलता नहीं। उल्लेखनीय योगदान है। कौन है, जो विनय कुल के कार्टून देख-पढ़कर सोचने को विवश नहीं हो जाता ! प्रश्न है कि क्या यह योगदान साहित्य में विधिवत विश्लेषित- मूल्यांकित नहीं होना चाहिए ? कौन करेगा यह पहल ?
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
भाई श्यामलजी,
विनय जी के कार्टून अवश्य ही ओबीओ के पटल के लिये गर्व का कारण हैं तथा इस मंच को अतिशय समृद्ध कर रहे हैं. हम प्रबन्धन तथा कार्यकारिणी समिति की नुमाइंदगी करते सदस्य उनके उन्नत तथा संवेदनशील रचनाओं को हृदय से स्वीकर कर अभिभूत हैं तथा इसका अक्सर इज़हार भी करते हैं. आप इसके अलावे क्या चाहते हैं इसके प्रति कुछ स्पष्टता नहीं हो पारही है.
आज जबकि सामान्य पाठकों/अन्य सदस्यों की प्रतिक्रियाओं से पद्य और गद्य रचनाएँ तक महरूम रह जा रही हैं, हम शब्द से इतर अन्य साहित्यिक विधाओं पर सदस्यों/ पाठकों की सहभागिता और यथोचित प्रतिक्रिया के लिये सादर आग्रह ही कर सकते हैं. सदस्य/ पाठकों द्वारा रचनाओं को पढ़/देख कर प्रतिक्रिया स्वरूप दो शब्द तक न लिखने की कॉम्प्लेसेन्सी कमोबेश सभी ई-पत्रिकाएँ झेल रही हैं. उस लिहाज से ओबीओ की स्थिति उतनी बुरी भी नहीं है. किन्तु यह अवश्य है कि इस ओर सभी सदस्यों/पाठकों से जागृत और संवेदनशील होने की अपेक्षा है.
इसमें कोई शुबहा नहीं कि कार्टूनों को समृद्ध सहित्यिक विधा का दर्ज़ा मिल चुका है. सामाजिक/ राजनैतिक कार्टून अपने देश में अपनी उस शैशवावस्था से बहुत आगे निकल चुके हैं जब भारत में चालीस-पचास के दशक में आदरणीय शंकर के कार्टून ही अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रहे थे. ओबीओ भी कार्टूनों को उसी इज़्ज़त से स्वीकार करते हैं. उसी का प्रतिफलन है कि ओबीओ के पटल पर आदरणीय विनय कूलजी की रचनाओं को सादर स्थान मिला है.
आप यदि इसके अलावे कुछ विशेष चाहते हैं तो कृपया स्पष्ट करें, अपितु पहल करें. आप हमारे अभिन्न सदस्य हैं. वैसे, निम्नलिखित पोस्ट्स पर आपका दृष्टिपात आवश्यक होगा -
सादर
सौरभ
Dec 9, 2011
Abhinav Arun
आदरणीय श्री सौरभ जी & श्री श्यामल जी ये इस दृष्टि से एक उपयोगी और सरोकार का विमर्श मुझे लगता है की यदि इस लिंक को श्री विनय कुल जी के कार्टून के नीचे जोड़ दिया जाए तो पाठक सीधे यहाँ आकर उस चित्र कृति पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते है !!
Dec 10, 2011
Vinay Kull
बंधुवर , आपकी इस टीप पर अत्यंत विलम्ब से दृष्टि पड़ी , माफ़ी एवं मूल्यांकन का साधुवाद !- विनय कुल
Jul 21, 2012