Open Books Online परिवार के सब सदस्य लोगन से निहोरा बा कि भोजपुरी साहित्य और भोजपुरी से जुड़ल बात ऐह ग्रुप मे लिखी सभे ।
जिनिगी भर बस पाप कमइला
कइसे करबा गंगा पार
जुलुम सहे के आदत सभके
के थामी हाथे हथियार
केहू नाही बनी सहाई
बुझबा जब खुद के लाचार
काम न करबा घिसुआ जइसे
कहबा गंदा हव संसार
गैर क बिटिया बहू निहारल
हवे डुबावल धरम अपार
जइसन करबा ओइसन भरबा
करनी हव फल कै आधार
कतनो पोती राखी गेरुआ
मगर धराई रँगल सियार
पढ़ल कुबुद्धी के समझावल
भीत से फोरल हवे कपार
आशीष यादव
मौलिक एवं अप्रकाशित
आशीष यादव
Aug 7, 2020
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
वाह ! नीतिपरक रचना से साहित्य में योगदान ला बहुते धन्नबाद, भाई आशीष जी. ढेर दिन प आपके रचना देखि रहल बानीं. ओइसे हमहूँ पटल प कम आ पावेनीं.
काशिका-भोजपुरी के रस में पगाइल एह रचना के आल्हा छंद के विन्यास प जवना सहज ढङ से निर्वहन कइल गइल बा ऊ मन के अनघा संतोख दे रगल बा.
बाकिर, एक पंक्ती अउर चाहत रहल हs तब्बे ई रचना चार जोड़ा में हो पाई. नाहीं त ई साढ़े तीनिये जोड़ा के रचना बन रहल बा.
जै जै
Aug 8, 2020
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई आशीष जी, बहुत अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
Aug 12, 2020