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लता,फूल,रज के हर कण में,नभ से झाँक रहे घन में,
राधे-कृष्णा की छवि दिखती,वृन्दावन के निधिवन में।
प्रेम अलौकिक व्याप्त पवन में,प्रणय गीत से बजते हैं,
राधा-माधव युगल सलोने,निशदिन वहाँ विचरते हैं।
छन-छन पायल की ध्वनि गूँजे, मानो राधा चलती हों,
या बाँहों में प्रिय केशव के,व्याकुल होय मचलती हों।
बनी वल्लरी लिपटी राधा,कृष्ण वृक्ष का रूप धरे,
चाँद सितारे बनकर चादर,निज वल्लभ पर आड़ करे।
मधुर दिव्य लीला प्रभु करते,सकल सृष्टि मधुपान करे,
कुहक पपीहा बेसुध नाचे,कोयल सुर अति तीव्र भरे।
रसिक श्याममय कुञ्ज गलिन में,हँसी-ठिठोली की बातें,
प्रेम सुधा रस पीते-पीते,बीते दिन बीते रातें।
जग ज्वालाएं जलती पल में,दिव्य धाम वृन्दावन में,
परम प्रेम आनंद बरसता,कृष्ण प्रिया के आँगन में।
'शुचि' मन निर्मल है तो जग यह,कृष्णमयी बन जाता है।
प्रेम भाव ही आठ याम नित,सकल जगत पर छाता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
वाह शुचि बहन लावणी छंद में निधिवन की अपार महिमा का सुंदर वर्णन।.बधाई हो।
May 26, 2021
शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
प्रोत्साहन हेतु आभार भैया।
May 26, 2021
Shyam Narain Verma
Jan 25