"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |
आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.
इस बार के आयोजन के लिए सहभागियों के अनुरोध पर अभी तक आम हो चले चलन से इतर रचना-कर्म हेतु एक विशेष छंद साझा किया जा रहा है।
इस बार के दो छंद हैं - रोला छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
20 अप्रैल’ 24 दिन शनिवार से
21 अप्रैल’ 24 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
रोला छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
20 अप्रैल’ 24 दिन शनिवार से 21 अप्रैल’ 24 दिन रविवार तक
रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
चली गई तुम छोड़,
सालती रह रह बिछड़न।
तुम हो मेरे साथ,
पास जब चौका बासन।
सूरज जाए पार,
हृदय में संझा बाती।
लिखता हूं हर रोज,
चपाती जैसी पाती।
गुम्फित मन के पोर-पोर में
चकला बेलन।
एक तुम्हारे दूर
चले जाने की भटकन।
जीने की सौ बार
कसम दी, कैसा बंधन?
चूल्हे की अंगार
धधकती है अंतर्मन।
करते हैं आवाज
सरौता कलछी मथनी।
होता है ये भान
तुम्हारी पायल नथनी।
बर्तन की झंकार
भरे मेरा खालीपन।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Apr 21
pratibha pande
पुत्र न पूछे हाल, करे क्या बाप बिचारा।
Apr 21
Chetan Prakash
रोला छंदः
भूल गया माँ बाप, बना वह.... वैरागी है ।
शहर बसी सन्तान,पुत्र कब अनुरागी है ।।
हुई जब माँ अशक्त, पिता ही शैफ बना है ।
पुत्र ..नहीं अब राम, बहू शहरी... खन्ना है ।।
मात-पिता हलकान, निराश्रित ज्यौं माँ जापा।
बुरी ..बला.. है भूख, बना खा ..रहा बुढ़ापा ।।
छूटे अब घर गाँव, चाहिये पहले ...रोटी ।
भरना.. भूखा पेट, कमाओ रोजी रोटी ।।
कुटीर उद्योग माँग, प्रकृति चाहिये लगाने ।
चटनी ...अचार सूप, चाहिये.. हमें बनाने ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Apr 21