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सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अंठावनवाँ आयोजन है।.
छंद का नाम - सार छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
18 अगस्त’ 24 दिन रविवार से
19 अगस्त’ 24 दिन सोमवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
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जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
18 अगस्त’ 24 दिन रविवार से 19 अगस्त’ 24 दिन सोमवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Chetan Prakash
रक्षा बंधनः सार छंद
काले - काले बादल छाये, कुहु - कुहु कोयल बोले।
कजरी गाये सजनी, बहिना; बँधवा ...राखी.. भोले ।
इन्तजार करे हैं दोनों ही, भावुक हो.. मन उसका ।
साजन भगिनी, भाई बहिना; आयेगा कुछ झिझका।
रक्षा बन्धन त्योहार रँगीला, बाँधे .. राखी ..बहिना।
रात रसीली सहज बिछौना, सजनी-साजन गहना।
रंग बिरंगी... उड़ें...पतंगें , लाल ..हरी औ पीली ।
हलकी हलकी चलें हवायें, रुत होते... हरियाली।
मौज आ गई लो बच्चों की, करते हल्ला - गुल्ला।
खाते बच्चे .. खीर मलाई , गप करते रसगुल्ला ।
शाम ...ढले वो... मेले - ठेले, गाँव बजे शहनाई।
खूब सजी महफिल चौपालों, सबने कजरी गाई।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Aug 19
Hariom Shrivastava
- सार छंद -
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1-
चिट्ठी लिख पूछे यह बहिना, भाई कब आओगे।
अगर न आ पाए तो क्या तुम, मुझको बुलवाओगे।।
राखी के पंद्रह दिन पहले, माँ बुलवा लेती थी।
एक माह पहले ही मुझको, चिट्ठी लिख देती थी।।
2-
माँ के जाते ही क्या मुझको, भूल गए तुम भैया।
कैसीं हैं अब राधा काकी, कैसी अपनी गैया।।
भाई कुछ तो दो जवाब तुम, मेरा मन आने का।
सखियों के सँग झूल-झूलकर, गीत खूब गाने का।।
3-
भैया मैं पिछले दो दिन से, रात-रातभर रोई।
व्हाट्सएप का भी तो तुमने, उत्तर दिया न कोई।।
इतना मुझे बता दो भाई, आखिर क्योंकर भूले।
बागों में डाले ही होंगे, सखियों ने तो झूले।।
4-
मैंने कब माँगा है तुमसे, प्रोपर्टी में हिस्सा।
फिर क्यों तुमने खत्म कर दिया, रिश्ते का ही किस्सा।।
जिस दिन से तुमने जमीन के, हस्ताक्षर करवाए।
उस दिन से फिर नहीं लौटकर, तुम मेरे घर आए।।
5-
मैंने मीसो से भेजी है, कल ही राखी भाई।
देख रही ऊपर बैठी जो, खुश होगी वह माई।।
तुमको जो पसंद है भैया, भेजी वही मिठाई।
राखी बाँध स्वयं खा लेना, मेरे प्यारे भाई।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
-हरिओम श्रीवास्तव-
Aug 19
Ashok Kumar Raktale
सार छन्द
*
भाई-बहनों के जीवन का, दिन पावन है आया।
अक्षत रोली राखी वाली, सजी थाल है लाया।
बहनों के आने से घर की, रौनक और बढ़ी है।
रक्षा-बंधन की मस्ती भी, सबके शीश चढ़ी है।।
नये-नये पहने हैं कपड़े, आज सुबह से भाई।
रखे नेग की रकम जेब में, जोड़-जोड़ कर पाई।
बहनों ने शृंगार किया जो, भाई के मन भाये।
दे रक्षा का वचन निभाए, भूल नहीं वह पाये।।
जीवन भर भी साथ हमारा, नहीं टूटने पाए।
भाई-बहनों के मन में यह, बात घूमती जाए।
रक्षा-बंधन स्नेह बढ़ाए, कर दे दूर बुराई।
लिए कामना दोनों मन में, हम में हो न लड़ाई।।
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~ मौलिक/अप्रकाशित.
Aug 19