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आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ तिहत्तरवाँ आयोजन है।
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छंद का नाम - सरसी छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
22 नवम्बर’ 25 दिन शनिवार से
23 नवम्बर’ 25 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
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जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
22 नवम्बर’ 25 दिन शनिवार से
23 नवम्बर’ 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Chetan Prakash
सरसी छंद
रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड ।
पहलवान भी मज़बूरी में, पेल रहे घर दंड ।।
धुंध धुँआ कभी ओस पड़ती, छुपा सूर्य है ओट ।
वृद्ध बाल आग जला बैठे, युवा पहनते कोट ।।
पारा डूब गया अंकों में, अभी रंक की मौत ।
वस्त्र पहनने को नहीं उसे, ज़िन्दगी बनी सौत ।।
गाँव शहर अलाव जलें हों, राहत मिले गरीब ।
कभी महसूस हो उसको, सत्ता रही करीब ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Nov 22
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव
सरसी छंद
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पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय।
ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं निरुपाय॥
शाम हुई जब सूरज डूबा, रात दिखाती रंग।
ठंड बहुत है ठिठुरन वाली, काँप रहा हर अंग॥
तेज धूप से दिन कट जाए, शामें होतीं सर्द।
खूब ठंड पड़ती कुछ ऐसी, रात हुई बेदर्द॥
गाँव नगर हर घर आंगन में, जलते खूब अलाव।
बड़े घरों में शीत लहर का, पड़ता नहीं प्रभाव॥
परेशान हैं कुँवर कुँवारी, पड़ी ठंड की मार।
स्वेटर और रजाई कंबल, सब के सब बेकार॥
पास बैठ दिन भर बतियाना, सबका यही स्वभाव।
चाहत है थोड़ी गर्मी की, पूरा करे अलाव॥
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मौलिक अप्रकाशित
Nov 22
Jaihind Raipuri
सरसी छन्द
ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग
बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग
फिर भी नहीं क्यूँ चुभते हमें, मखमल बिस्तर नींद
अब तो बीत गई हैं सदियाँ, छूट रही उम्मीद
मौलिक एवं अप्रकाशित
Nov 22