चित्र से काव्य तक

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'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ तिहत्तरवाँ योजन है।

 .   

 

छंद का नाम  -  सरसी छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

22 नवम्बर’ 25 दिन शनिवार से

23 नवम्बर 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

सरसी छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 


फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

22 नवम्बर’ 25 दिन शनिवार से

23 नवम्बर 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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    Chetan Prakash

    सरसी छंद 

    रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड ।

    पहलवान भी मज़बूरी में, पेल   रहे   घर  दंड ।।

    धुंध धुँआ कभी ओस पड़ती, छुपा सूर्य है ओट ।

    वृद्ध बाल आग जला बैठे, युवा  पहनते   कोट ।।

    पारा  डूब  गया  अंकों  में, अभी रंक की मौत ।

    वस्त्र पहनने को नहीं उसे, ज़िन्दगी बनी सौत ।।

    गाँव शहर अलाव जलें हों, राहत  मिले  गरीब ।

    कभी  महसूस  हो उसको, सत्ता  रही  करीब ।।

    मौलिक व अप्रकाशित 

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      अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

      सरसी छंद

      +++++++++

      पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय।

      ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं निरुपाय॥

      शाम हुई जब सूरज डूबा, रात दिखाती रंग।

      ठंड बहुत है ठिठुरन वाली, काँप रहा हर अंग॥

       

      तेज धूप से दिन कट जाए, शामें होतीं सर्द।

      खूब ठंड  पड़ती कुछ ऐसी, रात हुई बेदर्द॥

      गाँव नगर हर घर आंगन में, जलते खूब अलाव।

      बड़े घरों में शीत लहर का, पड़ता नहीं प्रभाव॥

       

      परेशान हैं कुँवर कुँवारी, पड़ी ठंड की मार।

      स्वेटर और रजाई कंबल,  सब के सब बेकार॥

      पास बैठ दिन भर बतियाना, सबका यही स्वभाव।

      चाहत है थोड़ी गर्मी की, पूरा करे अलाव॥

       

      ++++++++++++

      मौलिक अप्रकाशित

       

       

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      Jaihind Raipuri

      सरसी छन्द

      ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग

      बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग

      फिर भी नहीं क्यूँ चुभते हमें, मखमल बिस्तर नींद

      अब तो बीत गई हैं सदियाँ, छूट रही उम्मीद

      मौलिक एवं अप्रकाशित 

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