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कुण्डलिया एक विशिष्ट छंद है. यह वस्तुतः दो छंदों का युग्म रूप है. जिसमें पहला छंद दोहा, तो दूसरा छंद रोला होता है. यानि एक दोहा के दो पदों के बाद एक रोला के चार पद. यानि, कुण्डलिया छः पक्तियों या पदों का छंद है.
दोहा और रोला के विशिष्ट नियम साझा हो चुके हैं. इसके आगे, इनके संयुक्त को प्रारूप को कुण्डलिया छंद बनने के लिए थोड़ी और विशिष्टता अपनानी पड़ती है :.
1. दोहा के पहले चरण (विषम चरण) का पहला शब्द या पहला शब्दांश या पहला शब्द-समूह रोला के आखिरी चरण (सम चरण) का शब्द या शब्दांश या शब्द-समूह क्रमशः समान होता है.
2. दोहा का दूसरा सम चरण रोला का पहला विषम चरण होता है. अर्थात, दोहा का दूसरा सम चरण पुनः रोला वाले भाग के पहले चरण की तरह उद्धृत होता है यानि, दोहा के दूसरे सम चरण का वाक्य रोला के पहले विषम चरण का वाक्य हू-ब-हू होते हैं.
3. बाकी नियमों के लिए दोहा अपने मूल नियमों से सधा होता है तो रोला भी अपने मूल नियमों से बँधा होता है.
इसे अधिक बेहतर, यों समझ सकते हैं :
कखगघ xxxx xxx xx, xxxx xxx xxx | xxx xxx xx xxx xx,चछजझटठडढतथद |___.... दोहा चछजझ टठडढ तथद, xxx xx xxxx xxxx | xxxx xxxx xxx, xxx xx xxxx xxxx | xxxx xxxx xxx, xxx xx xxxx xxxx | xxxx xxxx xxx, xxx xx xxxx कखगघ |___.....रोला
यहाँ दोहे का कखगघ और रोले का कखगघ समान शब्द या शब्दांश या शब्द-समूह होते हैं. यानि, ध्यातव्य है कि यदि दोहे का कख ही स्वीकारा गया है तो रोला का आखिरी शब्द गघकख हो जायेगा. या दोहा का पहला शब्द-समूह कखगघ xx लिया गया है तो रोला का आखिरी शब्द-समूह कखगघ xx होगा.
चूँकि, इस छंद में पहले और आखिरी शब्द या शब्दांश या शब्द-समूह की क्रमशः समानता हुआ करती है, अतः यह प्रक्रम एक शब्द-वृत बनाता हुआ प्रतीत होता है, या, यह किसी साँप को कुण्डली मार कर बैठे होने का आभास देता है. यानि, जिस शब्द से प्रारम्भ उसी शब्द से अंत. इसी कारण, इस छंद का नाम ’कुण्डलिया’ पड़ा है.
कुण्डलिया छंद के अन्य प्रारूप भी होते हैं, जहाँ रोला वाले भाग में कवियों द्वारा यति-लोप की छूट ली जाती है. या, रोला के चरण विन्यास में आंतरिक परिवर्तन कर कवियों द्वारा कौतुक उत्पन्न करने की चेष्टा की जाती है. लेकिन हम कुण्डलिया के मूलभूत और शाश्वत नियमों का ही अनुपालन करेंगे. ताकि हम कुण्डलिया के शास्त्रीय रूप के अभ्यासी हों.
कुण्डलिया में प्रयुक्त दोहा और रोला के पदों के शब्द-संयोजन का विन्यास हम पुनः देखते हैं--
1. दोहे का आदि चरण यानि विषम चरण विषम शब्दों से यानि त्रिकल से प्रारम्भ हो तो संयोजन 3, 3, 2, 3, 2 होगा और चरणांत रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) होगा.
2. दोहे का आदि चरण यानि विषम चरण सम शब्दों से यानि द्विकल या चौकल से प्रारम्भ हो तो संयोजन 4, 4, 3, 2 होगा और चरणांत रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) होगा.
3. दोहे के सम चरण का संयोजन 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3 होता है.
4. रोला के विषम चरण का संयोजन या विन्यास दोहा के सम चरण की तरह ही होता है, यानि 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3
5. रोला के सम चरण का संयोजन 3, 2, 4, 4 या 3, 2, 3, 3, 2 होता है.
उदाहराणार्थ कुछ कुण्डलिया छंद - 1) बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताय काम बिगारे आपनो जग में होत हँसाय जग में होत हँसाय चित्त में चैन न पावै खान पान, सम्मान, राग-रंग मनहिं न भावै। कह गिरधर कविराय दु:ख कछु टरहिं न टारे खटकत है जिय माहिं कियो जो बिना विचारे.... . .. .(गिरधर)
2) हारे मन तो हार है, जीते मन तो जीत मन ही तो नफरत करे, मन ही करता प्रीत मन ही करता प्रीत, सभी कुछ मन से होता मन करता परिहास, अंत में मन ही रोता कहें 'कपिल ' कविराय, गिना करता है तारे भाषा मन की भिन्न, किसी से कभी न हारे ...... .. (कपिल कुमार)
3) केवल नदिया ही नहीं, और न जल की धार। गंगा माँ है, देवि है, है जीवन- आधार। है जीवन- आधार, सभी को सुख से भरती। जो भी आता पास, विविधि विधि मंगल करती। 'ठकुरेला' कविराय, तारता है गंगा-जल। गंगा अमृत - राशि, नहीं यह नदिया केवल. .. .. (त्रिलोक सिंह ठकुरेला)
annapurna bajpai
अत्यंत उपयोगी जानकारी उपलब्ध कराने हेतु आपका हार्दिक abharआभार आ0 सौरभ जी । सादर
Jun 9, 2014
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
आदरणीय सौरभ सर, कुंडलियाँ छंद को सहजता से समझाने के लिए आभार.
Apr 27, 2015
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार।
कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार।
पाता है आकार, छंद शब्दों में बैठे।
शब्दों का विन्यास, भाव में पूरा पैठे।
कहते सब कविराय, छंद तब ही तो सोहे।
रोला का जब साथ, निभाते दिखते दोहे।।
Jun 18