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कुण्डलिया छंद पर आलेख पसंद आया इसके लिए हार्दिक धन्यवाद भाई विन्ध्येश्वरी जी.
सुदर जानकारी सरल शब्दों में उपलब्ध हुई है | आपके ये प्रयास हम लोगो के लिए बहुत ही उपयोगी होते है | हार्दिक आभार आदरणीय
सादर धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मणजी
अत्यंत उपयोगी जानकारी उपलब्ध कराने हेतु आपका हार्दिक abharआभार आ0 सौरभ जी । सादर
सादर धन्यवाद आदरणीया अन्नपूर्णाजी
आदरणीय सौरभ सर, कुंडलियाँ छंद को सहजता से समझाने के लिए आभार.
जय-जय
दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार।
कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार।
पाता है आकार, छंद शब्दों में बैठे।
शब्दों का विन्यास, भाव में पूरा पैठे।
कहते सब कविराय, छंद तब ही तो सोहे।
रोला का जब साथ, निभाते दिखते दोहे।।
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